क्या आप जानते हैं कि धरती पर एक ऐसी जगह भी है जिसका कोई मालिक नहीं? यहाँ न वीजा लगता है, न किसी देश का कानून चलता है। जानें बीर ताविल के उस लावारिस रेगिस्तान की कहानी, जहाँ आम लोग भी खुद को ‘राजा’ घोषित कर चुके हैं!
दुनिया में एक ऐसी जगह भी मौजूद है जिसे कोई भी देश अपना नहीं मानता। अफ्रीका के रेगिस्तान में स्थित ‘बीर ताविल’ (Bir Tawil) एक ऐसा इलाका है, जहाँ आधिकारिक तौर पर किसी भी देश का शासन नहीं है। यहाँ आने-जाने के लिए आपको किसी पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं पड़ती और न ही यहाँ किसी सरकार का कोई कानून चलता है। आधुनिक दुनिया के राजनीतिक नक्शे में यह जगह बिल्कुल अलग-थलग है। यह एक बंजर रेगिस्तानी भूमि है, जिस पर आज तक न तो मिस्र और न ही सूडान ने अपना दावा पेश किया है, जिससे यह दुनिया की चुनिंदा ‘बिना मालिक वाली’ जगहों में से एक बन गई है।
2060 वर्ग किलोमीटर का लावारिस रेगिस्तान, जहाँ न सरकार है न इंसान
मिस्र और सूडान की सीमाओं के बीच बसा बीर ताविल लगभग 2060 वर्ग किलोमीटर में फैला एक विशाल रेगिस्तानी इलाका है। यह दुनिया की उन दुर्लभ जगहों में से एक है जहाँ सीमाओं को लेकर कोई झगड़ा नहीं है, बल्कि दोनों पड़ोसी देश इसे अपना मानने से कतराते हैं। यहाँ न तो कोई शहर बसा है, न कोई स्थायी आबादी रहती है और न ही किसी सरकार का कोई दखल है। यह पूरी तरह से एक वीरान और खाली भूमि है, जो आधुनिक दुनिया के प्रशासनिक और कानूनी दायरे से कोसों दूर है।
क्यों कोई देश इसे अपना नहीं कहना चाहता? जानें 123 साल पुराना सीमा विवाद
बीर ताविल के लावारिस होने की असली वजह अंग्रेजों के जमाने का एक पुराना नक्शा है। साल 1899 में अंग्रेजों ने एक सीधी रेखा वाली सीमा खींची, जिससे यह इलाका सूडान के पास चला गया। लेकिन 1902 में उन्होंने नक्शा बदल दिया और इसे मिस्र के हिस्से में दिखा दिया। आज विवाद यह है कि मिस्र पुराने नक्शे को मानता है और सूडान नए नक्शे को। दरअसल, दोनों देशों की नजर पास के ‘हलायिब ट्रायंगल’ पर है, जो संसाधनों और समंदर के किनारे होने के कारण बहुत कीमती है।
अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक, अगर कोई देश बीर ताविल पर दावा करता है, तो उसे कीमती ‘हलायिब’ से हाथ धोना पड़ेगा। इसीलिए, हलायिब को पाने के चक्कर में बीर ताविल आज भी लावारिस पड़ा है।
बेटी को राजकुमारी बनाने के लिए एक पिता ने रच दिया नया देश
बीर ताविल के लावारिस होने की कहानी ने दुनिया भर के साहसी लोगों को अपनी ओर खींचा है। साल 2014 में अमेरिका के जेरेमिया हीटन ने यहाँ पहुँचकर अपना झंडा गाड़ दिया और इसे ‘किंगडम ऑफ नॉर्थ सूडान’ घोषित कर दिया, ताकि वह अपनी बेटी का ‘राजकुमारी’ बनने का सपना पूरा कर सकें। ठीक इसी तरह 2017 में भारत के सुयश दीक्षित ने भी यहाँ जाकर अपना झंडा फहराया और खुद को इस जमीन का शासक बताया। हालांकि, इन कहानियों ने इंटरनेट पर खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन हकीकत यह है कि संयुक्त राष्ट्र या किसी भी देश की सरकार ने इनके दावों को कानूनी मान्यता नहीं दी है।
क्या झंडा गाड़ते ही बन जाता है नया देश? जानें क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून
अक्सर लोग सोचते हैं कि किसी लावारिस जमीन पर झंडा फहराकर नया देश बनाया जा सकता है, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, किसी भी क्षेत्र को ‘देश’ का दर्जा पाने के लिए चार मुख्य शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है: वहां की अपनी एक स्थायी आबादी होनी चाहिए, उसकी निश्चित सीमाएं तय हों, वहां एक सक्षम सरकार काम कर रही हो और सबसे महत्वपूर्ण बात कि उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता (International Recognition) प्राप्त हो। बिना अन्य देशों और संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के, कोई भी दावा महज एक कागजी कहानी बनकर रह जाता है।
