Private School Hike Fees: आज के समय में जहाँ शिक्षा हर बच्चे का मौलिक अधिकार है, वहीं प्राइवेट स्कूलों की बढ़ती फीस ने कई परिवारों के लिए इसे एक चुनौती बना दिया है. हर साल 10-20% की दर से फीस में बढ़ोतरी और किताबों, यूनिफॉर्म, एक्स्ट्रा क्लासेस जैसे अतिरिक्त शुल्कों ने माता-पिता पर आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है.
नए नियमों की जानकारी
सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नियंत्रण लाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम लागू किए हैं. इन नियमों का मुख्य उद्देश्य शिक्षा को अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाना है. नीचे एक टेबल के माध्यम से इन नियमों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
| नियम का विवरण | विवरण |
| योजना का उद्देश्य | मनमानी फीस पर रोक लगाना |
| लागू करने वाली संस्था | राज्य सरकार |
| मुख्य मुद्दा | री-एडमिशन फीस और अन्य अनावश्यक शुल्क |
| निगरानी समिति | जिला स्तर की समिति |
| जुर्माने का प्रावधान | ₹2.5 लाख तक का जुर्माना |
| शिकायत प्रक्रिया | जिला समिति के माध्यम से |
प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि की समस्या (The Problem of Fee Hikes in Private Schools)
प्राइवेट स्कूलों में हर साल फीस बढ़ने की समस्या आम हो चुकी है. यह सिर्फ ट्यूशन फीस तक सीमित नहीं है, बल्कि अतिरिक्त शुल्क जैसे किताबें, यूनिफॉर्म, और परिवहन शुल्क भी शामिल हैं. कई माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा के लिए कर्ज लेना पड़ता है, जिससे उनका आर्थिक बोझ बढ़ जाता है.
अन्य राज्यों में उठाए गए कदम
भारत के विभिन्न राज्यों ने प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नियंत्रण लाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए हैं:
- पंजाब: यहां फीस वृद्धि 8% से अधिक नहीं हो सकती.
- उत्तर प्रदेश: कोविड महामारी के दौरान फीस वृद्धि पर रोक लगाई गई थी.
- गुजरात: अतिरिक्त वसूली गई राशि को दोगुना वापस करने का प्रावधान है.
नए नियमों की मुख्य विशेषताएँ
सरकार द्वारा लागू किए गए नए नियम निम्नलिखित हैं:
- फीस कैपिंग: सभी राज्यों में अधिकतम फीस सीमा तय करना.
- सख्त निगरानी: जिला और राज्य स्तर पर नियमित निरीक्षण.
- शिकायत निवारण: माता-पिता को अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए आसान प्रक्रिया उपलब्ध कराना.
निगरानी समिति का गठन
इन नियमों के तहत जिला स्तर पर एक निगरानी समिति बनाई जाएगी. यह समिति सुनिश्चित करेगी कि स्कूल फीस में कोई अनावश्यक बढ़ोतरी न हो और सभी शुल्क पारदर्शी तरीके से तय किए जाएं.