Supreme Court Important Decision In Cheque Bounce : आज के इस दुनिया में सबसे ज्यादा लोग डिजिटल माध्यम से पैसे का लेनदेन कर रहे हैं। लेकिन आज भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो बड़ी पेमेंट चेक के माध्यम से लेते हैं या फिर किसी को देते हैं। चेक बाउंस के बारे में भी आप लोगों ने जरूर सुना होगा। सुप्रीम कोर्ट के तरफ से अभी हाल ही में चेक बाउंस के मामले पर हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया है आईए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के तरफ से महत्वपूर्ण फैसला क्या लिया गया है?
Supreme Court Important Decision In Cheque Bounce
चेक एक ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से लाखों रुपए की पेमेंट बहुत ही आसान तरीके से हो जाती है। चेक जारी करते समय बहुत सी सावधानियां बरतनी चाहिए। चक में की गई गलतियां चेक बाउंस होने का भी कारण बन सकता है और चेक बाउंस होना कोई छोटी-मोटी बात नहीं होता है।
चेक बाउंस (Cheque Bounce) होना भारत में एक अपराध जैसा है। और इसके लिए सजा का प्रावधान भी है। चेक बाउंस के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा फैसला सुनाया है। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के तरफ से बड़ी संख्या में चेक बाउंस के मामले के लंबित होने पर गंभीर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यह कहा गया कि यदि इस मामले में दोनों ही पद समझौता करने के लिए इच्छुक हैं तो कोर्ट को कानून के तहत समझौता योग्य अपराधों के निपटारे को बढ़ावा देना चाहिए।
आपकी जानकारी के लिए बता दे की चेक बाउंस (Cheque Bounce) मामले में पी कुमार सामी नाम के एक व्यक्ति की सजा को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए अमानुल्लाह की पीठ ने रद्द कर दिया है। वही कोर्ट के तरफ से यह पाया गया कि मामला दर्ज होने के बाद दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया था और बाद में शिकायतकर्ता को 5.25 लख रुपए का भुगतान दूसरे पक्ष की ओर से किया गया था। इसे पूरा मामला लगभग निपट ही गया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जस्टिस के साथ पीठ ने 11 जुलाई को इस मामले में आदेश दिया था। आदेश में यह कहा गया था कि कोर्ट ने चेक बाउंस होने से जुड़ी मामले बड़ी संख्या में लंबित है और इन्हीं मामलों का लंबित होना न्यायिक प्रणाली के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। कोर्ट की तरफ से यह भी कहा गया था कि दंडात्मक पहलू के उपाय के जगह प्रतिपूरक पहलू को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसे लेकर या सख्त रूल बनाए जाना चाहिए।
Cheque Bounce Case मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दी खास टिप्पणी
चेक बाउंस का मामला फिर अदालत में दर्ज हुआ। सनी के दौरान पीठ के तरफ से कहा गया कि चेक का बाउंस होना केवल एक नियामक अपराध है। यह सभी को याद रखना होगा कि इस मंत्र सार्वजनिक हित के मध्य नजर ही अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है ताकि संबंधित नियमों की विश्वसनीयता बनी रहे और किसी भी प्रकार की कोई लापरवाही ना हो सके।
इस पर अदालत की तरफ से अपने आदेश में यह भी कहा गया कि पशुओं के बीच समझौते और परिस्थितियों की समग्रत पर विचार करते हुए हम इस अपील को स्वीकार करते हैं। कोर्ट के तरफ से अप्रैल 2019 के लागू आदेश के साथ-साथ निचली अदालत के 16 अक्टूबर 2012 के आदेश को भी रद्द करने और बड़ी करने का आदेश दिया है।
हाई कोर्ट के फैसले को Supreme Court की तरफ से किया गया खारिज
चेक बाउंस के इस मामले के बारे में जानकारी देते हुए पीछे ने कहा कि साल 2006 में पी कुमारसामी उर्फ गणेश ने प्रतिवादी एक सुब्रमण्यम से 525000 का उधर नहीं चुकाया था। बाद में अपनी भागीदारी फॉर्म मेजर न्यू वन एक्सपोर्ट के नाम पर 5.25 लख रुपए का चेक भी जारी कर दिया था। लेकिन अपर्याप्त धनराशि के कारण चेक बाउंस हो गया था इसलिए प्रतिवादी ने अपील कर्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
इस मामले पर निजी अदालत की तरफ से अपील कर्ताओं को दोषी कराया गया इसके बाद एक वर्ष की कारावास की सजा भी सुनाई गई । कुमार सामी ने दोस्त सिद्धि को चुनौती दी। उसने निचली अदालत के निष्कर्ष को पलट दिया। इसके बाद कोर्ट ने उसे तथा कंपनी को बड़ी कर दिया लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने एप्लिया अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और अपील कर्ताओं को दोषी ठहरने के निचली अदालत को आदेश को बहाल करने का आदेश दिया था।
इसके बाद कुमारसामी और फॉर्म ने हाई कोर्ट के आदेश को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी। उसी के परिपेक्ष में यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया है।