नमस्कार किसान भाइयो आज हम आपको रबी सीजन में बोई जाने वाली सरसों की खेती (Mustard farming) की बुवाई पद्धति के बारें में विस्तृत जानकारी प्रदान करने जा रहे है। किसान भाई इस तकनीक को अपनाकर अपनी सरसों की फसल की पैदावार को बढ़ा सकते है।
इस ब्लॉग पोस्ट में हमने आपको सरसों की बुवाई/बिजाई की सही और उत्तम तकनिकी विधि के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है . यहाँ आप जानेंगे की सरसों बिजाई का सही समय (टाइम) कब से कब तक होता है ? सरसों की बुवाई कैसे करें ? उत्तम किस्में कौन सी है ? बीजोपचार, खाद एवं उर्वरक का प्रयोग, सिंचाई इत्यादि के बारें में..
किसान भाइयों रबी सीजन में बोई जाने वाली सरसों की फसल की बिजाई का एकदम सही समय 5 अक्टूबर से लेकर 20 अक्टूबर का होता है , लेकिन आप सरसों की बिजाई आप पुरे अक्टूबर महीने में कर सकते है। यदि आप अक्टूबर माह में किसी कारणवश सरसों की बिजाई नही कर पाते है तो आप पछेती बुवाई 10 नवम्बर तक भी कर सकते है। यदि आप 10 नवम्बर के बाद सरसों की बिजाई करते है तो निश्चित तौर पर सरसों के उत्पाद में कमी आती है ।
सरसों की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?
- सिंचित क्षेत्रों में सही समय पर बुवाई के लिए उत्तम किस्में : आरएच-0749 , आएजीएन-73, आएजीएन-17, लक्ष्मी (आरएच -8812)- पूसा बोल्ड, वरुणा, एवं आरजीएन-481
- अन्य किस्में : आएजीएन-298 (बारानी क्षेत्रों के लिए ) , आरजीएन -229 (बारानी क्षेत्रों के लिए / कम पानी के लिए), आरजीएन-236 (देरी से बुवाई के लिए ), आरजीएन-145 (पछेती बुबाई के लिए)
- पायनियर 45S46 : पायनियर 45S46 किस्म को ज्यादातर राजस्थान और हरियाणा में बोया जाता है. इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत के आसपास पाई जाती है. इस किस्म की प्रति एकड़ पैदावार 8 से 12 क्विंटल तक पाई जाती है.
बीज एवं बिजाई
- बीज की मात्रा : 600 से 700 ग्राम प्रति बीघा ।
- दूरी : किसान भाइयों खेतों में सरसों की बुवाई करते समय खूड से खूड की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर (यानि 1 से 1.5 फीट) की रखें . वहीं आर.एच. 0749 किस्म के लिए खूड से खूड की दूरी 2 फुट तक रखें।
बीजोपचार
मैटालेक्सिल 35 एस. डी. की 6 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज तथा इमिडाक्लोप्रीड 70 डब्लयू. एस. की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें।
सरसों खाद एवं उर्वरक की मात्रा का प्रयोग
क्र. सं. | नाम उर्वरक | मात्र प्रति बिघा |
1. | गोबर की खाद | 40 क्विंटल |
2. | डीएपी अथवा एसएसपी/ सुपर | 22 किलो या 65 किलो |
3. | यदि डीएपी का प्रयोग किया है तो यूरिया और एसएस पी का प्रयोग किया है तो यूरिया | 40 किलो 50 किलो |
4. | जिप्सम अथवा फर्टिलाइजर ग्रेड सल्फर 90 प्रतिशत डीपी/बेन्टोनाईट सल्फर | 75 किलो अथवा 8 किलो |
5. | तना गलन प्रभावित क्षेत्रो में म्युरेटा ऑफ पोटाश (MOP 60%) | 15 किलो |
नोट :
गोबर की खाद , डीएपी/सुपर , पोटाश व जिप्सम की सम्पूर्ण मात्र तथा यदि डीएपी का प्रयोग लिया है तो 15 किलोयूरिया और यदि सुपर का प्रयोग किया है तो 25 किलो यूरिया बिजाई से पूर्व प्रयोग करनी चाहिए। इसके लिए यूरिया , जिप्सम तथा पोटाश का बिजाई से पूर्व छींटा लगावें ।
डीएपी अथवा सुपर की टापा की मशीन (सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल) से ड्रिल करें ।
यदि डबल टापे की मशीन नहीं है तो गेहूं बिजाई मशीन से डीएपी/सुपर की बिजाई करें । सुपर अथवा डीएपी का छींटा नहीं लगावें , क्योकि छींटा लगाने से इनका बहुत ही कम असर होता है । यूरिया की शेष मात्र प्रथम सिंचाई के समय देनी चाहिए . डीएपी /एसएसपी के साथ जिंक सल्फेट मिलाकर प्रयोग नहीं करें ।
खरपतवार नियन्त्रण
फसल की बुवाई के तुरंत बाद पेन्डामैथेलिन 38.7% सीएस की 485 मिली अथवा पेन्डामैथेलिन 30% 600 मिली मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति बीघा की दर से जमीन पर स्प्रे करें .
