केंद्र सरकार ने जनवरी 2025 में आठवें वेतन आयोग (8th Pay Commission) की घोषणा की थी और कहा था कि इसकी सिफारिशें 1 जनवरी 2026 से लागू होंगी। शुरुआत में माना गया था कि इस बार सरकार तेजी दिखाते हुए नया रिकॉर्ड बनाएगी, क्योंकि पहले हर वेतन आयोग को गठित होने और उसकी रिपोर्ट लागू होने में लगभग ढाई साल का समय लगता रहा है। लेकिन अब स्थिति उलटी दिख रही है—केवल 100 दिन बचे हैं और आयोग का गठन तक नहीं हो पाया है। न तो अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति हुई है और न ही कर्मचारी संगठनों से औपचारिक चर्चा। ऐसे में संगठनों में यह संशय गहराता जा रहा है कि क्या सिफारिशें समय पर लागू हो पाएंगी।
आयोग के गठन में अड़चनें
‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के अध्यक्ष मंजीत सिंह पटेल के अनुसार, सरकार ने आयोग के लिए आवश्यक स्टाफ की भर्ती प्रक्रिया तो शुरू कर दी है, लेकिन अभी तक चेयरमैन और सदस्यों की घोषणा नहीं की गई। उनका मानना है कि इतनी कम अवधि में आयोग का गठन, रिपोर्ट तैयार करना और उसे लागू करना तकनीकी रूप से मुश्किल है। ऐसे में संभव है कि सरकार पे मेट्रिक्स को आधार बनाकर सिर्फ फिटमेंट फैक्टर संशोधित करे।
फिटमेंट फैक्टर से कितना बढ़ सकता है वेतन?
डॉ. पटेल बताते हैं कि पे मेट्रिक्स पहले से मौजूद है, और अब सिर्फ फिटमेंट फैक्टर पर निर्णय लेना होगा। यदि इसे 2.0 रखा गया तो न्यूनतम बेसिक वेतन ₹18,000 से बढ़कर लगभग ₹36,000 हो जाएगा। वहीं, अगर इसे 1.9 तय किया गया तो बेसिक सैलरी ₹34,200 तक जा सकती है। इसके अलावा संभावना है कि सरकार कुछ लेवल को आपस में मर्ज भी कर दे।
घोषणा अब तक अधूरी
अब तक न तो आयोग के चेयरमैन का नाम घोषित हुआ है और न ही सदस्यों की संख्या स्पष्ट है। वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने हाल ही में आयोग के कामकाज के लिए 35 पदों का विवरण जारी किया है और इन्हें प्रतिनियुक्ति के जरिए भरने की प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन “टर्म ऑफ रेफरेंस” (ToR) की आधिकारिक घोषणा अब तक नहीं हुई।
कर्मचारी संगठनों की अपेक्षाएँ
कर्मचारी संगठनों ने फरवरी में हुई बैठक में अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी थीं। इसमें पदोन्नति, NPS-OPS मुद्दे, महंगाई भत्ते की गणना और कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा जैसे मुद्दे शामिल हैं। लेकिन सरकार ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि इनमें से कौन-सी मांगें ToR का हिस्सा बनेंगी। कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लॉइज एंड वर्कर्स का कहना है कि वेतन संशोधन हर 10 साल में नहीं बल्कि हर 5 साल में होना चाहिए।
पहले कितना समय लगता था?
इतिहास देखें तो हर आयोग की रिपोर्ट को लागू करने में कम से कम दो साल लगते थे। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान यह प्रक्रिया 18 महीने में पूरी हुई थी, जो सबसे तेज़ मानी जाती है। पहले सदस्य विदेशों के भ्रमण पर जाकर वेतन ढाँचे का अध्ययन करते थे, लेकिन अब अधिकतर जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके बावजूद इस बार समय बेहद कम है।
संसद और ToR पर स्थिति
संसद के मानसून सत्र में जब आयोग से जुड़े सवाल पूछे गए, तो सरकार ने किसी भी तारीख या समय-सीमा को लेकर स्पष्ट जवाब नहीं दिया। दूसरी ओर, जेसीएम (JCM) ने सरकार को पत्र भेजकर ToR का ड्राफ्ट सार्वजनिक करने की मांग की, लेकिन अब तक कोई आधिकारिक संचार नहीं हुआ।
कर्मचारियों और पेंशनरों की चिंता
जेसीएम के सचिव शिव गोपाल मिश्रा के अनुसार, सरकार की चुप्पी कर्मचारियों और पेंशनरों में असमंजस पैदा कर रही है। उन्हें यह तक पता नहीं कि उनकी दी गई सिफारिशों पर कितना ध्यान दिया गया है। पेंशनरों की चिंता और भी गहरी है—उन्हें यकीन नहीं कि उनकी पेंशन और महंगाई राहत (DR) में कितना लाभ मिलेगा।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, 8वें वेतन आयोग पर कर्मचारियों और पेंशनरों की उम्मीदें टिकी हैं, लेकिन गठन में देरी ने असुरक्षा और अनिश्चितता बढ़ा दी है। यदि सरकार जल्द कदम नहीं उठाती, तो समय पर सिफारिशें लागू होना कठिन हो जाएगा। कर्मचारियों की मांग है कि आयोग का गठन तुरंत किया जाए और ToR सार्वजनिक कर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।