रामेश्वरम धाम के बारे में
रामेश्वरम चार धामों में से एक धाम और भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में एक पवित्र तीर्थ स्थान है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ एक खूबसूरत आइलैंड है। जिसका आकार एक सुंदर शंख की तरह है रामेश्वर का अर्थ होता है भगवान राम और इसलिए इस स्थान का नाम भगवान राम के नाम पर रामेश्वरम रखा गया। रामेश्वर शिवलिंग कोई सामान्य शिवलिंग नही है। इसे सीता माता ने खुद अपने हाथों से बनाया था। भगवान श्री रामचन्द्र जी ने इस शिवलिंग की स्थापना की और पूजन किया। यहां का प्रसिद्ध रामनाथस्वामी मंदिर दशरथनंदन भगवान श्री राम को समर्पित है। हर साल इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु माता सीता जी के द्वारा निर्मित रामेश्वर शिवलिंग का दर्शन करने आते है और महादेव का आशीर्वाद लेते है।
रामेश्वरम कैसे पहुंचे?
हम हवाई यात्रा से रामेश्वरम कैसे पहुच सकते है?
रामेश्वरम के लिए निकटतम एयरपोर्ट मदुरई में है, जो शहर से लगभग 149 किलोमीटर दूर है। तूतीकोरिन एयरपोर्ट भी 142 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो हवाई मार्ग से रामेश्वरम पहुंचने का एक माध्यम है। एयरपोर्ट के बाहर से बस, कैब और किराए की टैक्सियों से शहर तक या रामेश्वरम तक पहुँच सकते है
हम ट्रेन से रामेश्वरम कैसे पहुँच सकते है?
मदुरई तमिलनाडु का एक बड़ा शहर है। रामेश्वरम जाने के लिए हमें मदुरई से गुजरकर जाना पड़ता है। भारत के सभी प्रमुख शहरों से रामेश्वरम जाने के लिए सीधे ट्रेन उपलब्ध है। पर यदि आपके शहर से रामेश्वरम जाने के लिए सीधे ट्रेन नहीं है, तो मदुरई जाने के लिए अवश्य होगी ही। मदुरई 100 से अधिक ट्रेन जाती है। मदुरई से रामेश्वरम ट्रेन से भी जा सकते है
सड़क मार्ग से रामेश्वरम कैसे पहुंचे
देश के विभिन्न शहरों से रामेश्वरम सड़क से अच्छी तरह से जुडा हुआ हैं। मदुरइ से और अन्य शहरों से रामेश्वरम के लिए AC और NON AC बस चलती है। मदुरई से हर आधे घंटे में बस जाती है।
रामेश्वरम यात्रा पर जाने के लिए सबसे अच्छा समय
रामेस्वरम का मौसम ठण्ड के दिनों में बहुत सुहाना होता है। नवम्बर से फरवरी के बीच में यात्रा करना बहुत सुखद होगा। उस समय रामेश्वरम में न ठण्ड पड़ती है और न ही गर्मी।
रामेश्वरम का पूरे वर्ष का तापमान
Seasons Months Temperature
Summers March -June 27°c – 44°c
Monsoon July- October 27°c – 35°c
Winter November – February 19°c – 31°c
रामेश्वरम में कहाँ रुके?
- रामेश्वरम मंदिर के परिसर को लगाकर ही बहुत सारी प्राइवेट होटल और धर्मशालाये है। आप एडवांस में कई प्रकार की होटल में ऑनलाइन रूम बुक कर सकते है।
- रामेश्वरम में रामनाथ स्वामी मंदिर की वेबसाइट पर जाकर कमरे का स्थान देख सकते है। यहाँ डबल बेड रूम रू. 500 में उपलब्ध है।
- मंदिर परिसर में धर्मशाला भी है। यहाँ कॉमन रूम मुफ्त में या नाममात्र शुल्क में मिलता है। पर एडवांस में बुक नहीं होता है। और इस बात की कोई श्योरिटी नहीं है कि आपको रूम समय पर खाली मिल जाये।
रामेश्वरम धाम की पौराणिक कथा
रामेश्वरम की स्थापना किसके द्वारा की गई?

लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब भगवान श्री राम जी सीता जी के साथ वापस आ रहे थे तो उन्होंने सागर पार करने के बाद सर्वप्रथम गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया था। तब गंधमादन पर्वत पर बड़े-बड़े ऋषि मुनि उनका दर्शन करने वहाँ पहुँचे। तब ऋषियों ने श्री राम जी को आशीर्वाद दिया और बताया कि रावण का वध करने के कारण आपको ब्रह्म हत्या का पाप लगा है। तब श्री राम जी ने ऋषियों से ही इस समस्या का उपाय पूछा ताकि वे पाप मुक्त हो सकें। तब सब ऋषियों ने भगवान राम से कहा कि आप यहां एक शिवलिंग का निर्माण करते हैं और उस शिवलिंग की पूजा करते हैं। भगवान महादेव जी को प्रसन्न करते हैं। इस प्रकार आप ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो सकते हैं। तब भगवान श्री राम जी ने हनुमान जी को आदेश दिया कि कैलाश पर्वत जाओ और एक लिंग के बारे में आओ। हनुमान जी बड़े वेग से आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत की तरफ तरफ चल पड़े और जब कैलाश पर्वत पहुंचे, तो भगवान शिव तपस्या में लीन थे। हनुमानजी भगवान शिव की आँखे खुलने का इंतजार करते रहे। उधर रामेश्वरम में शिवलिंग की पूजा का मुहूर्त करीब आ रहा था। तब सीता माता चिंता में व्याकुल होने लगी। तब पूजा का मुहूर्त निकल जाने की डर से माता सीता ने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया और भगवान श्रीराम जी ने सीतामाता के द्वारा निर्मित शिवलिंग की स्थापना मुहूर्त अनुसार की और शिवलिंग की पूजा की। इस प्रकार वे ब्रम्ह हत्या के दोष और पाप से पूरी तरह मुक्त हो गए हैं। शिवलिंग की पूजा समाप्त होने के बाद जब हनुमान जी आये तो उन्होंने देखा कि शिवलिंग की स्थापना हो चुकी है तो उन्हें अत्यंत दुःख हुआ तब वे श्रीराम जी की के चरणों में गिर पड़े। तो भगवन श्री रामजी ने बताया कि शुभ मुहूर्त न बीत जाए इसीलिए शिवलिंग की स्थापना और पूजा करवानी पड़ी। लेकिन तब भी हनुमान जी पूर्णतः संतुष्ट नहीं हुए। तब श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा कि द्वारा लाये हुए शिवलिंग की पुनः स्थापना करते हैं और इस शिवलिंग को उखाड़ देते हैं तब हनुमान जी बहुत खुश हुए। जब उन्होंने कहा कि शिवलिंग को उखाड़ने की कोशिश की तो वह शिवलिंग नहीं उखड़ा। वह वज्र की तरह कठोर हो गया था। हनुमान जी ने सभी तरह के प्रयास किए लेकिन उन्होंने शिवलिंग को पूर्ण रूप से स्थिर किया। अंत में हनुमान जी 3 किलोमीटर की दूरी पर जाकर गिरे और बेहोश हो गए। माता सीता स्नेह के वशीभूत होकर रोने लगी और तब हनुमान जी को होश में आ गए और उन्होंने श्री राम जी को देखा तो उन्हें परब्रह्म के दर्शन हुए। तब उन्होंने रोते हुए भगवान श्रीराम और सीता माता से क्षमा याचना की। तब श्री राम जी ने उन्हें समझाया कि यह शिवलिंग उनके द्वारा स्थापित किया गया है। उसे सृष्टि की कोई भी शक्ति नहीं उखाड़ सकती। अपने भक्त हनुमान जी पर दया और स्नेह के कारण उनके द्वारा लाये हुए शिवलिंग को भी वहीँ स्थापित कर दिया। तब हनुमान जी अत्यंत प्रसन्न हुए। इस प्रकार भगवान श्री राम जी के द्वारा स्थापित शिवलिंग का नाम रामेश्वर रखा गया और हनुमान जी के द्वारा लाये गए शिवलिंग का नाम हनुमदीश्वर रखा गया। हनुमान जी के द्वारा लाया गया शिवलिंग मंदिर के भीतर हनुमान मंदिर में स्थापित है। वहाँ दर्शन अवश्य करें।
