बांस की खेती कम लागत में बंजर जमीन पर शुरू किया जा सकने वाला लाभदायक व्यवसाय है। एक बार लगाने पर यह फसल 3-4 साल में तैयार होती है और सालों तक लगातार आय देती है। सिरोही के किसान देवीलाल जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि ‘हरा सोना’ सही देखभाल से स्थायी मुनाफे का बेहतरीन साधन बन सकता है।
खेती में मुनाफा तभी बढ़ता है जब किसान पारंपरिक फसलों से आगे बढ़कर नई संभावनाओं की खोज करता है। आज के समय में ऐसी ही एक फसल है बांस जिसे लोग प्यार से “हरा सोना” भी कहते हैं। यह फसल न सिर्फ बंजर जमीन को उपजाऊ बनाती है, बल्कि किसानों को सालों तक लगातार आय का जरिया भी प्रदान करती है।
बंजर जमीन पर भी उपजाऊ अवसर
राजस्थान के सिरोही जिले के किसान देवीलाल ने इस दिशा में एक प्रेरक उदाहरण पेश किया है। उन्होंने अपने खेत की खाली पड़ी जमीन और मेड़ों (बाउंड्री) पर बांस के पौधे लगाए। शुरुआत में सिर्फ प्रयोग के तौर पर शुरू की गई यह पहल आज उनके लिए स्थायी कमाई का मजबूत साधन बन चुकी है।
देवीलाल बताते हैं कि बांस अन्य फसलों की तरह हर साल बोने की जरूरत नहीं होती। यह एक बार लगाने के बाद कई वर्षों तक उत्पादन देता है, जिससे साल-दर-साल मेहनत और लागत दोनों कम हो जाती हैं।
कम खर्च और स्थायी मुनाफा
आर्थिक दृष्टि से देखें तो बांस की खेती किसी भी किसान के लिए एक समझदार निवेश है। एक एकड़ जमीन पर बांस लगाने का शुरुआती खर्च 15,000 से 20,000 रुपए तक आता है। यदि सही देखभाल की जाए तो पांच साल के भीतर इससे 3 से 3.5 लाख रुपए तक की आय संभव है। यह लंबी अवधि में मिलने वाला स्थायी मुनाफा है जो पारंपरिक फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा सुरक्षित साबित हो सकता है।
खेती के लिए सही मौसम और तैयारी
विशेषज्ञों के अनुसार, बांस की रोपाई के लिए जुलाई माह सबसे उपयुक्त माना गया है, क्योंकि इस समय मिट्टी में नमी रहती है और पौधे आसानी से जड़ पकड़ लेते हैं। ध्यान रखने वाली बात यह है कि बांस के पौधे को अलग से रासायनिक खाद की जरूरत नहीं होती। इसकी गिरी हुई पत्तियां खुद-ब-खुद प्राकृतिक खाद (ऑर्गेनिक मैन्योर) का काम करती हैं, जो मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करती हैं।
पौधों के बीच दूरी जरूरी
बांस तेजी से बढ़ने वाला पौधा है। इसके लिए पौधों के बीच 3 से 4 मीटर की दूरी रखनी जरूरी होती है ताकि वे एक-दूसरे की जड़ों और शाखाओं के विकास में बाधा न डालें। बांस का विकास राइजोम यानी भूमिगत तने के जरिए होता है, जो दो महीनों के भीतर ही पूरी ऊंचाई हासिल कर लेता है।
बरसात के मौसम में पौधों के पास हल्की मिट्टी चढ़ाकर जड़ों को ढक देने से पौधे मजबूत होते हैं और उनकी ग्रोथ बेहतर होती है।
कटाई का सही समय और उपयोग
बांस की फसल आमतौर पर 3 से 4 साल में तैयार हो जाती है, हालांकि इसका उपयोग इस बात पर निर्भर करता है कि इसे किस उद्देश्य के लिए काटा जा रहा है। टोकरियाँ या घरेलू उपयोग के सामान बनाने के लिए 3 साल पुराना बांस उपयुक्त होता है, जबकि मजबूत निर्माण कार्यों के लिए 5-6 साल पुराना बांस सबसे सही माना जाता है।
कटाई के लिए अक्टूबर से दिसंबर का समय सबसे अच्छा होता है। गर्मी में कटाई करने से बचना चाहिए, क्योंकि इस दौरान पौधों की नमी खत्म हो सकती है और जड़ें सूखने का खतरा रहता है।
बांस की प्रमुख किस्में और चयन
भारत में बांस की लगभग 136 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, लेकिन व्यावसायिक खेती में करीब 10 किस्में सबसे ज्यादा उपयोग में लाई जाती हैं। जैसे — बाम्बूसा बालकोआ, डेंड्रोकैलमस स्ट्रिक्टस, बाम्बूसा टूला आदि। अच्छी फसल के लिए यह जरूरी है कि किसान अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार सही किस्म का चयन करें।
बांस की बढ़ती मांग और संभावनाएँ
बांस का उपयोग फर्नीचर, निर्माण, कागज उद्योग, अगरबत्ती, सजावटी वस्तुओं और धार्मिक कार्यों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसकी बाजार में बढ़ती मांग किसानों को स्थायी रूप से जोड़े रखने का एक मजबूत कारण बनती जा रही है। बांस की खेती से न सिर्फ किसान की आय बढ़ती है, बल्कि यह मिट्टी के कटाव को भी रोकती है और पर्यावरण में हरियाली बढ़ाने का काम करती है।
बांस की खेती उन किसानों के लिए एक बेहतरीन अवसर है जो कम लागत में दीर्घकालिक मुनाफा चाहते हैं। थोड़ी समझदारी और सही मार्गदर्शन के साथ यह फसल किसी भी बंजर जमीन को हरे-भरे उद्योग में बदल सकती है।
