नमस्कार किसान साथियों, आज हम चर्चा करेंगे सरसों की फसल के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में, जैसे पहली सिंचाई कब करनी चाहिए, फर्टिलाइज़र (उर्वरक) का सही प्रबंधन कैसे किया जाए, और ऑयल कंटेंट (तेल की मात्रा) को बढ़ाने के लिए कौन से पोषक तत्व डालें। पिछले साल की तरह इस साल भी कुछ समस्याएं सरसों की फसल में देखी जा रही हैं, जैसे “रतवा रोग” और फसल का सूखना। इन समस्याओं को कम करने और फसल की बेहतर वृद्धि के लिए हम क्या उपाय कर सकते हैं, यही आज की रिपोर्ट का मुख्य विषय है।
दोस्तों, सरसों की फसल लगभग 15 दिन की हो चुकी है और अब किसान भाई फसल में पहली सिंचाई करने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन कई किसान भाइयों को सरसों की पहली सिंचाई के बारे में सही जानकारी नहीं होती, और अधूरे ज्ञान के साथ वे सरसों में सिंचाई कर देते हैं, जिससे उनकी फसल में काफी ज्यादा नुकसान हो जाता है। जो शुरुआत में ही किसानों के लिए किसी सदमे से काम नहीं होता। सरसों की फसल में पहली सिंचाई आपकी फसल के 50% उत्पादन को निर्धारित कर देती है। अगर आपने भी सरसों की खेती कर रखी है, तो यह रिपोर्ट आपके लिए अत्यंत ही फायदेमंद सिद्ध हो सकती है।
पहली सिंचाई का समय
किसान भाइयों, सरसों में पहली सिंचाई का समय सरसों की फसल के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर आपने अपने खेत में रनी (रिज) निकालकर बीज बोए हैं, तो पहली सिंचाई लगभग 30 से 35 दिनों के भीतर करनी चाहिए। यदि आपने खेत में कल्टीवेटर (कृषि यंत्र) का उपयोग करके बीज बोया है, तो सिंचाई 25 से 35 दिनों में करनी बेहतर होती है। पहली सिंचाई का समय मौसम के तापमान पर भी निर्भर करता है, इसलिए ठंडे मौसम में यह समय एक-दो दिन आगे-पीछे हो सकता है। आप मिट्टी में नमी की मात्रा को ध्यान में रखते हुए सरसों की पहली सिंचाई कर सकते हैं।
यदि आपको लगे कि आपके खेत में नमी की मात्रा घट गई है और उसके कारण आपके पौधे मरने लगे हैं, तो आपको बिना सोचे-समझे पहले भी सिंचाई कर देनी चाहिए। लेकिन सामान्य अवस्था में, आप विजय के 25 से 30 दिन के बाद ही सरसों में पहली सिंचाई करें। सिंचाई का सही समय सुनिश्चित करता है कि पौधों की जड़ें पानी के अभाव में सूखे नहीं और फसल की शाखाएं मजबूत बनें। साथ ही, खेत का तापमान भी नियंत्रित रहता है, जिससे पौधों की टिलरिंग (शाखाओं का विकास) पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
फसल में फर्टिलाइज़र का प्रबंधन
किसान भाइयों, सरसों की फसल में सही प्रकार और मात्रा में फर्टिलाइज़र का उपयोग करने से फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है। डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) इस फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। आप डीएपी का एक बैग प्रति एकड़ के हिसाब से बेसल डोसे के रूप में खेत में डाल सकते हैं, परंतु इस साल डीएपी की कमी के कारण किसान विकल्प के रूप में सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी), एनपीके 12:16:20, और माइको राजा जैसे उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं। डीएपी न मिलने की स्थिति में, 10-15 किलो प्रति बिघा यूरिया और 3 किलो प्रति बिघा सल्फर का उपयोग करना उपयुक्त होता है।
यूरिया पौधों के हरेपन को बढ़ाता है और सल्फर तेल की मात्रा को बेहतर करता है, जिससे उपज में वृद्धि होती है। साथ ही, सल्फर का प्रयोग जड़ों में फैलाव को भी बढ़ावा देता है और फसल को फंगस (फफूंद) जैसे रोगों से बचाता है। फसल में पोटाशियम सोनाइट और मैग्नीशियम का उपयोग करना भी अत्यंत आवश्यक है। यह पौधों में मजबूती लाता है और उन्हें अधिक रोग प्रतिरोधक बनाता है। पोटाश पौधों की टहनियों को मजबूत करता है और मैग्नीशियम फसल में फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है। इससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है और टिलरिंग के साथ-साथ फूलों का विकास भी बेहतर होता है।
