शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का 25वां शिखर सम्मेलन 31 अगस्त से चीन के तियानजिन शहर में शुरू हो चुका है। इस क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व वाले सम्मेलन में एशिया की तीन प्रमुख ताकतें – भारत, चीन और रूस – एक साथ नज़र आ रही हैं। यही वजह है कि दुनिया भर की नज़रें इस बैठक पर टिकी हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति से लेकर आर्थिक रणनीति और सुरक्षा मुद्दों तक, इस समिट से कई अहम फैसलों की उम्मीद की जा रही है।
क्यों खास है यह बैठक?
SCO केवल एक क्षेत्रीय मंच नहीं रहा, बल्कि अब यह वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम केंद्र बन चुका है। ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, आतंकवाद निरोधक उपाय और वैश्विक वित्तीय ढांचे में सुधार जैसे मुद्दे इस बार एजेंडा में शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत, चीन और रूस की त्रिकोणीय बैठक (Trilateral Talks) इस सम्मेलन का सबसे बड़ा आकर्षण है, क्योंकि इन तीनों देशों के आपसी रिश्ते और नीतियाँ आने वाले समय में वैश्विक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित करेंगी।
पुतिन का कड़ा रुख और चीन-रूस की रणनीति
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सम्मेलन में शामिल होने से पहले ही अमेरिका और उसके टैरिफ नीतियों पर जमकर बरसे। उनका कहना है कि “भेदभावपूर्ण प्रतिबंध” वैश्विक अर्थव्यवस्था और विकास को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्होंने चीन के साथ मिलकर BRICS को मजबूत करने और एक नए ‘विकल्पी वैश्विक ढांचे’ की बात कही। इससे साफ है कि रूस और चीन पश्चिमी देशों के दबाव के खिलाफ एकजुट होकर सामने आ रहे हैं।
भारत की भूमिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस समिट में शामिल हो रहे हैं और उनकी पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता तय मानी जा रही है। भारत की भूमिका इस मंच पर बेहद अहम है क्योंकि एक तरफ उसका पश्चिमी देशों के साथ मजबूत संबंध है, वहीं दूसरी ओर SCO जैसे समूहों में रूस और चीन के साथ कूटनीतिक तालमेल बनाए रखना भी उसके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञ मानते हैं कि मोदी और पुतिन की मुलाकात से ऊर्जा सहयोग, रक्षा सौदों और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।
IMF और वर्ल्ड बैंक में सुधार की मांग
पुतिन ने अपने इंटरव्यू में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों—IMF और वर्ल्ड बैंक—की आलोचना करते हुए कहा कि इन संस्थाओं को पश्चिमी देशों के हितों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्होंने एक ऐसे वित्तीय सिस्टम की वकालत की जो सभी देशों को बराबरी का अवसर दे। BRICS देशों की सोच भी इसी दिशा में है, जहां वे ग्लोबल साउथ की आवाज़ को मजबूती देने की कोशिश कर रहे हैं।
G20 और अफ्रीका पर चर्चा
पुतिन ने चीन की G20 में भूमिका की तारीफ करते हुए कहा कि बीजिंग और मॉस्को मिलकर इस मंच को ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं का प्रतिनिधि बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। साथ ही, अफ्रीकी संघ को G20 का हिस्सा बनाए जाने का स्वागत भी किया गया, जिसे BRICS और अन्य वैश्विक संगठनों के बीच बढ़ते तालमेल की निशानी माना जा रहा है।
नेपाल और SCO
इस समिट में नेपाल जैसे देशों की भी बढ़ती दिलचस्पी देखी जा रही है। नेपाल फिलहाल डायलॉग पार्टनर है, लेकिन वह ऑब्जर्वर या फुल मेंबर बनने की कोशिश कर रहा है। इससे साफ है कि SCO अब केवल सदस्य देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पड़ोसी देशों के लिए भी रणनीतिक महत्व रखता है।
दुनिया क्यों देख रही है इस बैठक की ओर?
आज जब अमेरिका और उसके सहयोगी देश वैश्विक एजेंडा तय करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं SCO एक ऐसा मंच बनकर उभर रहा है जहां एशिया और ग्लोबल साउथ के देश अपनी सामूहिक ताकत दिखा रहे हैं। भारत, चीन और रूस की यह तिकड़ी न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को प्रभावित करेगी बल्कि आने वाले वर्षों में वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा।
