दिल्ली के 300 साल पुराने गांव में NSG के नोटिस से हड़कंप मचा है! सैकड़ों परिवारों को घर खाली करने का आदेश मिला है। आखिर देश के कमांडो किसी की भी जमीन पर कैसे दावा कर सकते हैं? जानिए इस पूरे मामले के पीछे का कानूनी पेंच और क्या कहता है भारत का संविधान।
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास बसा लगभग 300 साल पुराना मेहरम नगर गांव आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। यहां के निवासियों में डर और गुस्सा दोनों है, क्योंकि देश की एलीट कमांडो फोर्स, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), ने उन्हें गांव खाली करने का नोटिस थमा दिया है। इस नोटिस के बाद से सैकड़ों परिवार सकते में हैं, और उन्होंने इसके विरोध में महापंचायत शुरू कर दी है।
लेकिन इस पूरे विवाद के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा होता है – क्या NSG जैसी कोई सुरक्षा एजेंसी किसी की भी जमीन पर ऐसे ही दावा कर सकती है?
क्या NSG किसी की भी जमीन छीन सकती है?
इसका सीधा और सरल जवाब है – नहीं। NSG एक स्पेशल सिक्योरिटी फोर्स है, जिसका काम आतंकवाद से लड़ना और देश को विशेष सुरक्षा खतरों से बचाना है। इसका काम जमीन का अधिग्रहण (land acquisition) करना नहीं है। कोई भी सुरक्षा एजेंसी अपनी मर्जी से किसी की जमीन पर कब्जा नहीं कर सकती।
तो फिर मेहरम नगर में ऐसा क्यों हो रहा है?
जमीन पर कब्जे का कानूनी पेंच
कानून के मुताबिक, सरकार किसी भी जमीन का अधिग्रहण सिर्फ एक वैध प्रक्रिया (legal process) के तहत ही कर सकती है।
- सार्वजनिक हित में अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण अधिनियम (Land Acquisition Act) के तहत, केंद्र सरकार या रक्षा मंत्रालय अगर किसी जमीन को राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक हित के लिए जरूरी समझता है, तो वह मुआवजा देकर उस जमीन को ले सकती है।
- सरकारी रिकॉर्ड: अगर कोई जमीन पहले से ही सरकारी रिकॉर्ड में रक्षा मंत्रालय या किसी अन्य सरकारी विभाग को आवंटित (allotted) है, तो उस पर बसे लोगों का मालिकाना हक कमजोर पड़ जाता है।
मेहरम नगर का मामला क्या है?
मेहरम नगर का मामला इसी दूसरी कैटेगरी में आता दिख रहा है। बताया जा रहा है कि इस गांव का एक बड़ा हिस्सा ऐतिहासिक रूप से एयरफोर्स और रक्षा प्रतिष्ठानों के लिए चिन्हित किया गया था। भले ही यहां लोग 300 सालों से रह रहे हैं, लेकिन अगर सरकारी कागजों में यह जमीन रक्षा भूमि (defence land) के तौर पर दर्ज है, तो NSG का दावा मजबूत हो जाता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने कई बार यह साफ किया है कि बिना कानूनी प्रक्रिया और उचित मुआवजे के किसी को भी उसकी जमीन से नहीं हटाया जा सकता। अब यह मामला ग्रामीणों के सदियों पुराने कब्जे और सरकारी रिकॉर्ड के बीच एक बड़ी कानूनी लड़ाई बन चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि यह उनके अधिकारों का हनन है, जबकि NSG सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर अपना दावा कर रही है।