फसल में तेल की मात्रा बढ़ाने के उपाय
किसान भाइयों, अगर आप चाहते हैं कि आपकी फसल में उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता में भी सुधार हो, तो सरसों की फसल में तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए सल्फर का प्रयोग बहुत ही लाभकारी होता है। सल्फर का उचित मात्रा में प्रयोग करने से ऑयल कंटेंट बढ़ता है और जड़ों की ग्रोथ भी बेहतर होती है। सल्फर न केवल तेल की मात्रा को बढ़ाता है, बल्कि पौधों को रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करता है, जो फसल को फंगस और अन्य बीमारियों से बचाने में मदद करता है।
फसल में फोलियर स्प्रे (पत्तों पर छिड़काव) के लिए एनपीके 12:16:20 और यूरिया का संयोजन उपयोग करना भी लाभकारी होता है। इसका उपयोग फसल के 45-50 दिनों के बीच करना चाहिए, जिससे फसल की टिलरिंग और शाखाओं की संख्या में सुधार होता है और फसल की फूलों की वृद्धि भी बेहतर होती है।
फंगस समस्या और अन्य रोगों को रोकने के उपाय
किसान भाइयों, सरसों की फसल में फंगस की समस्या एक आम समस्या है, जिसे समय रहते रोकना बहुत जरूरी है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग करने से फसल में फंगस का प्रभाव कम होता है। इसे खेत में पाउडर फॉर्म में डालकर या सिंचाई के पानी में मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। फंगस के प्रबंधन के लिए मेटालिक सिल्फेट और जिंक सल्फेट का प्रयोग भी किया जा सकता है।
फंगस को नियंत्रित करने के लिए खेत में पत्तियों पर फोलियर स्प्रे भी कर सकते हैं। फोलियर स्प्रे फंगस को नष्ट करता है और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे फसल स्वस्थ रहती है। इसके साथ ही इस मौसम में सरसों की फसल में तना गलन और सफेद रतवा रोगों का प्रकोप अत्यधिक बढ़ जाता है। अगर आपको अपने खेत में सफेद रतवा के लक्षण दिखाई दे, तो इसके बचाव के लिए आप सफेद रतुआ के लक्षण नजर आते ही 600 से 800 ग्राम मैनकोजेब (डाईथेन-M45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें। 15 दिन बाद फिर से इसी मात्रा में फसल के अंदर स्प्रे करें। ऐसा दो से तीन बार करना जरूरी है।
पहली सिंचाई के साथ कौन सी खाद का प्रयोग करें
किसान साथियों, जब आप सरसों की फसल में पहली सिंचाई करते हैं, तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। सबसे पहले, आपको इस बात को ध्यान में रखना होगा कि यदि आपने बेसल डोज में डीएपी सल्फर का उपयोग नहीं किया है, तो आप पहली सिंचाई के साथ इन्हें डाल सकते हैं। अगर आपने बेसल डोज में उनकी पूर्ति कर दी है, तो आप केवल यूरिया और जिंक की मात्रा का छिड़काव सरसों की फसल में पहली सिंचाई के साथ कर सकते हैं।
यूरिया का छिड़काव करते समय आपको यह ध्यान रखना है कि आप यूरिया का छिड़काव फसल में सिंचाई से तुरंत पहले करें। सिंचाई के बाद यूरिया ना डालें, क्योंकि अगर आप सिंचाई से पहले यूरिया का छिड़काव करेंगे, तो वह पानी के साथ घुलकर पौधों की जड़ों तक आसानी से पहुंच जाएगी, जिससे पौधों के विकास में तेजी आएगी और आगे चलकर यही विकास आपकी फसल के उत्पादन और तेल की मात्रा को तय करता है।
नोट: रिपोर्ट में दी गई सभी जानकारी किसानों के निजी अनुभव और इंटरनेट के सार्वजनिक स्रोतों से इकट्ठा की गई है। संबंधित किसी भी जानकारी का मिलान करने से पहले कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।