अभी खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही रबी सीजन की फसलों की बुआई का समय भी हो गया है। जिसको देखते हुए पूसा वैज्ञानिकों ने दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के लिए गेहूं, सरसों, मटर, गाजर, मूली, गोभी आदि फसलों की बुआई को लेकर सलाह जारी की है। वहीं किसानों को धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला देने या पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग कर उसका खाद बनाने के लिए कहा गया है।
गेहूं की खेती के लिए सलाह
पूसा कृषि वैज्ञानिकों ने वर्तमान मौसम को ध्यान रखते हुए किसानों को सलाह दी है कि वे गेंहू की बुवाई हेतु तैयार खेतों में पलेवा तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। पलेवे के बाद यदि खेत में ओट आ गई हो तो उसमें गेहूँ की बुवाई कर सकते है। सिंचित परिस्थिति के लिए उन्नत किस्मों जैसे एच. डी. 3385, एच. डी. 3386, एच. डी. 3298, एच. डी. 2967, एच. डी. 3086, एच. डी. सी.एस. डब्लू. 18, ड़ी.बी.डब्लू. 370, ड़ी.बी.डब्लू. 371, ड़ी.बी.डब्लू. 372, ड़ी.बी.डब्लू. 327 किस्म की बुआई करें। किसान बुआई के लिए 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करें।
जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाईरिफाँस 20 ईसी 5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर होनी चाहिये।
सरसों की खेती के लिए सलाह
वहीं वे किसान जो सरसों की खेती करना चाहते हैं उन किसानों को बुआई में ओर अधिक देरी ना करने की सलाह दी गई है। मिट्टी जांच के बाद यदि गंधक की कमी हो तो 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई पर डालें। बुवाई से पहले मिट्टी में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। सरसों की खेती के लिए किसान उन्नत किस्में जैसे पूसा विजय, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30, पूसा सरसों-31, पूसा सरसों-32 आदि का चयन करें। इसकी बुआई के लिए बीज दर 1.5-2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड का उपयोग करें।
बुवाई से पहले खेत में नमी के स्तर को अवश्य ज्ञात कर ले ताकि अंकुरण प्रभावित न हो। बुवाई से पहले बीजों को केप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें। बुवाई कतारों में करना अधिक लाभकारी रहता है। कम फैलने वाली किस्मों की बुवाई 30 सें.मी. और अधिक फैलने वाली किस्मों की बुवाई 45-50 सें.मी. दूरी पर बनी पंक्तियों में करें। विरलीकरण द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. कर ले। समय पर बोई गई सरसों की फ़सल में विरलीकरण तथा खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें।
मटर की खेती के लिए सलाह
तापमान को ध्यान में रखते हुए मटर की बुवाई में ओर अधिक देरी न करें अन्यथा फसल की उपज में कमी होगी तथा कीड़ों का प्रकोप अधिक हो सकता है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। किसान मटर की उन्नत किस्में जैसे पूसा प्रगति, आर्किल आदि का प्रयोग करें। बीजों को कवकनाशी केप्टान या थायरम 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर उपचार करें उसके बाद फसल विशेष राईजोबियम का टीका अवश्य लगायें। गुड़ को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और राईजोबियम को बीज के साथ मिलाकर उपचारित करके सूखने के लिए किसी छायेदार स्थान में रख दें तथा अगले दिन बुवाई करें।
गाजर की खेती के लिए सलाह
इस मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ों पर कर सकते है। बुवाई से पहले किसान मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। किसान गाजर की उन्नत किस्म पूसा रूधिरा की बुआई कर सकते हैं, इसके लिए बीज दर 2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ का उपयोग करें। बुवाई से पहले बीज को केप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें तथा खेत में देसी खाद, पोटाश और फाँस्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है जिससे बीज की बचत तथा उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
किसान इन सब्जी फसलों की कर सकते हैं बुआई
पूसा वैज्ञानिकों ने किसानों को इस मौसम में इस समय सरसों साग की किस्म पूसा साग-1; मूली की किस्म जापानी व्हाइट, हिल क्वीन, पूसा मृदुला (फ़्रेंच मूली); पालक की क़िस्म ऑल ग्रीन, पूसा भारती; शलगम किस्म पूसा स्वेती या स्थानीय लाल किस्म; बथुआ की किस्म पूसा बथुआ-1; मेथी की किस्म पूसा कसुरी; गांठ गोभी की किस्म व्हाईट वियना, पर्पल वियना तथा धनिया किस्म पंत हरितमा या संकर किस्मों की बुवाई मेड़ों (उथली क्यारियों) पर करने की सलाह दी है।
इसके अलावा यह समय ब्रोकली, फूलगोभी तथा बन्दगोभी की पौधशाला तैयार करने के लिए उपयुक्त है। पौधशाला भूमि से उठी हुई क्यारियों पर ही बनायें। जिन किसानों की पौधशाला तैयार है वह मौसस को ध्यान में रखते हुए पौध की रोपाई ऊंची मेड़ों पर करें। इस मौसम में किसान गेंदे की तैयार पौध की मेड़ों पर रोपाई करें। किसान ग्लेडिओलस की बुवाई भी इस समय कर सकते है।