धर्म ग्रंथों की माने तो व्यक्ति को जीवन में दान जरूर करना चाहिए। दान उसे कहा जाता है जब व्यक्ति अपनी इच्छा से कोई वस्तु सामने वाले को देता है और फिर उसे वापस नहीं लेता है। दान में पैसों के अलावा अन्न, जल, शिक्षा, गाय, बैल जैसी चीजें भी शामिल होती है। दान करना हमारा कर्तव्य और धर्म होता है। शस्त्रों में दान करने की अहमियत को भी बताया गया है।
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धर्म ग्रंथ के एक श्लोक के अनुसार – दानं दमो दया क्षान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम् ॥ -याज्ञवल्क्यस्मृति, गृहस्थ। इस श्लोक का अर्थ है दान, अन्त:करण का संयम, दया और क्षमा को सामान्य धर्म साधन के बराबर माना जाता है। दान एक तरह से सामाजिक व्यवस्था है। दान करने से समाज में संतुलन बना रहता है। जब अमीर लोग दान करते हैं तो कई निर्धन परिवार का भरण पोषण हो जाता है। भारतीय संस्कृति के मुताबिक हर प्राणी में परमात्मा निवास करते हैं। इसलिए किसी को भूखा नहीं रहना चाहिए। यदि आप दान धर्म करते हैं तो हमारी संस्कृति अटूट बनती है।
इसलिए यह बहुत जरूरी होता है कि आप अपनी मर्जी से और दिल खोलकर दान करें। एक सवाल ये भी आता है कि हमे कितना दान करना चाहिए। इस बात की जानकारी भी शास्त्रों में दी गई। इसमें बताया गया है कि व्यक्ति को अपनी कमाई का कितना हिस्सा लोगों में दान स्वरूप बांट देना चाहिए। यह अमाउन्ट जानने से पहले चलिए ये जानते हैं कि दान कितने प्रकार के होते हैं।
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दान के प्रकार
नित्यदान: ये एक ऐसा दान होता है जिसमएब व्यति किसी के परोपकार की भावना नहीं रखता है। वह अपने दान देने के बदले कोई फल की इच्छा भी नहीं रखता है। वह निस्वार्थ होकर दान करता है। इसके बदले उसे कुछ नहीं चाहिए होता है। ऐसा दान नित्यदान कहलाता है।
नैमित्तिक दान: जब किसी व्यक्ति के पाप का घड़ा भर जाता है तो वह उन पापों की शांति के लिए विद्वान ब्राह्मणों के हाथों पर यह दान रखता है। इस तरह के दान को नैमित्तिक दान कहा जाता है।
काम्य दान: जब किसी व्यक्ति को संतान, सफलता, , सुख-समृद्धि और स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा होती है और वह दान धर्म करता है तो इसे काम्य दान कहा जाता है।
विमल दान: जब हम भगवान को खुश करने के लिए कोई दान करते हैं तो उसे विमल दान कहते हैं।
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दान किसे करना चाहिए?
धन-धान्य से संपन्न व्यक्ति ही दान देने का अधिकारी होता है। गरीब और मुश्किलों से अपनी आजीविका चलाने वाले का दान देना आवश्यक नहीं है। शास्त्रों का विधान यही कहता है। मान्यता है कि यदि व्यक्ति अपने माता-पिता, पत्नी व बच्चों का पेट काटकर दान करता है तो उससे पुण्य नहीं पाप मलता है। दान हमेशा सुपात्र व्यक्ति को ही देना चाहिए। कुपात्र को दिया दान व्यर्थ हो जाता है।
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कमाई का कितना हिस्सा करना चाहिए दान?
धर्म ग्रंथ में वर्णित श्लोक के अनुसार – न्यायोपार्जितवित्तस्य दशमोशेन धीमत:। कर्तव्यो विनियोगश्च ईश्वरप्रीत्यर्थमेव च ॥ इसका अर्थ है कि न्यायपूर्वक यानी ईमानदारी से कमाए गए धन का दसवां भाग दान करना चाहिए। ये दान करना आपका कर्तव्य है। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं।