Murrah Buffalo: पशुपालन भारत में लोगों के लिए समृद्धि का द्वार खोल रहा है. गाय, भैंस, बकरी और सूअर पालन जैसी गतिविधियां ग्रामीण और शहरी इलाकों के लोगों को न केवल आर्थिक स्थिरता मिलती हैं बल्कि पढ़े-लिखे युवाओं को भी अपनी तकदीर बदलने का मौका दे रही हैं.
भैंस पालन की चुनौतियां और समाधान
भैंस पालन में उन्नत नस्लों की जानकारी का अभाव पशुपालकों को आर्थिक नुकसान (economic challenges) का सामना करने पर मजबूर करता है. आज के संदर्भ में, उन्नत नस्ल की भैंसों की पहचान और पालन से जुड़ी सही जानकारी का प्रसार इस समस्या का समाधान कर सकता है.
मुर्रा नस्ल
पशु विशेषज्ञ डॉ. इंद्रजीत वर्मा के अनुसार मुर्रा नस्ल की भैंसें प्रति दिन 22 से 27 लीटर दूध देती हैं. इस उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता (high milk yield) के कारण इसे ‘काला सोना’ भी कहा जाता है. इस नस्ल की भैंसें व्यापक रूप से दुधारू भैंसों के रूप में प्रसिद्ध हैं.
मुर्रा भैंस के गुण
मुर्रा नस्ल की भैंसें अपनी अन्य विशेषताओं के लिए भी जानी जाती हैं. इनमें जलेबी आकार के छोटे सींग (distinctive horns), सुनहरे बाल, पतली गर्दन, भारी स्तन, और घुमावदार नाक शामिल हैं, जो इन्हें अन्य नस्लों से अलग करते हैं.
मुर्रा नस्ल की भैंस की खासियत
मुर्रा नस्ल की भैंस की उत्पत्ति हरियाणा में हुई थी, लेकिन अब यह पंजाब, राजस्थान, बिहार, और उत्तर प्रदेश (geographical distribution) जैसे राज्यों में भी पाली जा रही है. इस नस्ल की भैंस की बाजार में कीमत लगभग 60 हजार से डेढ़ लाख रुपए तक होती है, जिससे पशुपालकों को अच्छा आर्थिक लाभ मिलता है.