रामेश्वरम मंदिर का इतिहास
रामेश्वरम् दक्षिण भारत का प्रसिद्ध तीर्थ है। रत्नाकर कहलाने वाली बंगाल की खाड़ी यहीं पर हिंद महासागर से मिलती है। रामेश्वरम् और सेतु बहुत प्राचीन है। परंतु रामनाथ का मंदिर उतना पुराना नहीं है। दक्षिण के कुछ और मंदिर डेढ़-दो हजार साल पहले के बने है, जबकि रामनाथ के मंदिर को बने अभी कुल आठ सौ वर्ष से भी कम हुए है। इस मंदिर के बहुत से भाग पचास-साठ साल पहले के है।
मंदिर में विशालाक्षी जी के गर्भ-गृह के निकट ही नौ ज्योतिर्लिंग हैं, जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित बताए जाते हैं। रामनाथ के मंदिर में जो ताम्रपट है, उनसे पता चलता है कि 1173 ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था। उस मंदिर में अकेले शिवलिंग की स्थापना की गई थी। देवी की मूर्ति नहीं रखी गई थी, इस कारण वह नि:संगेश्वर का मंदिर कहलाया। यही मूल मंदिर आगे चलकर वर्तमान दशा को पहुंचा है।
बाद में पंद्रहवीं शताब्दी में राजा उडैयान सेतुपति और निकटस्थ नागूर निवासी वैश्य ने 1450 में इसका 78 फीट ऊंचा गोपुरम निर्माण करवाया था। बाद में मदुरई के एक देवी-भक्त ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। सोलहवीं शताब्दी में दक्षिणी भाग के द्वितीय परकोटे की दीवार का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने करवाया था। इनकी व इनके पुत्र की मूर्ति द्वार पर भी विराजमान है। इसी शताब्दी में मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक के एक अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने नंदी मण्डप आदि निर्माण करवाए। नंदी मण्डप 22 फीट लंबा, 12 फीट चौड़ा व 17 फीट ऊंचा है। रामनाथ के मंदिर के साथ सेतुमाधव का मंदिर आज से पांच सौ वर्ष पहले रामनाथपुरम् के राजा उडैयान सेतुपति और एक धनी वैश्य ने मिलकर बनवाया था।
सत्रहवीं शताब्दी में दलवाय सेतुपति ने पूर्वी गोपुरम आरंभ किया। 18 वीं शताब्दी में रविविजय सेतुपति ने देवी-देवताओं के शयन-गृह व एक मंडप बनवाया। बाद में मुत्तु रामलिंग सेतुपति ने बाहरी परकोटे का निर्माण करवाया। 1897 – 1904 के बीच मध्य देवकोट्टई से एक परिवार ने 126 फीट ऊंचा नौ द्वार सहित पूर्वीगोपुरम निर्माण करवाया। इसी परिवार ने 1907-1925 में गर्भ-गृह की मरम्मत करवाई। बाद में इन्होंने 1947 में महाकुम्भाभिषेक भी करवाया।
रामेश्वरम मंदिर का अदभुत वास्तु शिल्प

भगवान श्री रामेश्वर जी का मंदिर 15 एकड़ में फैला हुआ है। यह विशाल मन्दिर एक हज़ार फुट लम्बा, छ: सौ पचास फुट चौड़ा तथा एक सौ पच्चीस फुट ऊँचा है। इसका निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है। यह मंदिर तीन भागो में बना है। पूर्वी गोपुरम, पच्छिमी गोपुरम, भीतर का गलियारा और बाहर का गलियारा। मंदिर के चारो ओर ऊंची दीवार बनी है। जिसकी पूर्व से पक्ष्चिम की लम्बाई 865 फिट है और उत्तर से दक्षिण की लम्बाई 657 फिट है। मंदिर के बाहर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा