किसान साथियों, आज हम गेहूं की फसल में उपज बढ़ाने के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहराई से चर्चा करेंगे। गेहूं की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए विभिन्न कारकों पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है, जिनमें कल्ले की संख्या, बालियों का आकार, उनमें मौजूद दानों की संख्या और मोटाई आदि शामिल हैं। इन सभी कारकों पर गेहूं की कुल पैदावार निर्भर करती है। किसानों में यह आम धारणा है कि फसल के अंतिम चरण में विभिन्न उपाय करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, सच्चाई यह है कि गेहूं की फसल के उपज संबंधी मुख्य गुण, जिन्हें ‘yield attributes’ कहते हैं, उनका निर्धारण फसल के शुरुआती चरणों में ही हो जाता है। विशेषकर, पहली सिंचाई के समय की गई देखभाल से फसल की उत्पादकता तय होती है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि गेहूं की फसल में पहली सिंचाई का क्या महत्व है, इसका सही समय कब है और इस समय क्या-क्या पोषक तत्व देने चाहिए ताकि फसल की उपज अधिकतम हो। इसके साथ ही, हम समझेंगे कि क्राउन रूट इनीशिएशन (Crown Root Initiation) का चरण कैसे फसल की उपज को बढ़ाता है और इसे ध्यान में रखते हुए क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। आइए, अब इसे विस्तार से समझते हैं।
गेहूं की फसल में कल्ले
किसान भाइयों, गेहूं का फसल का उत्पादन उन कल्लों पर निर्भर करता है जिनमें बालियां बनती हैं। बाली बनने वाले प्रत्येक कल्ला फसल की उपज बढ़ाने में सहयोग करता है, लेकिन गेहूं के हर कल्ले में बाली नहीं निकलती। इसी प्रकार, कई बालियां भी होती हैं जिनमें दानों की संख्या कम होती है, और कुछ बालियों में दाने होते तो हैं, लेकिन उनकी मोटाई और वजन पूरा नहीं होता। इसलिए, गेहूं की उपज को बढ़ाने के लिए हमें कल्लों के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है।
साथियों, गेहूं के पौधे में जितने अधिक कल्ले बनेंगे, आपकी फसल की उत्पादन क्षमता उतनी ही अधिक होगी। अगर फसल में कल्लों की संख्या अधिक होगी तो आपके पौधों पर बालियों की संख्या भी बढ़ेगी, जिसके कारण बालियों में बने हुए दाने आपके उत्पादन को अधिक मात्रा में बढ़ाएंगे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि हर कल्ले पर बाली नहीं होती, इसलिए यह कोशिश करनी चाहिए कि पौधे के प्रत्येक कल्ले पर बाली हो।
बालियों का आकार
किसान साथियों, गेहूं की फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए आपके पौधों की बालियों का आकार बड़ा और स्वस्थ होना जरूरी है। बड़ी और स्वस्थ बालियों में दानों की संख्या अधिक होती है, जो आपकी फसल की उत्पादन और गुणवत्ता को बढ़ाती है। बालियों के आकार के साथ-साथ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि बालियों में दानों की संख्या कितनी है एवं दानों की मोटाई पर्याप्त है या नहीं। कई बार बालियां बाहर से लंबी और स्वस्थ दिखती हैं, लेकिन उनके अंदर दानों की संख्या कम होती है, और दाने आकार में भी छोटे होते हैं। ये सभी कारण आपकी फसल के उत्पादन को प्रभावित करते हैं। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई इन सब बातों को प्रभावित करती है, इसलिए इन बातों का ध्यान रखते हुए पहली सिंचाई का योगदान समझना महत्वपूर्ण है।
पहली सिंचाई का महत्व
किसान साथियों, ज्यादातर किसान गेहूं की फसल में पहली सिंचाई 20 से 25 दिन के बीच में कर देते हैं, जबकि यह तरीका हमेशा लाभकारी नहीं होता। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई का सही समय खेत की मिट्टी की नमी, मौसम, और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करता है। पहली सिंचाई के समय पौधों को पानी की सही मात्रा देना बहुत जरूरी है ताकि जड़ों का सही विकास हो सके। गेहूं के प्रारंभिक चरण में जड़ें केवल शुरुआती 10-15 दिनों तक पौधों को पोषक तत्व प्रदान करती हैं। इसके बाद, 20 दिनों के बाद जड़ों का दूसरा चरण शुरू होता है, जिसे क्राउन रूट इनीशिएशन कहा जाता है। इस दौरान मुख्य जड़ें एक संरचना का निर्माण करती हैं, जो पौधे को पोषक तत्व देने में सहायक होती हैं। जब पौधे की उम्र 20-25 दिन की हो जाती है, तो इसकी जड़ों की वृद्धि तेज हो जाती है और क्राउन रूट बनते हैं। यह संरचना आगे स्थायी जड़ों का आधार बनती है, जो फसल को पूरे मौसम पोषण देती है। इस समय पौधों में कल्ले निकलने शुरू हो जाते हैं, जो उपज बढ़ाने में सहायक होते हैं। इस समय फसल में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए ताकि क्राउन रूट का विकास सही तरीके से हो सके।
पहली सिंचाई के समय किन पोषक तत्वों का प्रयोग करें?
दोस्तों, गेहूं की पहली सिंचाई के समय फास्फोरस, पोटाश, सल्फर आदि उर्वरकों का उपयोग फसल के लिए काफी फायदेमंद होता है। फास्फोरस जड़ों के विकास के लिए आवश्यक होता है और पौधों को मिट्टी से पोषक तत्व खींचने में सहायक होता है। पोटाश पौधों की पानी अवशोषण क्षमता को बढ़ाता है, जिससे नमी बनी रहती है और पौधा स्वस्थ रहता है। सल्फर भी पौधों के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है। सल्फर के कारण दानों की गुणवत्ता और उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। पहली सिंचाई के साथ इन सभी उर्वरकों का उचित मात्रा में उपयोग आवश्यक है। पहली सिंचाई हल्की करें ताकि पौधों की जड़ें मजबूत रहें। बहुत अधिक पानी देने से जड़ों में कमजोरी आ सकती है, जिससे पौधों की बढ़वार प्रभावित होती है। नमी की कमी से भी जड़ों का विकास रुक सकता है, जिससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।
पहली सिंचाई का उत्पादन पर प्रभाव
दोस्तों, गेहूं की फसल में पहली सिंचाई का समय और इसके साथ किए गए पोषण का फसल के उत्पादन पर गहरा असर होता है। जैसे-जैसे फसल का विकास होता है, पौधों में कल्लों की संख्या बढ़ने लगती है। समय पर पहली सिंचाई करने से कल्लों में अधिक बाली बनती है और ये काफी स्वस्थ रहते हैं।
स्वस्थ कल्लों में बालियों की संख्या और आकार बढ़ने से फसल की उपज में वृद्धि होती है। इसलिए, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि गेहूं की फसल में पहली सिंचाई समय पर करें और बुवाई के समय दिए गए पोषक तत्वों की कमी को पूरी करें ताकि फसल में किसी पोषक तत्व की कमी न हो। इससे आपकी फसल उच्च गुणवत्ता और अधिक उत्पादन वाली होगी।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।