ऑस्ट्रेलियाई पौधा की खेती से किसान कम खर्च में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अगर आपके पास खाली पड़ी जमीन है, तो यह खेती आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।
ऑस्ट्रेलियाई पौधा की खेती कैसे होती है
ऑस्ट्रेलियाई पौधा की खेती में तगड़ा मुनाफा होता है। यहां इसकी पूरी जानकारी दी जा रही है। लेकिन सबसे पहले जानते हैं इसकी खेती का तरीका। ऑस्ट्रेलियाई पौधे को यूकेलिप्टस, सफेदा, नीलगिरी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है। किसान नर्सरी से इसके पौधे लाकर इसकी रोपाई कर सकते हैं।
यूकेलिप्टस की लकड़ी से फर्नीचर, पार्टिकल बोर्ड, हार्ड बोर्ड, पेटियां आदि बनाई जाती हैं। इसके अलावा ईंधन के तौर पर भी इसका उपयोग होता है। किसान इसे खेत की मेड़ों पर, पूरे खेत में या खाली पड़ी जमीन पर लगा सकते हैं।
पौधे लगाने के लिए 1-1 मीटर चौड़ा, लंबा और गहरा गड्ढा खोदें। इसमें पुरानी गोबर की खाद, बालू और फंगीसाइड मिलाएं। इसके बाद लगभग 1 किलो एनपीके खाद डाल कर मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिला दें और पौधा लगाकर मिट्टी भर दें। पौधों के बीच लगभग 2 मीटर की दूरी रखें। यह पौधा करीब 6 साल में तैयार हो जाता है। अब जानते हैं इसके खर्च और मुनाफे के बारे में।
ऑस्ट्रेलियाई पौधा की खेती में खर्च और मुनाफा कितना होता है
यूकेलिप्टस की खेती के लिए खेत की तैयारी, गड्ढे बनाना, खाद डालना और पौधे खरीदने पर खर्च आता है। इसमें मजदूरी और अन्य सामग्री का खर्च भी शामिल होता है। नर्सरी में यूकेलिप्टस के पौधे ₹7 से ₹8 प्रति पौधा मिल जाते हैं। यदि किसान बेहतर गुणवत्ता और उन्नत किस्म के पौधे लेना चाहते हैं, तो पौधों की कीमत ₹25 से ₹30 तक भी हो सकती है। एक हेक्टेयर में यूकेलिप्टस की खेती करने पर लगभग ₹25,000 से ₹30,000 तक का शुरुआती खर्च आ सकता है। वहीं एक एकड़ में करीब 1,000 से 1,200 पौधे लगाए जाते हैं।
कमाई की बात करें, तो विशेषज्ञों बताते है कि एक हेक्टेयर से 70 लाख से लेकर 1 करोड रुपए तक कमा सकते हैं। 6 से 12 साल में एक हेक्टेयर से अच्छी आमदनी हो सकती है। एक पेड़ से औसतन 400 से 500 किलो लकड़ी प्राप्त होती है। बाजार में लकड़ी का भाव ₹25 से ₹40 प्रति किलो तक देखा जाता है, जो क्षेत्र और मांग पर निर्भर करता है। अगर किसान को अपने इलाके में अच्छा बाजार भाव मिल जाता है, तो यूकेलिप्टस की खेती एक लंबी अवधि का लाभदायक विकल्प साबित हो सकती है। बस इसमें धैर्य और सही प्रबंधन जरूरी है।
