अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव अब एक नए मोड़ पर पहुँच चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने गुरुवार को भारत की कड़ी आलोचना की। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि भारत रियायती दरों पर रूस से तेल खरीदकर न सिर्फ मॉस्को को मदद कर रहा है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन युद्ध को और लंबा खींच रहा है।
ब्लूमबर्ग टीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में नवारो ने कहा कि भारत की यह नीति अमेरिका और वैश्विक स्थिरता के खिलाफ है। उनका कहना था कि “भारत के फैसले किसी भी तरह से शांति को बढ़ावा नहीं देते, बल्कि यह सीधे तौर पर ‘मोदी का युद्ध’ है।”
रियायती तेल खरीद पर अमेरिका की आपत्ति
नवारो ने दावा किया कि रूस से डिस्काउंट पर कच्चा तेल खरीदकर भारत ने मॉस्को को राजस्व का बड़ा स्रोत उपलब्ध कराया है। उनकी राय में इससे रूस को यूक्रेन युद्ध को जारी रखने के लिए आर्थिक मजबूती मिलती है।
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका को अब इस युद्ध के लिए अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है और इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं, व्यवसायों और श्रमिकों पर नकारात्मक असर पड़ा है।
नवारो ने कहा:
“भारत जो कर रहा है, उससे अमेरिका में हर कोई नुकसान उठा रहा है। उपभोक्ता, व्यवसाय, श्रमिक—सभी प्रभावित हैं। हमें न सिर्फ नौकरियाँ और उद्योग गंवाने पड़ रहे हैं, बल्कि अमेरिकी करदाताओं को मोदी के युद्ध का वित्तपोषण करना पड़ रहा है।”
50% टैरिफ से बढ़ा तनाव
भारत पर अमेरिका द्वारा लगाया गया 50% टैरिफ बुधवार से लागू हो गया है। यह एशिया के सबसे ऊँचे पारस्परिक शुल्कों में से एक है और भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजार—अमेरिका—को प्रभावित करेगा।
📌 कौन-कौन से सेक्टर प्रभावित होंगे?
- 55% से अधिक भारतीय निर्यात प्रभावित होगा
- इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स को छूट मिली है
- कपड़ा और आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर गहरा असर पड़ेगा
इस कदम को ट्रंप प्रशासन ने भारत द्वारा रूसी तेल खरीद जारी रखने पर “सज़ा” के रूप में पेश किया है।
भारत का रुख – “ऊर्जा सुरक्षा का अधिकार”
भारत ने अमेरिका की इस आलोचना को खारिज करते हुए कहा है कि उसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने का पूरा अधिकार है।
नई दिल्ली का तर्क है कि यूरोप, चीन और यहां तक कि स्वयं अमेरिका भी रूस से कारोबार जारी रखे हुए हैं। ऐसे में सिर्फ भारत को टारगेट करना अनुचित और पक्षपातपूर्ण है।
चीन पर नरमी, भारत पर सख्ती?
एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि जब चीन रूस से समुद्री मार्ग के जरिए सबसे ज्यादा तेल खरीद रहा है, तो उस पर ट्रंप प्रशासन क्यों नरम है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं के चलते वॉशिंगटन बीजिंग पर ज्यादा दबाव नहीं डालना चाहता।
इसके विपरीत भारत पर टैरिफ बढ़ाकर अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वह नई दिल्ली को दबाव में लाने की रणनीति अपना रहा है।
नवारो के बयान से बढ़ी कूटनीतिक खटास
नवारो के “मोदी का युद्ध” वाले बयान ने न सिर्फ भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में तनाव बढ़ा दिया है, बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी एक नई खटास पैदा कर दी है।
जहाँ अमेरिका का आरोप है कि भारत रूस को आर्थिक सहारा दे रहा है, वहीं भारत इसे अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता और ऊर्जा नीति का हिस्सा मानता है।
निष्कर्ष
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और कूटनीति की यह तनातनी आने वाले महीनों में और बढ़ सकती है। ट्रंप प्रशासन का 50% टैरिफ भारतीय उद्योगों और रोजगार पर बड़ा असर डाल सकता है। वहीं भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों और स्वतंत्र विदेश नीति से पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा।
ऐसे में सवाल यह है कि क्या “मोदी का युद्ध” वाली बयानबाज़ी और टैरिफ की तलवार से दोनों देशों के रिश्ते नए दौर की टकराहट में प्रवेश कर रहे हैं?