भारत में लोकसभा चुनावों के दौरान एक वोट पर होने वाले खर्च का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनावों में, जो कि कई चरणों में आयोजित किए जा रहे हैं, अनुमान है कि प्रति वोटर खर्च लगभग 1000 रुपये होगा। यह आंकड़ा पिछले चुनावों की तुलना में काफी अधिक है और इसके पीछे कई कारण हैं।
चुनावी खर्च का इतिहास
भारत में पहले आम चुनाव 1951-52 में हुए थे, जब प्रति वोटर खर्च केवल 60 पैसे था। उस समय कुल खर्च मात्र 10.5 करोड़ रुपये था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, चुनावी खर्च में लगातार वृद्धि होती गई। उदाहरण के लिए, 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्च 3870 करोड़ रुपये था, जो 2019 में बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये हो गया। अब 2024 के चुनाव में यह खर्च लगभग 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने की संभावना है.
एक वोट पर खर्च का विश्लेषण
चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्तमान समय में लगभग 96.8 करोड़ मतदाता हैं। यदि कुल अनुमानित खर्च को इस संख्या से विभाजित किया जाए, तो प्रति वोटर लगभग 1000 रुपये का खर्च आएगा[1][6]. यह खर्च केवल मतदान प्रक्रिया से संबंधित नहीं है, बल्कि इसमें चुनावी प्रबंधन, सुरक्षा, मतदान केंद्रों की व्यवस्था और अन्य प्रशासनिक लागतें भी शामिल हैं।
खर्च के प्रमुख घटक
- प्रशासनिक लागत: चुनाव आयोग अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को दैनिक भत्ता देता है। इसके अलावा, कर्मचारियों के ट्रांसपोर्ट, खाने और रहने का खर्च भी शामिल होता है.
- वोटिंग सामग्री: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की खरीद और रखरखाव पर भी काफी धन खर्च होता है। इसके अलावा मतदाता पहचान पत्र बनाने और वोटिंग इंक जैसी सामग्रियों पर भी लागत आती है.
- सुरक्षा: चुनावों के दौरान सुरक्षा व्यवस्था पर भी भारी खर्च होता है, जिसमें पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों की तैनाती शामिल है.
क्यों बढ़ रहा है चुनावी खर्च?
चुनावों में बढ़ते खर्च के पीछे कई कारण हैं:
– मतदाताओं की संख्या में वृद्धि: पिछले कुछ दशकों में मतदाताओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे मतदान केंद्रों और संसदीय क्षेत्रों की संख्या भी बढ़ी है.
– चुनाव प्रक्रिया की जटिलता: भारत जैसे विशाल देश में चुनाव कराना एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें विभिन्न चरणों में मतदान करना और दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचना शामिल है.
– राजनीतिक दलों का बढ़ता प्रभाव: राजनीतिक दलों द्वारा धन-बल का उपयोग भी चुनावी खर्च को बढ़ाता है। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और उम्मीदवारों को अधिक धन व्यय करना पड़ता है.
भारत में एक वोट पर होने वाला खर्च न केवल लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे चुनावी प्रक्रिया समय के साथ विकसित हुई है। हालांकि यह खर्च बढ़ रहा है, लेकिन यह आवश्यक है कि चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से हों ताकि जनता का विश्वास बना रहे।