“मॉडल टेनेन्सी एक्ट” मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए फायदेमंद है। अक्सर किरायेदार मकान मालिक द्वारा अचानक किराया बढ़ाने या घर खाली करने के दबाव से परेशान रहते हैं, तो वहीं मकान मालिकों को यह डर रहता है कि किरायेदार कहीं उनके मकान पर कब्जा न कर ले।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में “मॉडल टेनेन्सी एक्ट” को मंजूरी दी है, जो मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच बेहतर तालमेल और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इस कानून का मुख्य मकसद यह है कि मकान मालिकों और किरायेदारों दोनों के हितों की रक्षा की जा सके और साथ ही किरायेदारी से जुड़े विवादों को कम किया जा सके। आइए इस कानून को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि यह किस प्रकार से लोगों को लाभान्वित करेगा।
मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए फायदेमंद
“मॉडल टेनेन्सी एक्ट” मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए फायदेमंद है। अक्सर किरायेदार मकान मालिक द्वारा अचानक किराया बढ़ाने या घर खाली करने के दबाव से परेशान रहते हैं, तो वहीं मकान मालिकों को यह डर रहता है कि किरायेदार कहीं उनके मकान पर कब्जा न कर ले। यह नया कानून इन दोनों ही समस्याओं का समाधान करता है। अब मकान मालिक को बिना डर के अपने मकान किराये पर देने का विश्वास मिलेगा और किरायेदारों को भी मनमानी किराया बढ़ोतरी या जबरदस्ती मकान खाली करने जैसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
किरायेदारों के लिए एग्रीमेंट अनिवार्य
नए कानून के अनुसार, मकान मालिक और किरायेदार के बीच एक स्पष्ट और कानूनी रूप से एग्रीमेंट अनिवार्य होगा। यह एग्रीमेंट दोनों पक्षों के अधिकार और जिम्मेदारियों को तय करेगा। इसमें निम्नलिखित बातें साफ-साफ लिखी होंगी:
- किराये की राशि और उसका भुगतान कैसे किया जाएगा।
- किराया बढ़ाने की शर्तें और दरें।
- सिक्योरिटी डिपॉजिट की राशि।
- घर खाली करने के नियम और समय सीमा। इस अनुबंध से दोनों पक्षों के बीच किसी भी प्रकार के विवाद की गुंजाइश कम होगी, क्योंकि सभी शर्तें पहले से तय होंगी।
सिक्योरिटी डिपॉजिट पर सीमा
इस एक्ट में किरायेदारों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है। अब मकान मालिक एक निश्चित सीमा तक ही सिक्योरिटी डिपॉजिट ले सकेंगे। इससे पहले कई बार मकान मालिक बड़ी राशि सिक्योरिटी के तौर पर मांग लेते थे, जिससे किरायेदारों को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता था। नए कानून के तहत यह सीमा तय कर दी गई है ताकि किरायेदार आसानी से मकान किराये पर ले सकें।
घर खाली करने के सख्त नियम
कई बार मकान मालिक अपनी मनमर्जी से किरायेदारों को घर खाली करने के लिए दबाव डालते थे, लेकिन इस कानून के लागू होने के बाद ऐसा नहीं हो सकेगा। घर खाली करने की प्रक्रिया कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार ही होगी। अगर किरायेदार तय समय पर घर खाली नहीं करता है, तो मकान मालिक को कानूनी अधिकार होगा कि वह उस किरायेदार से दोगुना किराया वसूल कर सके। इससे मकान मालिकों को भी सुरक्षा मिलेगी कि उनका घर समय पर खाली हो जाएगा और किरायेदार भी अनुबंध की शर्तों का पालन करेंगे।
मकान मालिक की संपत्ति में प्रवेश की शर्तें
नया कानून मकान मालिकों को उनके किरायेदार की निजता का सम्मान करने के लिए बाध्य करता है। मकान मालिक अब बिना पूर्व सूचना के अपने किरायेदार के घर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। अगर मकान मालिक को किसी कारणवश घर में आना है, तो उन्हें कम से कम 24 घंटे पहले किरायेदार से अनुमति लेनी होगी। इससे किरायेदारों की निजता और सुरक्षा का ध्यान रखा जाएगा।
किरायेदारी को संगठित कारोबार की तरह विकसित करने की कोशिश
सरकार की मंशा है कि किरायेदारी को एक संगठित और व्यवस्थित कारोबार की तरह विकसित किया जाए। इससे मकान मालिकों को यह भरोसा मिलेगा कि वे बिना किसी झंझट के अपने मकान किराये पर दे सकते हैं। इससे न केवल किराये पर मकान देने का रुझान बढ़ेगा, बल्कि बाजार में अधिक मकान किराये पर उपलब्ध होंगे। इससे किराये के मकानों की आपूर्ति में वृद्धि होगी और किराया दरों में संतुलन आएगा। इससे विभिन्न आय वर्ग के लोगों के लिए बेहतर विकल्प उपलब्ध होंगे, और बिना बिके मकानों का सही उपयोग हो सकेगा।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की भूमिका
यह मॉडल एक्ट केंद्र सरकार द्वारा तैयार किया गया है, लेकिन इसे सीधे तौर पर लागू नहीं किया जाएगा। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसे लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है। वे इस मॉडल एक्ट को अपने राज्य की स्थिति के अनुसार लागू कर सकते हैं। वे चाहें तो अपने मौजूदा किरायेदारी कानूनों में बदलाव कर सकते हैं या फिर इस मॉडल एक्ट के आधार पर नया कानून बना सकते हैं।
किरायेदारी विवादों का समाधान
इस नए एक्ट में मकान मालिक और किरायेदार के बीच होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। अब छोटे-मोटे विवादों के लिए कोर्ट का सहारा लेने की जरूरत नहीं होगी। एक अलग से तंत्र होगा जो इन विवादों को जल्दी और आसानी से सुलझाएगा। इससे न्यायिक प्रक्रिया पर दबाव कम होगा और विवादों का निपटारा जल्द हो सकेगा।