हर साल अरबों का किराया क्यों? ट्रेनें बनाने का अनोखा फंडा जो बजट बचाता है, लेकिन सच्चाई हैरान कर देगी। तेज रफ्तार, लग्जरी सुविधाओं के पीछे छिपा ये राज जानिए!
देश की गर्वित वंदे भारत ट्रेनें तेज रफ्तार और लग्जरी का नया चेहरा बन चुकी हैं। लाखों यात्री इनकी चमक-दमक और सुविधाओं के दीवाने हो गए हैं, लेकिन एक चौंकाने वाली सच्चाई छिपी है। रेलवे इनके लिए सालाना करोड़ों-अरबों रुपये का किराया क्यों चुकाता है?
ट्रेनों का निर्माण और विस्तार
इन ट्रेनों के सैकड़ों कोच चेन्नई के कारखानों समेत देशभर में तैयार हो चुके हैं। कुछ तो विदेशी बाजारों तक पहुंच चुके हैं। सतही नजर में रेलवे ही इनका मालिक नजर आता है, लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अलग है।
फंडिंग का अनोखा तरीका
ट्रेनें बनाने और नेटवर्क बढ़ाने के लिए रेलवे को भारी पूंजी लगानी पड़ती है। इसके बजाय एक खास कंपनी बाजार से उधार उठाती है और ये संपत्तियां रेलवे को लंबी अवधि के लिए लीज पर दे देती है। इस तरह बिना बजट पर दबाव डाले विकास होता रहता है।
किराए की असलियत
यह किराया कोई साधारण भाड़ा नहीं, बल्कि उधार की मूल राशि और उसके ब्याज का हिसाब है। पिछले साल ही 30 हजार करोड़ से ज्यादा चुकाए गए, जिसमें आधा हिस्सा मूलधन और बाकी ब्याज था। इसमें वंदे भारत के अलावा हजारों इंजन और ट्रैक भी शामिल हैं।
सिस्टम के फायदे
यह मॉडल रेलवे को एक साथ भारी खर्च से बचाता है। ट्रेनों से होने वाली आय से धीरे-धीरे पैसे लौटाए जाते हैं। नतीजा ज्यादा ट्रेनें, बेहतर सेवाएं और आधुनिक रेल यात्रा बिना आर्थिक संकट के।
