Arhar Cultivation: बारिश का मौसम चल रहा हैं लेकिन बारिश आंख मिचौली का खेल कर रही है। देश के कई हिस्सों में अभी तक बारिश नहीं हुई है। वहीं कुछ ऐसे हिस्से जहां पर बारिश से सैलाब आ गया है लोगों की जान माल की हानि हुआ है। आपको बता दें भारत के पलामू जिले में अभी कर करीब 30 फीसदी बारिश हुई हैं। ऐसे में किसान अपनी धान की फसल को रोप नहीं पाएं है। इतनी कम नमी में किसान अरहर की खेती (Arhar Cultivation) कर सकते हैं। इसलिए लिए खास मैनेजमेंट करना होता है।
आपको बता दें अरहर की खेती (Arhar Cultivation) के लिए टांड वाली जमीन काफी लाभदायक साबित हो सकती है। लेकिन किसान कम नमी वाली जमीन में अरहर की खेती कर सकत हैं। क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र चियांकी के कृषि वैज्ञानिक डॉ० प्रमोद कुमार ने टाइम्सबुल से बातचीत के दौरान बताया और कहा कि टांड वाली खेती ज्यादा उर्वरक शक्ति होती है। वहीं हाइब्रिड बीजों में पैदावार ज्यादा होती है। लेकिन कम उत्पाद होता है। लेकिन किसान अगर धानी की खेती नहीं कर पाएं है तो कम नमी वाली जमीन में अरहर की खेती कर सकते हैं।
मेढ़ बनाकर कर सकते हैं खेती
कम नमी में किसान मेढ़ बनाकर अरहर की खेती (Arhar Cultivation) कर सकते हैं। जिससे बीज भी कम लगता है और उत्पादन काफी अच्छा होता है। इसके लिए ट्रेक्टर का सहारा ले सकते हैं। इसमं 90 सेंटीमीटर की दूरी में मेढ़ बनाना होता है। इसमें किसान 25 सेंटीमीटर की दूरी पर अरहर की खेती (Arhar Cultivation) कर सकते हैं। यदि बारिश ज्यादा भी होती है तो इससे बीजों को काफी नुकसान नहीं होता है। वहीं बीज की लागत भी कम हो जाती है। सीधे तौर पर कम लागत में ज्यादा लाभ होता है।
कितना लगता है बीज
ज्यादा बारिश होने की वजह से अरहर में उख्ठा रोग हो जाता है। लेकिन मेढ़ पर अरहर लगाने से पानी से फसल को काई नुकसान नहीं होता है। इसमें बीज 5 किलो प्रति एकड की दर से लगाया जाता है। वहीं उत्पादन 7 से 8 क्विंटल का होता है।
अरहर की खेती (Arhar Cultivation) के लिए उन्नत बीज का चुनाव करना काफी जरुरी है। ये फसल काफी समय के लिए होती है। इसे क्रेश क्रॉप भी कहते हैं पलामू जिले में वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट के जरिए इसको बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए किसान बिरसा अरहर 2 आईपी ए 203 का चुनाव कर सकते हैं। जो कि काफी अच्छा उत्पादन देता है।
होगा 70 हजार रुपये तक का लाभ
किसान अरहर की खेती छींटा विधि से करते हैं। इसमें ब्याज बीज दर पर लगता है। छींटा विधि में 8 किलो प्रति एकड़ की दर से बीज लगता है। वहीं इस विधि में 5 किलो प्रति एकड़ की दर से बीज लगता है। इससे किसान एक एकड़ में 60 से 70,000 रुपये तक का लाभ कमा सकते हैं। इसकी लागत करीब 12 से 15 हजार के बीच में आती है।