नदियां फिर से बहेंगी तथा किसानों को कमाई का एक नया जरिया मिलेगा, सरकार द्वारा इस बड़ी पहल से होगा सभी को फायदा-
किसानों के लिए प्रशासन की बड़ी पहल
किसानों के लिए सरकार कई तरह से प्रयास करती है। वहीं पर्यावरण संरक्षण पर भी काम किया जाता है। जिसमें आज बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के कानपुर के उन किसानों की जो की नून नदी के आसपास रहते हैं। दरअसल, नदी सूखने की कगार पर थी। लेकिन अब उस नून नदी को जीवन मिल गया है। जलस्तर बढ़ा है। जिसका एक कारण भारी बारिश भी हो सकती है। लेकिन प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन ने भी कड़ी मेहनत की थी जिसके बाद नून नदी को जीवित देखा जा सकता है। उसमें पानी भरा हुआ दिखाई दे रहा है।
जिससे किसानों को भी फायदा होगा। किसानों की खुशी देखने लायक बन रही है। शिवराजपुर और आसपास के इलाकों में जहां गेंदा, गुलाब, गुड़हल के फूल खिलते थे, अब नून नदी के किनारे तालाबों में कमल की खेती होगी। जिससे कई किसानों को फायदा होने वाला है। जिसमें किसानों ने शुरुआत भी कर दी है।
कमल के फूलों की भारी है डिमांड
कमल के फूलों की डिमांड भी समय के साथ बढ़ रही है। दिवाली जैसे त्योहारों में पूजा पाठ के समय कमल की फूलों की मांग रहती है। जिसमें किसानों को मुंह मांगी कीमत मिलती है। वही सजावट के तौर पर भी कमल के फूल मांग में है और औषधि रूप से भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। जिससे इसकी खेती में किसानों को फायदा है। अगर नून नदी के किनारे पर बने तालाबों में पानी रहता है और इस कमल की खेती किसान कर लेंगे तो अच्छी आमदनी हो जाएगी।
जिसमें बताया जा रहा है की बरसात के मौसम में ही 60 किसानों ने कमल के बीज डाल दिए हैं। वह बताते हैं कि इसकी खेती में मेहनत और खर्चा दोनों कम आता है। बीज लगाने के बाद अपने आप पनप जाएगा, अन्य फसलों के मुकाबले इसमें ज्यादा झंझट भी नहीं रहती है, बस खेती का तजुर्बा किसानों को होना चाहिए।
नाबार्ड के प्रोजेक्ट से मजदूर और किसानों को भी फायदा
किसानों के लिए कई तरह की सरकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। जिसमें नाबार्ड को इस प्रोजेक्ट के लिए भी प्रस्ताव भेजा गया है। जिसमें नून नदी और अन्य जल स्रोतों के किनारे कमल की खेती का प्रस्ताव है। ऐसे से उस जमीन का इस्तेमाल होगा। तालाब में कमल की खेती से किसानों के जीवन में खुशहाली आएगी। तथा सूखे तालाबों में पानी दिखाई देगा।
कमल की खेती के लिए बताया जा रहा है कि बीजों को पहले थोड़ा सा अंकुरित करना होता है, फिर उन्हें घिसकर तालाब में डाल दिया जाता है, जब तालाब का पानी 6 से 12 इंच का गहरा होता है तो इसकी खेती कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें बढ़िया 6 से 8 घंटे की धूप आनी चाहिए तीन से चार महीने में यह पौधे तैयार हो जाते हैं।
नाबार्ड के परियोजनाओं से मजदूरों और किसानों दोनों को फायदा होता है। नाबार्ड तो वैसे भी ग्रामीण विकास और कृषि क्षेत्र पर कार्य करती है, जिससे मजदूरों को रोजगार और किसानों को भी लाभ हो रहा है।