नियम और परंपराएं तब तक अच्छी होती हैं जब तक उनके पीछे कोई लॉजिकल वजह होती है। लेकिन कुछ लोग भेड़चाल चलते हुए अंधे हो जाते हैं और बिना सोचे समझे नियमों को फॉलो करते रहते हैं। फिर चाहे उन नियमों का धार्मिक, वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक महत्व भी न हो। चलिए इस बात को एक दिलचस्प कहानी से समझते हैं।
जब महात्मा के आश्रम में आई बिल्ली, बदल गया ध्यान लगाने का तरीका
एक समय की बात है। एक जंगल में एक आश्रम में एक महात्मा जी रहते थे। उनके साथ और भी कई शिष्य थे। एक बार आश्रम में बिल्ली का बच्चा आ गया। ऐसे में महात्मा जी ने उस बिल्ली के बच्चे को दूध रोटी खिलाई। इसके बाद वह आश्रम में ही रहने लगा।
अब महात्मा जी जब भी ध्यान लगाने बैठते तो बिल्ली का बच्चा उनकी गोद में आकर बैठ जाता। इससे महात्मा जी का ध्यान भंग हो जाता। ऐसे में उन्होंने अपने एक शिष्य को बुलाया और कहा कि इस बिल्ली के बच्चे को दूर पेड़ पर बांध आओ। फिर मैं शांति से ध्यान करने बैठूँगा।
अब रोज यह नियम बन गया। जब तक बिल्ली को पेड़ से नहीं बांधा जाता, तब तक महात्मा जी ध्यान करने नहीं बैठते। फिर एक दिन महात्मा जी का निधन हो गया। ऐसे में उनका सबसे काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठ गया। हालांकि वह भी तब तक ध्यान लगाने नहीं बैठता जब तक बिल्ली के बच्चे को पेड़ से नहीं बांधा जाता।
अब एक दिन उस बिल्ली की ही मौत हो गई। सभी शिष्यों ने आपस में मीटिंग की। फिर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि महात्मा जी तब तक ध्यान लगाने नहीं बैठेंगे जब तक बिल्ली को पेड़ से नहीं बांधा जाए। ऐसे में शिष्य कहीं से दूसरी बिल्ली ले आए और उसे पेड़ से बांध दिया।
इसके बाद कई महात्मा और बिल्लियों की मौत हो गई, लेकिन ध्यान से पहले बिल्ली को पेड़ से बांधने की परंपरा नहीं टूटी। यदि उनसे पूछ लिया जाए कि ऐसा क्यों करते हो तो कहते हैं “ये परंपरा है और हमारे सारे पुराने महात्मा जी गलत नहीं हो सकते है, इसलिए हम अपनी परंपरा को छोड़ नहीं सकते हैं।”
कहानी की सीख
हम सभी ने भी कई बिल्लियाँ पाल रखी है। बीते सैकड़ों वर्षों से हम जाने अनजाने और बिना सोचे समझे घिसी पिटी और बेतुकी परंपराओं को निभाते आ रहे हैं। कुछ स्वार्थी लोगों ने इन परंपराओं को बनाया था और हम आज तक इस जाल में फंसे हुए हैं। इसलिए इन परम्पराओ और अंधविश्वासों को अपने अंदर पनपने न दें। बिना सोचे समझे भेड़चाल कर नियमों का पालन न करें।