महिलाओं का सशक्तीकरण तेजी से हो रहा है, लेकिन ‘सरपंच पति’ प्रथा जैसी कुप्रथाएं अभी भी ग्रामीण भारत में महिला नेतृत्व को कमजोर कर रही हैं। देशभर की ढाई लाख पंचायतों में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी 44 प्रतिशत है, जो महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। परंतु, ‘सरपंच पति’ और ‘प्रधान पति’ जैसी प्रथाएं इस प्रगति को बाधित कर रही हैं। इस लेख में, हम ‘सरपंच पति’ प्रथा, इसके प्रभाव और इसे समाप्त करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में चर्चा करेंगे।
Women News: महिलाओं का सशक्तीकरण तेजी से हो रहा है, लेकिन ‘सरपंच पति’ प्रथा जैसी कुप्रथाएं अभी भी ग्रामीण भारत में महिला नेतृत्व को कमजोर कर रही हैं। देशभर की ढाई लाख पंचायतों में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी 44 प्रतिशत है, जो महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। परंतु, ‘सरपंच पति’ और ‘प्रधान पति’ जैसी प्रथाएं इस प्रगति को बाधित कर रही हैं। इस लेख में, हम ‘सरपंच पति’ प्रथा, इसके प्रभाव और इसे समाप्त करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में चर्चा करेंगे।
पंचायतीराज मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने 18 राज्यों में महिला प्रधानों की व्यावहारिक समस्याओं का अध्ययन किया और पाया कि महिलाओं को अपने पति की छाया में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। समिति ने यह भी पाया कि महिलाओं के पास अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कौशल और समर्थन नहीं है, जिससे उन्हें अपने पति पर निर्भर रहना पड़ता है।
पांच वर्ष के कार्यकाल के लिए कोई महिला सामाजिक मान्यताओं को तोड़ने के लिए तैयार नहीं होती। छत्तीसगढ़ और बिहार की महिला सरपंचों को पितृसत्तात्मक मानसिकता और जातिगत पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है। निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों को प्रभावी कामकाज के लिए और अधिक क्षमतावान बनने की आवश्यकता है।
समिति ने अपने अध्ययन के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जो ‘सरपंच पति’ प्रथा को समाप्त करने और महिला जनप्रतिनिधियों को सक्षम बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
सुप्रीम कोर्ट में ‘सरपंच पति’ प्रथा के विरुद्ध दायर जनहित याचिका के बाद, केंद्र सरकार ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण सुधार करने की तैयारी कर रही है।
‘सरपंच पति’ प्रथा महिला सशक्तीकरण में एक बड़ी बाधा है, लेकिन सरकार और समाज द्वारा किए जा रहे प्रयासों से उम्मीद है कि यह प्रथा जल्द ही समाप्त हो जाएगी। महिला जनप्रतिनिधियों को सशक्त बनाने और उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे को और मजबूत करेंगे।
इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक है कि सभी स्तरों पर महिलाओं को सक्षम बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि वे अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें और सच्चे अर्थों में सशक्त हो सकें।