गेहूं के दामों में फिलहाल उतार चढ़ाव जारी है। गेहूं के दाम कभी कम हो रहे हैं तो कभी ज्यादा हो रहे हैं। फिलहाल सरकार गेहूं के दामों को नियंत्रित करने में लगी हुई है। क्योंकि गेहूं के दाम बढ़ते जा रहे हैं। जिसको नियंत्रित करने में सरकार कुछ खास कामयाब नहीं हो पाई है। किसानों के लिए यह अच्छी खबर है तो वही यह खबर सरकार की चिंता बढ़ा रही है। सरकार इस कोशिश में लगी हुई है कि वह जितनी जल्दी हो सके गेहूं के दामों को नियंत्रित कर सके लेकिन ऐसा करने में सरकार सफल नहीं हो पा रही है। आईए जानते हैं गेहूं के दामों का गणित क्या कहता है।
गेहूं के दामों में तेजी
फिलहाल गेहूं के दामों में तेजी देखने को मिल रही है। यह खबर सरकार की चिंता बढ़ा रही है। गेहूं के दाम बढ़ने का खास कारण यह है कि बीते कुछ 3 सालों से भारत में गेहूं की फसल का उत्पादन कम हो रहा है। जिसकी वजह से पब्लिक डिसटीब्यूशन की नीतियों के कारण गेहूं के सरकारी स्टॉक लगातार घटते जा रहे हैं। आपको बता दे कि भारत सरकार के स्टॉक में 1 दिसंबर तक सार्वजनिक गेहूं स्टार्ट 206 लाख टन था जो अब 2007 से लेकर 8 के बाद में नीचे आ चुका है। इस बात का मतलब यह है कि वितरण प्रणाली के लिए हर महीने लगभग 15 लाख टन गेहूं की जरूरत पड़ती है।
लेकिन इस हिसाब से अगर देखा जाए तो सरकार को अब नए गेहूं आने तक 60 लाख टन गेहूं की आवश्यकता पड़ेगी। क्योंकि सरकार के नियम के मुताबिक 1 अप्रैल को लगभग 74.6 लाख टन गेहूं का स्टॉक रखना बहुत जरूरी होता है। इसके मुताबिक सरकार के पास 71 लाख टन गेहूं खुले मार्केट में बेचने के लिए उपलब्ध है। बीते सालों में सरकार की तरफ से लगभग 100.9 लाख टन गेहूं खुले बाजार में भेज दिया गया था। लेकिन वही इस बार सीमित स्टॉक होने की वजह से सरकार की हस्तक्षेप क्षमता कम हो चुकी है। जिसकी वजह से लगातार गेहूं के रेट बढ़ते जा रहे हैं।
सरकार को खरीद में चुनौती
फिलहाल जिस हिसाब से गेहूं की कीमत सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य 2425 रुपए प्रति क्विंटल से बहुत ज्यादा चल रही है। अब ऐसे में इस बात की उम्मीद है कि मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों के किसान सरकारी एजेंसियों की जगह निजी खरीददारों को गेहूं बेच सकते हैं। आगे आने वाले समय में लक्ष्य के मुताबिक गेहूं मिलेगा ऐसी कोई संभावना नहीं है। बीते 3 सालों से यही स्थिति हम देखते आ रहे हैं।
आयात का विकल्प
फिलहाल विदेशी बाजारों की बात करें तो वहां गेहूं की कीमतें राहत देने वाली है। भारत की बजाय अभी विदेश में गेहूं के दाम बहुत कम चल रहे हैं। रूस की अगर बात करें तो इस समय रूस में गेहूं के दाम 230 डॉलर प्रति टन के आसपास बताए जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में 270 डॉलर प्रतिदिन गेहूं के भाव है। अगर विदेश से गेहूं मंगवाते हैं तो समुद्री भाड़ा और बीमा जोड़ने के बाद में आयातित गेहूं की कीमत लगभग 2290 से लेकर 2545 रुपए प्रति क्विंटल पड़ेगी जो कि एसपी के लगभग है।
आयात पड़ेगा महंगा
फिलहाल अगर गेहूं के आयात में सबसे बड़ा पेंच इस बात का है कि गेहूं के आयात पर 40% की सीमा शुल्क लागू की गई है। आयात शुल्क आयत गेहूं को बहुत महंगा कर देती है। लेकिन वही अगर सरकार शून्य शुल्क पर आयात की अनुमति प्रदान करती है तब 30 से 40 लाख टन गेहूं का आयात घरेलू आपूर्ति को स्थिर बना सकता है। लेकिन वहां एक समस्या बनती है कि अनाजों के आयात पर किसान नाराजगी जताते हैं जिसकी वजह से सरकार जल्दी-जल्दी अनाजों का आयात नहीं करती लेकिन फिलहाल कोई चुनाव न होने की वजह से यह फैसला लिया जा सकता है कि बाहरी देशों से गेहूं का आयात किया जाए।
क्या गेहूं में तेजी के आसार
सरकार की तरफ से अगर गेहूं के आयात का निर्णय नहीं लिया जाता है तो गेहूं की बढ़ती कीमतों को कंट्रोल में लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। फिलहाल गेहूं की नई फसल आने में लगभग 4 महीने का समय है। अभी के लिए स्टॉक लिमिट जैसे निर्णय गेहूं की बढ़ती कीमतों को रोकने में किसी प्रकार से कारागार साबित नहीं हुए हैं। इसीलिए ऐसा कहा जा सकता है कि आने वाले वक्त में दिल्ली में गेहूं के दाम ₹3300 का स्तर भी दिखा सकते हैं।