भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात साल बाद अपनी पहली चीन यात्रा पर पहुंचे। जापान के टोक्यो में कार्यक्रम खत्म करने के बाद पीएम मोदी सीधे चीन के तियानजिन शहर पहुंचे, जहां उनका भव्य स्वागत रेड कॉर्पेट पर किया गया। स्वागत समारोह की तस्वीरें सामने आते ही हर भारतीय गर्व और उल्लास से भर गया।
SCO शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे मोदी
पीएम मोदी इस बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन पहुंचे हैं। यहां उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समेत कई शीर्ष नेताओं से होने वाली है। मोदी ने तियानजिन पहुंचते ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा –
“चीन के तियानजिन पहुंच गया हूं। एससीओ शिखर सम्मेलन में विचार-विमर्श और विभिन्न विश्व नेताओं से मुलाकात के लिए उत्सुक हूं।”
अमेरिका के लिए संकेत?
मोदी का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और अमेरिका के रिश्तों में तनाव देखा जा रहा है। अमेरिका ने हाल ही में रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद करने से भारत के इनकार के बाद भारतीय निर्यात पर टैरिफ दोगुना करके 50% तक कर दिया। इस कदम ने भारत और वाशिंगटन के बीच लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक सहयोग पर असर डाला है।
न्यूयॉर्क टाइम्स और कई जर्मन अखबारों ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अमेरिका भारत से बातचीत को लेकर बेहद उत्सुक है, लेकिन पीएम मोदी ने फिलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति की कोशिशों को खास तवज्जो नहीं दी। यहां तक कहा गया कि मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप का फोन तक रिसीव नहीं किया।
बदलता भारत
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की यह सोच थी कि भारत अब भी 1990 के दशक वाला देश है जिसे आसानी से दबाव में लाया जा सकता है। लेकिन आज का भारत 2025 का भारत है, जो किसी भी मुद्दे पर अपनी मजबूत और स्वतंत्र नीति के साथ खड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी का चीन की धरती पर दिया गया शुरुआती बयान यही संकेत देता है कि भारत अब अमेरिका की मनमानी टैरिफ नीति या दबाव की राजनीति को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।
वैश्विक समीकरण पर असर
तियानजिन यात्रा भारत के लिए सिर्फ कूटनीतिक नहीं बल्कि रणनीतिक मायनों में भी अहम है। एक तरफ अमेरिका भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं मोदी की यह यात्रा भारत की बहुपक्षीय कूटनीति और स्वतंत्र विदेश नीति का संदेश देती है। रूस और चीन जैसे देशों के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकी अमेरिका के लिए एक कड़ा संदेश है कि नई दिल्ली अब केवल वाशिंगटन पर निर्भर नहीं है।
नतीजा
पीएम मोदी की यह यात्रा आने वाले समय में भारत के विदेश नीति के रुख और वैश्विक समीकरणों पर गहरा असर डाल सकती है। अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच चीन और रूस के साथ करीबी भारत के लिए नए अवसर भी लेकर आ सकती है।

 
			 
                                 
                              
		 
		 
		 
		