गेहूं की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण इससे तैयार होने वाले सभी प्रोडक्ट्स पर इसका असर देखने को मिल रहा है। वर्तमान में गेहूं का थोक दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP से लगभग 23 प्रतिशत ज्यादा चल रहा है। इतना ही नहीं आटे की कीमतें भी इसके चलते बढ़ गई है और आटे की कीमतों ने पिछले 15 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अब ऐसे में आटे की बढ़ती कीमतों का असर इसे तैयार होने वाले प्रॉडक्ट्स पर पढ़ सकता है। अब ऐसे में हो सकता है इससे तैयार होने वाली चीजों की कीमतें भी बढ़ाई जाए।
बाजार में लगातार बढ़ रही गेहूं की कीमतें
वर्तमान में गेहूं की बढ़ती कीमतों को कंट्रोल में लाने के लिए सरकार की तरफ से भारतीय खाद्य निगम के तहत अनाज बाजार में उतर रही थी। वही कुछ सप्ताह पहले 1 लाख टन गेहूं को ई-ऑक्शन के जरिए बाजार में उतारा गया था। कीमतों को कंट्रोल करने के लिए पिछले हफ्ते खाद्य आपूर्ति विभाग ने जमाखोरी रोकने के लिए मिलर्स पर स्टॉक लिमिट भी घटा दी थी। इतना कुछ करने के बाद भी गेहूं का दाम एसपी से लगभग 23 % ऊपर आज भी चल रहा है। गेहूं की कीमतों में कोई कंट्रोल नहीं आ रहा है।
गेहूं का मंडी भाव
गेहूं के दामों में किसी तरह की कोई राहत देखने को नहीं मिल रही है। सरकारी कमोडिटी इंडक्ट एगमार्कनेट के मुताबिक, 24 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के जालौन में उरई थोक मंडी में गेहूं का न्यूनतम दाम लगभग ₹2900 प्रति क्विंटल देखा गया जोकि MSP से लगभग 23 % ज्यादा है। इतना ही नहीं महाराष्ट्र के अमरावती मंडी में गेहूं का थोक न्यूनतम भाव ₹2800 प्रति क्विंटल है तो वही राजस्थान की अलवर मंडी में गेहूं का थोक दाम लगभग 2810 रुपए प्रति क्विंटल देखने को मिल रहा है। हर जगह दाम MSP से ऊपर चल रहे हैं।
आटे के दाम ने तोड़े 15 साल के रिकॉर्ड
लगातार गेहूं की बढ़ती कीमतों ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है। गेहूं की कीमत बीते कई सप्ताह से लगातार बढ़ती नजर आ रही है वहीं इसका असर आटे की कीमतों पर पड़ रहा है। आटे की कीमतों ने बीते 15 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आटे की कीमत दिसंबर में ₹40 प्रति ग्राम पर पहुंच चुकी है। जो की जनवरी 2009 के बाद में सबसे ज्यादा कीमत है। महंगाई को कंट्रोल करने के लिए सरकार की सारी कोशिश से विफल जा रही है। जिससे कि सरकार को बड़ा झटका लगने की संभावना है।
गेहूं के दामों से कब मिलेगी राहत
एक्सपर्ट्स के मुताबिक पिछले तीन हफ्ते से आशंका जताई जा रही है कि गेहूं के खाद्य पदार्थों की कीमतों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ने वाला है। ऐसे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि गेहूं की कीमतों का दबाव मार्च तक बने रहने की संभावना है। इसके बाद किसान अपना स्टॉक निकलना शुरू कर देंगे। हालांकि इस बार रबी के सीजन में 293.11 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुवाई की गई है जो बीते साल की तुलना में 9 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। इस बार गेहूं का उत्पादन बहुत ज्यादा होने की संभावना जताई जा रही है। इसके बाद गेहूं की बढ़ती कीमतों से राहत मिल सकती है।