एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक हलचल एक बार फिर तेज़ हो गई है। रूस और चीन ने अपनी सैन्य साझेदारी को अगले स्तर पर पहुँचाते हुए पहली बार संयुक्त पनडुब्बी गश्त शुरू की है। यह कदम ऐसे समय पर आया है जब वॉशिंगटन और उसके सहयोगी पहले से ही हिंद-प्रशांत में बीजिंग और मॉस्को के बढ़ते प्रभाव को लेकर सतर्क हैं।
पहली बार पनडुब्बियों के साथ गश्त
रूसी प्रशांत बेड़े के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि दोनों देशों की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ अगस्त की शुरुआत से मिलकर गश्त कर रही हैं। यह गश्ती मिशन जापान सागर में हुए रूस-चीन के व्यापक नौसैनिक अभ्यास के तुरंत बाद शुरू हुआ। इससे पहले दोनों देशों ने कई संयुक्त अभ्यास किए थे, लेकिन उनमें केवल सतही युद्धपोत ही शामिल थे। यह पहली बार है जब दोनों देशों ने समुद्र की गहराइयों में भी रणनीतिक सहयोग दिखाया है।
गहराता सैन्य सहयोग
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम केवल एक सैन्य कवायद नहीं, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगियों को सीधा संदेश है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस-चीन की नज़दीकियाँ और बढ़ी हैं। रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच चीन ने न केवल कच्चे तेल की बड़ी खरीद से मास्को की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है, बल्कि नौसैनिक और सैन्य सहयोग में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।
नौसैनिक शक्ति में तेजी
- रूस: अपने सुदूर पूर्वी अड्डों का आधुनिकीकरण कर रहा है ताकि परमाणु ऊर्जा से चलने वाली नई पनडुब्बियाँ तैनात की जा सकें।
- चीन: जहाज निर्माण क्षमता और अत्याधुनिक तकनीकों के चलते आज उसके पास दुनिया का सबसे बड़ा नौसैनिक बेड़ा है। नई पनडुब्बियों और विध्वंसकों की तैनाती से बीजिंग समुद्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
अमेरिका और NATO के लिए संदेश
यह संयुक्त गश्त ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका हिंद-प्रशांत में “Quad” और “AUKUS” जैसे समूहों को मज़बूत कर रहा है। वहीं, रूस-चीन का यह कदम संकेत देता है कि एशिया-प्रशांत की समुद्री शक्ति संतुलन अब और जटिल हो सकता है। अमेरिका और NATO के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि रूस और चीन मिलकर अपनी मौजूदगी का दायरा बढ़ाना चाहते हैं।
पाँचवाँ संयुक्त मिशन, पर अलग रणनीति
जानकार बताते हैं कि रूस और चीन पहले भी चार बार संयुक्त गश्ती अभियान चला चुके हैं, लेकिन इस बार का मिशन अलग है। पनडुब्बियों को शामिल करना इस साझेदारी की रणनीतिक गहराई को दिखाता है। इसका उद्देश्य केवल सैन्य कौशल का प्रदर्शन नहीं, बल्कि समुद्री क्षेत्र की निगरानी, आर्थिक सुविधाओं की रक्षा और एशिया-प्रशांत में “साझा सुरक्षा” का संदेश देना है।
निष्कर्ष
रूस और चीन के बीच यह सहयोग एक तरह का “अर्ध-गठबंधन” बन चुका है, जो भविष्य में वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। पश्चिमी देशों की चिंता भी यहीं है—क्योंकि समुद्र से लेकर ऊर्जा बाज़ार तक, हर मोर्चे पर दोनों देश अब मिलकर खेल रहे हैं।