चीन में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तियानजिन पहुंचे। वहां पहुंचने के कुछ ही घंटों बाद उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की, लेकिन बातचीत का सबसे अहम मुद्दा लिपुलेख विवाद रहा।
दरअसल, हाल ही में भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे से व्यापार दोबारा शुरू करने पर सहमति जताई थी, जिस पर नेपाल ने आपत्ति दर्ज कराई है। नेपाल का कहना है कि यह इलाका उसकी संप्रभुता के अंतर्गत आता है। नेपाल के विदेश सचिव अमृत बहादुर राय ने जानकारी दी कि प्रधानमंत्री ओली ने बैठक में यह मुद्दा मजबूती से उठाया। उन्होंने कहा कि 1816 की सुगौली संधि के अनुसार महाकाली नदी के पूर्व का क्षेत्र नेपाल की भूमि है और भारत-चीन के बीच हुआ समझौता नेपाल की अनुमति के बिना हुआ है, जिसे नेपाल स्वीकार नहीं कर सकता। ओली ने स्पष्ट किया कि लिपुलेख को किसी भी व्यापारिक समझौते का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए।
भारत-चीन समझौते पर नेपाल की नाराज़गी
18 अगस्त को नई दिल्ली में भारत और चीन ने लिपुलेख दर्रे से व्यापार बहाल करने की घोषणा की थी। यह व्यापार 1954 से चलता आ रहा था, लेकिन हाल के वर्षों में महामारी और अन्य कारणों से बाधित हो गया था। अब इसके पुनः आरंभ पर नेपाल ने कड़ा विरोध जताया है। नेपाल सरकार का कहना है कि लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी उसके आधिकारिक नक्शे और संविधान में देश का अभिन्न हिस्सा दर्ज हैं, इसलिए बिना नेपाल की सहमति कोई समझौता मान्य नहीं होगा।
चीन से उम्मीदें
प्रधानमंत्री ओली के निजी सचिवालय द्वारा जारी बयान में कहा गया कि नेपाल को उम्मीद है कि चीन इस संवेदनशील मामले में उसके साथ खड़ा रहेगा। बीजिंग स्थित नेपाली दूतावास ने भी एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पुष्टि की कि ओली ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने लिपुलेख मुद्दे को सीधे तौर पर उठाया और साफ किया कि यह नेपाल की संप्रभु भूमि है।
वार्ता को बताया सार्थक
लगभग एक घंटे चली इस बैठक के बाद प्रधानमंत्री ओली ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (ट्विटर) पर लिखा कि उनकी वार्ता ‘फलदायी’ रही। उन्होंने कहा कि लगातार दूसरे वर्ष राष्ट्रपति शी से मुलाकात सुखद अनुभव रहा। दोनों नेताओं ने आपसी सहयोग और विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की समीक्षा की। साथ ही, उन्होंने SCO प्लस सम्मेलन में आमंत्रण के लिए राष्ट्रपति शी को धन्यवाद दिया।
SCO में नेपाल की बढ़ती सक्रियता
नेपाल 2016 से SCO का ‘डायलॉग पार्टनर’ है। अब वह ऑब्जर्वर या पूर्ण सदस्य बनने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है ताकि क्षेत्रीय मंच पर उसकी मौजूदगी और मजबूत हो सके। पूर्ण सदस्यता से नेपाल को चीन, भारत, रूस, ईरान और मध्य एशियाई देशों के शीर्ष नेताओं से सीधा संवाद करने का अवसर मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल की यह पहल उसकी संतुलित विदेश नीति को दर्शाती है—जहां एक ओर वह भारत के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को महत्व देता है, वहीं दूसरी ओर चीन के साथ आर्थिक सहयोग को भी समान रूप से अहम मानता है।
