नई दिल्ली / बीजिंग: सितंबर में चीनी रिफाइनर सऊदी अरब से कच्चे तेल की खरीद कम कर रहे हैं और सस्ते दामों पर मिलने वाले रूसी “यूरल्स” तेल की ओर रुख कर रहे हैं। लंदन की एनर्जी एस्पेक्ट्स लिमिटेड की रिपोर्ट के अनुसार, रूस का तेल मध्य पूर्व की तुलना में ज्यादा प्रतिस्पर्धी दाम पर मिल रहा है। फिलहाल रूस चीन के कुल तेल आयात का लगभग 17% हिस्सा रखता है, जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि किसी एक स्रोत से 20% से अधिक तेल लेना जोखिमभरा हो सकता है।
ब्लूमबर्ग के डेटा के मुताबिक, सितंबर में सऊदी अरामको चीन को 43 मिलियन बैरल तेल भेजेगा, जो अगस्त के 51 मिलियन बैरल से कम है।
भारत पर अमेरिका का टैरिफ हमला
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जिसका कारण भारत का रूस से ऊर्जा आयात जारी रखना बताया गया है। यह टैरिफ 28 अगस्त से लागू होंगे।
बीजिंग ने रूस से तेल खरीद को “वैध” बताते हुए अमेरिका के दबाव का विरोध किया है, लेकिन इसके बावजूद वॉशिंगटन ने चीन पर ऐसे कदम नहीं उठाए। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि,
“जिन देशों ने भारत की आलोचना की है, वे खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं। भारत को अलग-थलग करना अनुचित है।”
रूस पर भारत की तेल निर्भरता
भारत की रूस से तेल निर्भरता FY20 में 1.7% थी, जो FY25 में बढ़कर 35.1% हो गई है। इससे रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि रूस से तेल खरीद बंद करना आर्थिक रूप से बड़ा झटका नहीं होगा, लेकिन राजनीतिक रूप से यह संदेश देगा कि भारत अमेरिकी दबाव में झुक गया है।
चीन को मिली टैरिफ छूट
व्हाइट हाउस ने चीन को 90 दिन का टैरिफ समझौता विस्तार दिया है, जिससे चीन पर लगाए जाने वाले 145% तक टैरिफ की योजना फिलहाल टल गई है। यह दर्शाता है कि अमेरिका चीन के प्रति कूटनीतिक लचीलापन बरत रहा है, जबकि भारत पर सख्त रुख अपना रहा है।
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