मच्छर से सिर्फ़ हमारे देश के लोग परेशान नहीं है। जी हां इस छोटे से जीव से दुनिया भर के लोग लगभग परेशान होते हैं। इनकी अजीबोगरीब आवाज़ कानों को जितनी चुभती है। उससे ज़्यादा तो चुभता है इन मच्छरों द्वारा इन्सानों का खून पीना। बताइए एक छोटा सा जीव इंसान का खून चूस लेता है, लेकिन आदमी इस छोटे से जीव के सामने अपने आपको असहय महसूस करता पाता है। वैसे तो मच्छरों से निज़ात के कई तरीक़े आज के उपभोक्तावादी युग मे सुझाएँ जाते हैं, लेकिन पूर्ण रूप से कोई भी तरीका सफ़ल नहीं होता। यह अलग एक सच्चाई है।
बता दें कि मच्छर सिर्फ व्यक्तियों का खून नहीं चूसते बल्कि विभिन्न गम्भीर बीमारियों का घर मानव शरीर को बनाने में इन मच्छरों का अहम योगदान होता है। यह तो बात हुई मच्छर और उसके पुराण की बात, लेकिन हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बताएं जहां मच्छर खोजने से भी नहीं मिलते। तो शायद आप विश्वास नहीं कर पाएंगे? ख़ासकर भारत के लोग तो अवश्य विश्वास नहीं करेंगे, क्योंकि मच्छरों का सबसे भुगतभोगी कोई है तो वह अपने देश के लोग ही है।
चलिए मानना न मानना आपके तर्कशक्ति पर निर्भर करता है, लेकिन हम आपको एक ऐसे ही देश के बारे में बताने जा रहें जहां एक भी मच्छर नहीं मिलेंगे। जी हां यह देश है उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित आइसलैंड। वर्ल्ड एटलस (World Atlas) के मुताबिक बेहद ही कम आबादी वाले ( Low Density Population) इस देश में लगभग 1300 प्रकार के जीव पाएं जाते हैं, लेकिन मच्छर नामक जीव यहां नहीं पाया जाता। हां बशर्तें की पड़ोसी देशों जैसे ग्रीनलैंड और स्कॉटलैंड जैसे देशों में मच्छरों की भरमार है, लेकिन आइसलैंड में मच्छरों की अनुपस्थिति एक शोध का विषय बनी हुई है।
गौरतलब हो कि आइसलैंड में मच्छर ना होने के पीछे कई कारण भी दिए जाते हैं। ऐसा बताया जाता है कि मच्छरों को जन्म लेने के लिए उथले तालाब और अन्य जल निकायों में स्थिर जल की आवश्यकता होती है। जहां रखे गए अंडे एक लार्वा में बदल जाते हैं और लार्वा एक विशेष तापमान पर एक निश्चित अवधि के लिए स्थिर पानी में मच्छर को पनपने में सहयोग करता है। इस पूरे चक्र के लिए आइसलैंड में ऐसा कोई स्थिर जल निकाय लंबे समय तक मौजूद नहीं रहता। जिससे कि यहां मच्छर पनप पाएं।
वही दूसरा कारण यह भी बताया जाता है कि आइसलैंड में तापमान बहुत कम होता है जो माइनस 38 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाता है। यहां पानी बेहद ही आसानी से फ़्रिज हो जाता है। जिससे मच्छरों का प्रजनन असंभव हो जाता है। इस कारण से भी यहां पर मच्छर नहीं पाए जाते हैं।
वहीं एक अन्य सिद्धांत की बात करें तो आइसलैंड के पानी, मिट्टी और सामान्य पारिस्थिकीय तंत्र की रासायनिक संरचना मच्छरों के जीवन का समर्थन नहीं करती जो भी इस देश में मच्छर के नहीं पाए जाने का एक बड़ा कारण बताया जाता है। वैसे जानकारी के लिए बता दें कि इस आइसलैंड में सिर्फ मच्छर ही नहीं पाए जाते, बल्कि सांप और अन्य रेंगने वाले कीड़े-मकोड़े भी यहां की जलवायु के अनुकूल नहीं है। जिसके चलते वह भी यहां दिखाई नहीं देते। इस देश में एकमात्र मच्छर “आइसलैंडिक इंस्टीट्यूट आफ नेचुरल हिस्ट्री” प्रयोगशाला में संरक्षित है।
बता दें कि प्रयोगशाला में संरक्षित इस एक मच्छर के पाए जाने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। यह मच्छर 1980 के दशक में आईसलैंड के जीव वैज्ञानिक गिल्सी मार गिस्लासन द्वारा एक आइसलैंडर हवाई जहाज के केबिन से पकड़ा गया था। जिसे शराब के एक जार में रखा गया है। वही बता दें कि आइसलैंड में “मिज” नामक एक कीड़े की प्रजाति पाई जाती है। जो मच्छरों की तरह ही दिखती है और मच्छरों की तरह ही बेरहमी से काटती भी है। हाँ लेकिन मच्छरों की तुलना में यह काफी कम आक्रमक होते हैं।