अथवा
उपरोक्त मात्रा को रोणी करने के बाद अंतिम जुताई से पहले जमीन पर स्प्रे कर पाटा लगाकर बिजाई करें .
सिंचाई के बाद एक -दो बार खोदी अवश्य करें .
पौधों की छंटाई / विरलीकरण
आवश्यकता से अधिक पौधों की छंटाई अवश्य करें , जिससे की फसल में हवा का संचार एवं सूर्य की रोशनी पौधों के बीच पहुँच सके. उपज बढ़ाने एवं सरसों के तना गलन रोग नियन्त्रण के लिए पौधों की छंटाई करना जरुरी है . छंटाई प्रथम सिंचाई से पूर्व या उसके बाद की जा सकती है . छंटाई करके पौधे से पौधे की दुरी आधा फीट रखें .
सिंचाई
तीन सिंचाई उपलब्ध होने पर
- पहली सिंचाई बुबाई के 35 से 40 दिन बाद (बढ़वार के समय )
- दूसरी सिंचाई प्रथम सिंचाई के 35 से 40 दिन बाद (फूल आने के समय )
- तीसरी सिंचाई दूसरी सिंचाई के 30 से 35 दिन बाद (फलियां बनने की शुरुआत पर )
दो सिंचाई पानी की कमी होने पर
- पहली सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद
- दूसरी सिंचाई बुवाई के 90 से 100 दिन बाद
नोट : भारी मिटटी वाली जमीनों में दो से अधिक सिंचाई नहीं करें , क्योकि अधिक पानी देने से तना -गलन रोग का प्रकोप बढ़ता है .
किट नियन्त्रण
- पेन्टेड बग: इसके नियन्त्रण के लिए 200 मिलीलीटर मैलाथियोन 50 ईसी 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें .
- लिफमाईनर तथा काला तैला : इनके नियन्त्रण हेतु निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक कीटनाशक का 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेन करें .
क्र. सं. | कीटनाशक | मात्रा |
1. | डाईमिथोएट 30 ई.सी. | 250 मिली. |
2. | क्यूनालफ़ॉस 25 ई.सी. | 250 मिली. |
3. | मैलाथियोन 50 ई.सी. | 300 मिली. |
4. | थायोमिथोक्साम 25 डब्ल्यू. जी. | 50 ग्राम |
- काला तेला / एफिड/ चैपा के नियन्त्रण का जैविक नियन्त्रण : जैविक नियन्त्रण हेतु नीम कीटनाशक 500 मिलीलीटर (300 पीपीएम ऑयलबेस) अथवा 1 लीटर नीम के साथ 100 मिलीलीटर तरल साबुन (स्टीकर) को एक बाल्टी में डालकर ऊपर से धार से 5 लीटर पानी डालकर घोल तैयार कर इसको 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें . जैविक नियन्त्रण हेतु बायो एजेंट वर्टीसिलियम लेकेनाई की 500 मिलीलीटर मात्रा 100 लीटर पानी में मिलाकर भी स्प्रे कर सकते है .
जानकारी स्त्रोत:
नोट : यह जानकारी एग्रीकल्चर टेक्नोलोजी मैनेजमैन्ट एजेंसी (आत्मा परियोजना ) हनुमानगढ़ द्वारा कृषक हित में व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु जारी की गई है .