छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में ग्रामीण महिलाओं ने गेंदे की खेती शुरू कर आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) की बिहान योजना के तहत बनी स्व-सहायता समूहों ने बैंक लोन और ट्रेनिंग लेकर यह कदम उठाया। पहले घर के कामों में व्यस्त रहने वाली महिलाएँ अब फूलों की खेती से अच्छी कमाई कर रही हैं। मई-जून में उद्यानिकी विभाग की मदद से 50-55 महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई, जिसके बाद कांकेर विकासखंड के गाँवों में 10-20 डिसमिल क्षेत्र में रोपाई शुरू हुई। कुल एक एकड़ में 17,600 पौधे लगाए गए, और 50 डिसमिल में अतिरिक्त 2,700 पौधे। इससे न सिर्फ परिवार की आय बढ़ी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिली।
गेंदे के फूलों से अच्छी कमाई
मुरडोंगरी की पूजा स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने 20-30 डिसमिल में की गई खेती से अब तक 69 किलो फूल उपजाए। इन्हें 60-70 रुपये प्रति किलो के भाव से बेचकर 4,000-5,000 रुपये की कमाई हुई। आने वाले महीनों में उपज और बढ़ने की उम्मीद है। गेंदे की खेती कम समय में शुरू हो जाती है और पूरे साल चल सकती है।
छत्तीसगढ़ की जलवायु में यह फसल अच्छी पैदावार देती है – औसतन 60-70 क्विंटल प्रति एकड़। फूलों की माँग धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में हमेशा रहती है, जिससे स्थानीय बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। महिलाओं ने बताया कि यह काम घर के साथ आसानी से संभाला जा सकता है, और लोन चुकाने के बाद शुद्ध मुनाफा उनके पास रह जाता है।
गेंदे की खेती के लिए सही समय और तरीके
गेंदे की खेती छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों में साल भर संभव है, लेकिन बरसात के बाद (अगस्त-सितंबर) बुवाई सबसे अच्छी रहती है। नर्सरी के लिए बीज जून-जुलाई में बोएँ, जो 25-30 दिन में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक एकड़ के लिए 100-200 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी चुनें, pH 6.5-7.5 हो। बीज बोने से पहले कैप्टान जैसे फंगीसाइड से उपचार करें। रोपाई 45×45 सेमी (अफ्रीकन गेंदा) या 30×30 सेमी (फ्रेंच गेंदा) दूरी पर करें। खाद के लिए 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालें, साथ ही नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग करें। सिंचाई हल्की रखें, ताकि पानी जमा न हो।
ट्रेनिंग और भविष्य की योजनाएँ
बिहान योजना के तहत महिलाओं को बैंक लिंकेज से लोन मिला, और उद्यानिकी विभाग ने उन्नत किस्मों जैसे पूसा नारंगी गेंदा या पूसा अर्पिता की ट्रेनिंग दी। वर्तमान में 18 सितंबर से आरसेटी में 35 महिलाओं को नई ट्रेनिंग चल रही है, जिसमें आधुनिक तकनीकें जैसे ड्रिप इरिगेशन और कीट प्रबंधन सिखाया जा रहा है। कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर और सीईओ हरेश मंडावी ने कहा कि यह पहल अन्य जिलों में फैलेगी, ताकि महिलाएँ फूलों की बिक्री से ज्यादा आय कमा सकें। रोगों से बचाव के लिए नेम ऑयल जैसे जैविक कीटनाशक यूज करें, और फूलों को सुबह जल्दी तोड़ें ताकि ताजगी बनी रहे।
महिलाओं के लिए प्रेरणा और सलाह
कांकेर की यह पहल दिखाती है कि ग्रामीण महिलाएँ खेती-बागवानी से आर्थिक रूप से मजबूत हो सकती हैं। गेंदे की खेती कम लागत वाली है – प्रति एकड़ 20-30 हजार रुपये खर्च आता है, जबकि उपज से 1-1.5 लाख का मुनाफा संभव। किसानों को सलाह है कि स्थानीय कृषि केंद्र से संपर्क करें और समूह बनाकर काम करें। यह न सिर्फ आय बढ़ाएगा, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी होगा।