HI 8737 गेहूं की किस्म: भारत में गेहूं की खेती किसानों की रीढ़ है। हर साल लाखों किसान रबी सीजन में इस फसल को बोकर अपनी आजीविका चलाते हैं। लेकिन बदलते मौसम, मिट्टी की कमी और रोगों की समस्या ने किसानों को नई चुनौतियां दी हैं। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की नई खोजें उम्मीद की किरण बनी हुई हैं।
मध्य भारत के किसानों के लिए एक ऐसी ही क्रांतिकारी किस्म है पूसा अनमोल HI 8737। यह ड्यूरम गेहूं की उन्नत किस्म न केवल उच्च पैदावार देती है, बल्कि रोग प्रतिरोधी और पोषक तत्वों से भरपूर भी है। 2015 में रिलीज हुई यह किस्म आज भी किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है। आइए, इसकी विस्तृत जानकारी जानते हैं, जो आपके खेत को सोना उगलने वाला बना सकती है।
पूसा अनमोल HI 8737 गेहूं की उत्पत्ति
पूसा अनमोल HI 8737 की उत्पत्ति IARI के इंदौर क्षेत्रीय स्टेशन से हुई है। यह HI 8177/HI 8158//HI 8498 के क्रॉस से विकसित की गई है। केंद्रीय उप-समिति फसल मानकों, अधिसूचना और कृषि फसलों की किस्मों की रिलीज ने इसे सिंचित, समय पर बोई जाने वाली स्थितियों के लिए मंजूरी दी। मध्य क्षेत्र के लिए विशेष रूप से अनुशंसित यह किस्म मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा और उदयपुर डिवीजन तथा उत्तर प्रदेश के झांसी डिवीजन (बुंदेलखंड क्षेत्र) में चमत्कार दिखा रही है। रिलीज के समय से ही वैज्ञानिकों ने इसे ड्यूरम गेहूं की श्रेष्ठ किस्म घोषित किया, क्योंकि यह न केवल पैदावार बढ़ाती है, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधारती है।
उच्च पैदावार की गारंटी
इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है इसकी उच्च पैदावार क्षमता। परीक्षणों में इसकी अधिकतम उपज 78 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दर्ज की गई है, जबकि औसत उपज 53.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। किसानों के फीडबैक के अनुसार, अच्छी देखभाल से यह 92 क्विंटल तक भी पहुंच सकती है। अन्य ड्यूरम किस्मों जैसे MPO 1215 और HI 8498 से 2.5% से 7.2% अधिक पैदावार देती है। मंदसौर जिले के एक अध्ययन में, सीमित सिंचाई वाली स्थितियों में इसकी उपज 48.62 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रही, जो स्थानीय किस्म लोक-1 से 38% अधिक थी। यह आंकड़े बताते हैं कि पूसा अनमोल HI 8737 न केवल बड़े किसानों के लिए, बल्कि छोटे जोत वालों के लिए भी लाभदायक है।
रोग प्रतिरोधी और मजबूत बनावट
रोग प्रतिरोध इसकी दूसरी मजबूत कड़ी है। यह स्टेम रस्ट (Sr9e+2+), लीफ रस्ट (Lr23+) और करनाल बंट के खिलाफ उच्च स्तर का प्रतिरोध दिखाती है। माहू कीट से भी यह सुरक्षित रहती है। कवकनाशी दवाओं की जरूरत कम पड़ती है, जिससे लागत घटती है और पर्यावरण सुरक्षित रहता है। इसके अलावा, कम ऊंचाई (लगभग 99.6 सेमी) के कारण लॉजिंग की समस्या नहीं होती। दाने चमकदार और पोटिया या धानिया रहित होते हैं, जो बाजार मूल्य बढ़ाते हैं। दलिया और सूजी बनाने के लिए यह आदर्श है।
पोषण और मिट्टी की सेहत का ख्याल
पोषक तत्वों की दृष्टि से यह किस्म अनमोल है। पूर्व की किस्मों जैसे पूसा तेजस या पूसा मंगल के लगातार उपयोग से मिट्टी में जिंक और आयरन की कमी हो जाती है। पूसा अनमोल HI 8737 जिंक युक्त है, जो मिट्टी के पोषक तत्वों को संतुलित रखती है। इसके दानों में बीटा-कैरोटीन और आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व भरपूर हैं, जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। इससे बनी रोटी या दलिया पोषण से भरपूर होता है, जो कुपोषण की समस्या से लड़ने में मदद करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह किस्म फसल चक्रण के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि एक ही किस्म के बार-बार उपयोग से मिट्टी की उर्वरता घट जाती है।
बुवाई और देखभाल
बुवाई और देखभाल के लिए यह किस्म सरल है। बुवाई का सही समय नवंबर की दूसरी-तीसरी सप्ताह है। बीज दर 100 किलो प्रति हेक्टेयर रखें। डबल सीड ड्रिल का उपयोग करें, जहां पंक्तियों के बीच 20-22 सेंटीमीटर दूरी हो। बीजों को 2.5-3 इंच गहराई पर बोएं ताकि अच्छा अंकुरण हो। कवकनाशी से बीज उपचार न करें, क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से रोग प्रतिरोधी है। प्रति बीघा 40 किलो या एकड़ में 75-80 किलो बीज पर्याप्त है। पकने की अवधि 130-135 दिन है।
उर्वरक और खेत प्रबंधन के टिप्स
उर्वरक प्रबंधन में संतुलन रखें। पूरे जीवनकाल में नाइट्रोजन 120-140 किलो, फॉस्फोरस 60-70 किलो और पोटाश 30-35 किलो प्रति हेक्टेयर दें। 1/3 नाइट्रोजन बुवाई के समय, बाकी दो बराबर भागों में पहली और दूसरी सिंचाई पर। आधे से अधिक मात्रा जैविक खाद जैसे गोबर, कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट से पूरी करें। खाद और बीज कभी न मिलाएं, वरना अंकुरण प्रभावित होगा। चार सिंचाई चक्रों में यह अपना सर्वश्रेष्ठ देती है। खेत चुनते समय मध्यम से भारी मिट्टी और अच्छा जल निकास वाली जगह लें। मिट्टी परीक्षण जरूर करवाएं।
आर्थिक लाभ और बाजार की मांग
आर्थिक दृष्टि से यह किस्म किसानों के लिए वरदान है। मंदसौर अध्ययन में, इसकी खेती से सकल आय 99,369 रुपये प्रति हेक्टेयर रही, जबकि स्थानीय किस्म से 72,046 रुपये। शुद्ध लाभ 71,869 रुपये और लाभ-हानि अनुपात 3.61 रहा। टेस्ट वेट 45.6 ग्राम और स्ट्रॉ यील्ड 59.31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से पशुपालन में भी फायदा होता है। कम लागत (बीज, उर्वरक, सिंचाई) के बावजूद उच्च बाजार मूल्य मिलता है। मध्य प्रदेश सरकार ने गेहूं उत्पादन बढ़ाने की रणनीति में इसकी सिफारिश की है।
क्यों चुनें पूसा अनमोल?
पूसा अनमोल HI 8737 गेहूं की खेती मध्य भारत के किसानों के लिए एक नया अध्याय खोल रही है। वैज्ञानिक अनुसंधान और किसानों के अनुभव इसकी सफलता की गारंटी हैं। अगर आप रबी सीजन की तैयारी कर रहे हैं, तो इस किस्म को आजमाएं। सही देखभाल से आपका खेत पैदावार का खजाना बन सकता है। स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें और सफलता की कहानी लिखें। गेहूं की यह नई किस्म न केवल फसल, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेगी।