51 शक्ति पीठ के नाम
देवी माता के पवित्र 51 शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए हमें कौन से स्थलों पर जाना होगा और कहाँ सती माता का कौन सा अंग या आभूषण गिरा है जानते है इसके बारे में।
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है और यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के कई हिस्सों में स्थित है। भारत में 42 शक्ति पीठ है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में है और 4 बांग्लादेश में, 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।
शक्ति पीठ क्या है?
मां के सती होने और शक्तिपीठ बनने की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रम्हा को ब्रह्मांड का निर्माण करना था। उन्होंने देवी आदि शक्ति और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया था। देवी आदि शक्ति प्रकट हुई, उन्होंने शिव से अलग होकर ब्रह्मा को ब्रह्मांड के निर्माण में मदद की। ब्रह्मा जी देवी आदि शक्ति को फिर से शिव मिलाने का फैसला करते हैं। इसलिए उनके पुत्र दक्ष ने माता सती को अपनी बेटी के रूप में प्राप्त करने के लिए कई यज्ञ किये। दक्ष का यह यज्ञ सफल रहा और माता सती ने उनके यहाँ जन्म लिया।
भगवान शिव के अभिशाप के कारण भगवान ब्रह्मा ने अपने पांचवें सिर को शिव के सामने अपने झूठ के कारण खो दिया था। दक्ष को इसी वजह से भगवान शिव से द्वेष था और भगवान शिव और माता माता सती की शादी नहीं कराने का निर्णय लिया था। माता सती ने कठोर तपस्या की और अंत में एक दिन शिव और माता सती का विवाह हुआ।
कुछ समय बाद भगवान शिव से प्रतिशोध लेने की इच्छा के साथ दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में दक्ष ने भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा शिव के सामने व्यक्त की, जिन्होंने उसे रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश की परंतु माता सती यज्ञ में चली गई। यज्ञ के पहुंचने के पश्चात माता सती का स्वागत नहीं किया गया। इसके अलावा, दक्ष ने शिव का अपमान किया। माता सती ने अपने पिता द्वारा अपमान भरे शब्दों को सुन न सकी और उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया।
यज्ञ में हुए अपमान और माता सती के बलिदान से क्रोधित होकर भगवान शिव ने वीरभद्र अवतार में दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और उसका सिर काट दिया। सभी मौजूद देवताओं से अनुरोध के बाद दक्ष को वापस जीवित किया गया और कटे सिर के बदले एक बकरी का सिर लगाया गया। दुख में डूबे शिव ने माता सती के शरीर को उठाकर विनाश का दिव्य तांडव नृत्य किया। अन्य देवताओं ने विष्णु को इस विनाश को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया, जिस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए। शरीर के विभिन्न हिस्सों भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।
51 शक्तिपीठ के दर्शन
51 Shakti Peeth List
51 शक्तिपीठ की लिस्ट
1 – माता हिंगलाज मन्दिर, पाकिस्तान
माता सती का यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में स्थित है। यहाँ माता का सिर गिरा था। सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह गुफा मंदिर इतना विशालकाय क्षेत्र है कि आप इसे देखते ही रह जाएंगे। यह मंदिर 2000 वर्ष पूर्व भी यहीं विद्यमान था। यहाँ माता को कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) और भैरव को भीमलोचन कहते हैं। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहां वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं।
2 – श्री माँ नयना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश
नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित श्री माँ नैना देवी मंदिर स्थित है। नैना देवी मंदिर और नैना झील के स्थान पर सती माता की बाईं आंख गिरी थी। इस देवी मंदिर दो नेत्र है। यह मंदिर सन 1500 में बनाया गया था। 1880 में नैनीताल में भयानक भूस्खलन के कारण मंदिर ध्वस्त हो गया। इसे 1883 में फिर से बनाया गया।
3 – सुगंधा (सुनंदा) शक्तिपीठ शिकारपुर बांग्लादेश
माँ सुगंध का शक्तिपीठ बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सुंगधा (सुनंदा) नदी के तट पर स्थित है। यहाँ माता सती की नासिका (नाक) गिरी थी। यहाँ देवी ‘सुनंदा’ और शिव ‘त्र्यम्बक’ हैं। भारत से जाने वाले लोगों को इस तीर्थ यात्रा के लिए वीजा प्राप्त करना होगा।
4 – महामाया शक्ति पीठ, कश्मीर
कश्मीर के पहलगाव जिले के पास माता का कंठ गिरा था। इस शक्तिपीठ को महामाया के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर लगभग 5000 हजार साल पुराना है। यहाँ माता को महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं। जम्मू और श्रीनगर सड़क के माध्यम से जुड़े हुए हैं। यात्रा के इस भाग के लिए बसें उपलब्ध की जा सकती हैं।
5 – मां ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी में माता ज्वालादेवी का मंदिर स्थित है। यहां माता की जीभ गिरी थी। इसीलिए इसका नाम ज्वालादेवी मंदिर है। यहाँ माता को सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी और धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है। यहां प्रज्वलित ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक मानी जाती है।
5 – मां त्रिपुरमालिनी मंदिर, पंजाब
पंजाब के जालंधर में माता सती का शक्तिपीठ त्रिपुर मालिनी मां मंदिर है। यह मंदिर देवी तालाब मंदिर नाम से भी जाना जाता है। यहाँ मां सती का इस जगह बाया वक्ष(स्तन) गिरा था। जिसके बाद से मां यहां पर शक्ति ‘त्रिपुरमालिनी’ तथा भैरव ‘भीषण’ के रुप में विराजमान है।
6 – माँ अम्बाजी मंदिर, गुजरात
गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर अंबा माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। यहाँ मां सती का हृदय गिरा था। इसमें माता भवानी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां पर एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं।
7 – गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल
गुजयेश्वरी मंदिर, काठमांडु, नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के पास ही है। यहां सती के शरीर के दोनो घुटने गिरे थे। यहां देवी का नाम महाशिरा एवं भैरव हैं कपाली। इस मंदिर का नाम गुह्येश्वरी मंदिर भी है। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस, ट्रेन और हवाई रास्ते द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं।
8 – मानसा-दाक्षायणी माता, तिब्बत
तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। इसी जगह पर माता माता सती का दायाँ हाथ गिरा था, इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उनका रूप मानकर पूजा जाता है। यहाँ दर्शन करने लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेना होता है।
9 – विरजा देवी मंदिर उड़ीसा
उड़ीसा के उत्कल में ब्रह्मकुंड के समीप स्थित विरजा देवी का मंदिर है। यहाँ पर माता माता सती की नाभि गिरी थी। समग्र उत्कल ही सती का नाभिक्षेत्र है और इसे ही विरजाक्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में विमला के नाम से महादेवी और जगन्नाथ के नाम से भैरव निवास करते हैं।
10 – गण्डकी शक्तिपीठ मुक्तिनाथ नेपाल
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। गण्डकी पीठ को मुक्तिदायिनी माना गया है। इस स्थल के मुक्तिनाथ भी बोला जाता है। यहाँ सती गण्डकी चंडी तथा शिव चक्रपाणि हैं।
11 – बहुला शक्तिपीठ मंदिर केतुग्राम, पश्चिम बंगाल
बंगाल के हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर वर्धमान जिला से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर स्थित बाहुल शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ माता माता सती का बायां हाथ गिरा था। यहाँ की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।
12 – उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका मंदिर, पश्चिम बंगाल
बंगाल में वर्धमान जिले के उज्जयनी नामक स्थान पर मांगल्य चंडिका मंदिर है। यहाँ माता की दायीं कलाई गिरी थी। यहाँ माता को मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।
13 – त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा
त्रिपुरा के अगरतला से 140 किमी की दूरी पर स्थित उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव में त्रिपुर सुंदरी मंदिर है। यहाँ पर माता का दायाँ पैर गिरा था। यहाँ शक्ति को त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
14 – भवानी शक्तिपीठ, चट्टल ढाका
चट्टल का भवानी शक्तिपीठ बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के सीताकुंड स्टेशन के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में स्थित है। यहाँ पर माता सती की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति को भवानी और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं। यहाँ आने के लिए रेल गाड़ियां और बसे, चटगांव, ढाका (6 घंटे), सिलेहट (6 घंटे) और अन्य शहरों से उपलब्ध हैं।
15 – भ्रामरी शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर भ्रामरी शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर माता सती का बायाँ पैर गिरा था। यहाँ पर शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।
16 – कामाख्या देवी मंदिर, असम
असम के गुवाहाटी जिले में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर कामाख्या देवी मंदिर स्थित है। यहाँ माता का योनि भाग गिरा था। इस तीर्थस्थल के मन्दिर में शक्ति की पूजा योनिरूप में होती है। मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। योनि के आकार का शिलाखण्ड है, जो रक्तवर्ण के वस्त्र से ढका रहता है। प्रत्येक वर्ष में तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं और उनके शरीर से रक्त निकलता है। यहाँ शक्ति माता को कामाख्या और भैरव को उमानंद कहते हैं।
17 – युगाद्या शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से लगभग 32 किलोमीटर दूर जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी ‘युगाद्या’ तथा भैरव ‘क्षीर कण्टक’ हैं। इस स्थान पर माता सती के दाहिने चरण का अँगूठा गिरा था। त्रेता युग में अहिरावण ने पाताल में जिस काली की उपासना की थी, वह युगाद्या ही थीं। अहिरावण की कैद से छुड़ाकर राम-लक्ष्मण को पाताल से लेकर लौटते हुए हनुमान देवी को भी अपने साथ लाए तथा क्षीरग्राम में उन्हें स्थापित किया।
18 – कालीघाट शक्तिपीठ, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कोलकाता के कालीघाट में कालीघाट शक्तिपीठ स्थित है। मंदिर माता के बाएँ चरण का अँगूठा गिरा था। यहाँ शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं।
19 – प्रयाग शक्तिपीठ (ललिता देवी मंदिर), उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। यहाँ तीन मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है और तीनों ही मंदिर प्रयाग शक्तिपीठ की शक्ति ‘ललिता’ के हैं। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं।
20 – जयंती मंदिर, बांग्लादेश
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गाँव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर स्थित है। यहाँ माता की बायीं जंघा गिरी थी। यहां देवी माता सती को जयंती और भगवान शिव को कृमाशिश्वर के रूप में पूजा की जाती है।
21 – किरीट विमला शक्तिपीठ / माता मुक्तेश्वरी मंदिर, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के पास स्थित देवी माता के इस स्थान को किरीट विमला और माता मुक्तेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें देवी भुवनेशी भी कहा जाता है। यहाँ माता सती का मुकुट गिरा था। किरीट का अर्थ ही सिर का आभूषण या मुकुट होता है। यहां देवी माता सती को विमला और भैरव को संवर्त्त कहते हैं।
22 – विशालाक्षी शक्तिपीठ, उत्तरप्रदेश
उत्तरप्रदेश में काशी विश्वनाथ मंदि’ से कुछ ही दूरी पर विशालाक्षी मंदिर स्थित है। यहाँ पर देवी सती के कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इसलिए इस जगह को ‘मणिकर्णिका घाट’ कहते है। यहाँ देवी को विशालाक्षी मणिकर्णी और भैरव को काल भैरव रूप में पूजा जाता है।
23 – कन्याकुमारी शक्ति पीठ, कन्याकुमारी, तमिलनाडु
कन्याश्राम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है। कन्याश्रम में माता की पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी के नाम से जाना जाता है। यहाँ देवी को सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।
24 – सावित्री शक्तिपीठ, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित शक्तिपीठ श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर को “सावित्री पीठ”, “देवी पीठ”, “कालिका पीठ” या “आदी पीठ” भी कहा जाता है। भद्रकाली मंदिर में माता सती के दाहिने घुटने गिर गए थे। महाभारत की लड़ाई से पहले, भगवान कृष्ण के साथ पांडवों ने यहां उनकी पूजा की और अपने रथों के घोड़ों को दान दिया। श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर में श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन संस्कार भी किया गया था।
25 – मणिबंध शक्ती पीठ, अजमेर, राजस्थान
राजस्थान में अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में विश्व प्रसिद्ध पुष्कर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर गायत्री पहाड़ के पास स्थित मणिबंद शक्तिपीठ है। सती माँ की इस शक्तिपीठ को मणिदेविक मंदिर भी कहते हैं। इस जगह माँ सती के हाथ की कलाई गिरी थी। यह शक्तिपीठ मणिदेविकाशक्तिपीठ और गायत्री मन्दिर के नाम से ज्यादा विख्यात है। यहाँ शक्ति माँ गायत्री और शिव भैरव् सर्वनंदा कहलाते हैं।
26 – श्रीशैल शक्तिपीठ बांग्लादेश
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जॉइनपुर गांव के पास शैल नामक स्थान पर श्रीशैल शक्तिपीठ है। यहाँ माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। यहाँ शक्ति माँ महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।
27 – देवगर्भा शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर देवगर्भा शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इस मंदिर में देवी माँ को स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ शक्ति माँ को देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।
28 – कालमाधव शक्तिपीठ, मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश के अमरकंटक में शोन नदी के पास कालमाधव शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता का बायाँ नितंब गिरा था। यहाँ एक गुफा है। यहाँ शक्ति माँ को काली और भैरव को असितांग कहते हैं।
29 – शोणदेश शोणाक्षी शक्तिपीठ, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के अमरकण्टक में नर्मदा के उद्गम स्थल शोणदेश स्थान पर सती माता का दायाँ नितंब गिरा था। यहाँ माता सती “नर्मदा” या “शोणाक्षी” और भगवान शिव “भद्रसेन” कहलाते है।
30 – रामगिरि शक्तिपीठ, उत्तरप्रदेश
उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर रामगिरि शक्तिपीठ है। यहाँ माता का दायाँ स्तन गिरा था। यहाँ माता सती को शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं। माता का हार गिरने के कारण कुछ मैहर (मध्य प्रदेश) के शारदा देवी मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। ये दोनों ही स्थान तीर्थ माने गए हैं।
31 – श्री उमा शक्ति पीठ वृन्दावन, उत्तरप्रदेश
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन तहसील श्री उमा शक्ति पीठ स्थित है। इसे कात्यायनी शक्तिपीठ भी कहते है। इस पवित्र स्थान पर माता के बाल के गुच्छे और चूड़ामणि गिरे थे। यहाँ राधारानी ने भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए पूजा की थी। यहाँ माता सती है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।
32 – शुचि-नारायणी शक्तिपीठ, तमिलनाडु
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है। यहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। यहाँ की माता शक्ति ‘नारायणी’ तथा भैरव ‘संहार या ‘संकूर’ हैं। महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा।
33 – पंच सागर शक्तिपीठ, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में माँ वराही पंच सागर शक्तिपीठ स्थित है। इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है, लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति माता वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। देवी वराही एक बोना का सिर है। वह अपने हाथ में एक चक्र, शंख, तलवार लिये रहती है।
34 – करतोयातट- अपर्णा शक्तिपीठ, बांग्लादेश
बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया की सदानीरा नदी के तट स्थान अपर्णा शक्तिपीठ है। यहाँ पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति माता को अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं। यहां पहले भैरवरूप शिव के दर्शन करें, फिर देवी का दर्शन करना चाहिए।
35 – माता भ्रमराम्बा देवी शक्ति पीठ मंदिर आन्ध्र प्रदेश
आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर आदिशक्ति देवी भ्रमरम्बा का मंदिर है। इस स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर की एड़ी गिरी थी। यहाँ इस मंदिर में शक्ति को श्री सुंदरी के रूप में और भैरव को सुंदरानंद रूप में पूजा जाता है। दूसरी मान्यता के अनुसार कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। बावन शक्तिपीठों में से एक इस पवित्र धाम में सती माता की ग्रीवा (गला या गरदन) गिरी थी।
36 – विभाष शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर विभाष शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता की बायीं एड़ी गिरी थी। यहाँ माँ सती कपालिनी और शिव भगवान शिवानन्द कहलाते है।
37 – चंद्रभागा शक्ति पीठ, गुजरात
गुजरात के जूनागढ़ जिले में सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में त्रिवेणी संगम के निकट चंद्रभागा शक्ति पीठ स्थित है। यहाँ माँ सती के शरीर का उदर/आमाशय गिरा था यहाँ सती माता को चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड के रूप में जाना जाता है।
38 – अवंती या भैरव पर्वत शक्तिपीठ, मध्यप्रदेश
अवंती या भैरव पर्वत शक्तिपीठ मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है। यहां पर सती के ऊपरी होंठ गिर गये थे। कहा जाता है कि फिर होंठ पतन के स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया था। यहां मां सती की प्रतिमा अवंती के रूप में और भगवान शिव लाम्बाकर्ण के रूप में पूजे जाते हैं।
39 – जनस्थान शक्तिपीठ, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी में जनस्थान शक्तिपीठ स्थित है। इस जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। यहां मां सती भ्रामरी और भैरव विकृताक्ष के रूप में पूजे जाते हैं।
40 – गोदावरीतीर सर्वेशेल शक्तिपीठ, कोटिलिंगेश्वर राजामुंद्री आंध्रप्रदेश
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर गोदावरी तीर शक्ति पीठ या सर्वशैल प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। यहाँ कोटिलिंगेश्वर पर माता के गाल गिरे थे। गोदावरी शक्ति पीठ को सर्वशैल भी कहा जाता है। इस मंदिर में शक्ति को देवी विश्वेश्वरी और राकिनी के रूप पूजा जाता है और भैरव को वत्सनाभ और दण्डपाणि के रूप में पूजा जाता है।
41 – माँ अंबिका शक्तिपीठ विराट भरतपुर राजस्थान
राजस्थान की राजधानी जयपुर से उत्तर में महाभारतकालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफ़ा है, जिसे भीम की गुफ़ा कहते हैं। यहीं के विराट ग्राम में यह शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर सती के दायें पाँव की उँगलियाँ गिरी थीं। यहाँ की सती अंबिका तथा शिव अमृतेश्वर हैं।
42 – रत्नावली शक्तिपीठ, हुगली, पश्चिम बंगाल
गाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर रत्नावली शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां कंधा गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।
43 – मिथिला शक्तिपीठ, बिहार
भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में मिथिला शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता का बायाँ स्कंध गिरा था। इस शक्तिपीठ में शक्ति को ‘उमा’ या ‘महादेवी’ और भैरव को महोदर कहते हैं।
44 – जयदुर्गा शक्तिपीठ पार्वती मंदिर बैजनाथ धाम देवघर झारखंड
झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिग के साथ जयदुर्गा शक्तिपीठ भी है। यहां सती का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान ‘हार्दपीठ’ से भी जाना जाता है। इसकी माता शक्ति है जयदुर्गा और शिव को वैद्यनाथ कहते हैं।
45 – नलहाटी- कालिका तारापीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटी स्टेशन के निकट कालिका तारापीठ है। यहाँ माता के पैर की हड्डी गिरी थी। यहाँ शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं। एक अन्य मान्यता अनुसार तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।
46 – कर्णाट जयादुर्गा शक्ति पीठ, हिमाचल प्रदेश
कर्णाट शक्ति पीठ कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यहाँ माता सती के दोनों कान गिरे थे। यहां देवी को जयदुर्गा या जयदुर्ग और भगवान शिव को अबिरू के रूप में पूजा की जाती है।
47 – महिषमर्दिनी शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर महिषमर्दिनी शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी माता शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।
48 – यशोर- यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, बांग्लादेश
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर यशोरेश्वरी शक्तिपीठस्थित है। इस स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड, शिव को चंद्र कहते हैं। यह बांग्लादेश का तीसरा सबसे प्रमुख शक्तिपीठ है।
49 – अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगला के ‘लाबपुर’ (लामपुर) में अट्टाहास शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर माता का निचला ओष्ठ गिरा था। यहाँ माता सती ‘फुल्लरा’ तथा शिव ‘विस्वेश’ हैं।
50 – नंदीपुर शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। यही नंदीपुर शक्तिपीठ है। यहाँ माता शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं।
51 – इन्द्राक्षी शक्तिपीठ कोनेश्वरम मंदिर ट्रिंकोमाली श्रीलंका
इंद्राक्ष शक्तिपीठ श्रीलंका में है। यहाँ माता सती की पायल गिरी थी। यहं माता सती को इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं। रावण और भगवान राम ने भी यहां पूजा की थी। इसे शंकरी देवी मंदिर भी कहते है। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है।