इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के मामले में एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा कि पेंशन प्राप्त पिता के बावजूद, बेटी अपनी मां की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार रखती है। यह निर्णय न केवल फरहा नसीम के लिए बल्कि अन्य जरूरतमंद परिवारों के लिए भी एक नई मिसाल कायम करेगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि पिता पेंशन प्राप्त कर रहे हैं तो भी मां की मृत्यु पर बेटी अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार रखती है। यह फैसला न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने फरहा नसीम द्वारा दाखिल याचिका पर दिया, जिसमें मुरादाबाद के बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बेटी के आवेदन को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि उसके पिता को पेंशन मिल रही है।
अदालत के फैसले का महत्व
अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार की आर्थिक सहायता करना है जब किसी सरकारी कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। लेकिन मुरादाबाद के BSA ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि फरहा के पिता को पेंशन मिल रही है और आर्थिक संकट नहीं है।
याचिकाकर्ता का पक्ष
फरहा नसीम के वकील ने तर्क दिया कि पेंशन मिलने के बावजूद भी यह परिस्थिति उनके अनुकंपा नियुक्ति के अधिकार को खत्म नहीं करती। वकील ने एक अन्य मामले, वंशिका निगम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का उदाहरण देते हुए बताया कि यह कानूनन अधिकार है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
फरहा नसीम का मामला और अदालती निर्णय
इस मामले में फरहा नसीम की मां, शहाना बी, सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थीं और उनकी मृत्यु के बाद फरहा ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। BSA ने यह कहकर आवेदन खारिज कर दिया कि फरहा के पिता सेवानिवृत्त हैं और उन्हें पेंशन मिल रही है, इसलिए आर्थिक संकट का कोई ठोस आधार नहीं है।
फरहा के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि पेंशन होने के बावजूद अनुकंपा नियुक्ति से इनकार करना अवैध है। उन्होंने वंशिका निगम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य जैसे अन्य फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यह अधिकार नियमों के अनुसार मिलता है और इसे नकारा नहीं जा सकता। वकील ने यह भी बताया कि परिवार के आर्थिक संकट का अंदाजा सिर्फ पेंशन के आधार पर नहीं लगाया जा सकता, खासकर जब बाकी बहनें अपने परिवार में विवाहित हैं और फरहा अपने माता-पिता की सहायता के लिए नियुक्ति चाहती हैं।
अदालत का फैसला
न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने सभी तथ्यों का निरीक्षण करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार किसी की पेंशन के आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता। उन्होंने मुरादाबाद बीएसए के आदेश को निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि वे छह सप्ताह के भीतर इस मामले में नया निर्णय लें।
इस फैसले ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति के मामले में केवल पेंशन का आधार ही नहीं देखा जाना चाहिए। इससे उन लोगों को भी राहत मिलेगी, जो अपने परिवार के सदस्य की आकस्मिक मृत्यु के बाद एक स्थायी नौकरी के रूप में आर्थिक सहारा ढूंढ रहे हैं।