बना है। चबूतरे पर पांच फुट ऊंचे स्तंभ बने है। छत स्तंभ के आधार पर बनी है। गलियारों की ऊंचाई 9 मी. और परकोटे की चौड़ाई 6 मी. है। लम्बाई पूर्व पच्छिम में 133 मी. और उत्तर दक्षिण में 197 मी. है। मंदिर के प्रवेश द्वार 38.4 मी. ऊंचा है। गलियारों में 1212 स्तंभ है। जो पहली नजर में देखने से एक जैसे लगते है, पर नजदीक से देखने पर पता चलता है की हर एक स्तंभ की कारीगरी एक दूसरे से अलग है। हर एक स्तंभ पर शिल्प कला की कारीगरी की गयी है। इस मन्दिर में प्रधान रूप से एक हाथ से भी कुछ अधिक ऊँची शिव जी की लिंग मूर्ति स्थापित है। इसके आलावा मन्दिर में बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर शिव प्रतिमाएँ हैं। नन्दी जी की भी एक विशाल और बहुत आकर्षक मूर्ति लगायी गई है। भगवान शंकर और पार्वती की चल-प्रतिमाएँ भी हैं, जिनकी शोभायात्रा वार्षिकोत्सव पर निकाली जाती है। इस अवसर पर सोने और चाँदी के वाहनों पर बैठा कर शिव और पार्वती की सवारी निकलती है। वार्षिकोत्सव पर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग को चाँदी के त्रिपुण्ड और श्वेत उत्तरीय से सजाया जाता है, जिससे शिवलिंग की अद्भुत शोभा होती है।
रामेश्वरम में तीर्थ स्नान का महत्व
रामेश्वरम में तीर्थ स्नान का बहुत महत्व है। आपको पहले अग्नि तीर्थ में स्नान करना है फिर गीले कपड़ों में मंदिर परिसर के अन्दर 22 तीर्थ में स्नान करना है। यह तीर्थ मंदिर के परिसर में कुएँ के रूप में स्थित है। जिनमे शिव तीर्थ और माधव तीर्थ सरोवर के रूप में है। अगस्त्य तीर्थ और महालक्ष्मी तीर्थ बावलियां के रूप में है। मंदिर के स्टाफ के लोग यात्रियों को स्नान करने के लिए रस्सी और बाल्टी साथ रखते है। तथा जब आप तीर्थ के निकट जाते है तो वे आपको तीर्थो का जल निकालकर कराते जाते है। रामेश्वरम धाम में तीर्थ की संख्या 24 है। मंदिर परिसर के अन्दर 22 तीर्थ है तथा मंदिर परिसर के बाहर पूर्वी द्वार के सामने 2 तीर्थ है जिनमे एक अग्नि तीर्थ है जो श्रेष्ठ माना जाता है। पूर्वी द्वार के सामने स्थित समुद्र को ही अग्नि तीर्थ कहते है। यहा माता सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी। अग्नि तीर्थ के पास ही आगस्त्य तीर्थ है इन तीर्थो के नाम इस प्रकार है:
माधव तीर्थ | ब्रह्महत्या विमोचन तीर्थ | शंख तीर्थ | गायत्री तीर्थ |
गवय तीर्थ | गंगा तीर्थ | चक्र तीर्थ | महालक्ष्मी तीर्थ |
गवाक्ष तीर्थ | यमुना तीर्थ | अमृत व्यापी तीर्थ | अग्नि तीर्थ |
नल तीर्थ | गया तीर्थ | शिव तीर्थ | आगस्त्य तीर्थ |
नील तीर्थ | सूर्य तीर्थ | सरस्वती तीर्थ | सर्व तीर्थ |
गंधमादन तीर्थ | चंद्र तीर्थ | सावित्री तीर्थ | कोटि तीर्थ |
Rameshwaram Yatra in Hindi
अब प्रवेश करें मुख्य रामनाथस्वामी (रामेशवरम) मंदिर में :-
सभी तीर्थ स्नान करने के बाद आपको गीले कपडे बदलना है, गीले कपड़ों में प्रवेश वर्जित है। मुख्य मंदिर में प्रवेश करने पर आप आश्चर्य चकित रह जायेंगे, अन्दर विश्व का सबसे बड़ा गलियारा है, सैकड़ों बड़े बड़े पत्थर के स्तंभ खड़े है उन सभी स्तम्भ पर देवी देवता के सुन्दर शिल्प बने है। इतनी अद्भुत भारतीय वास्तु कला पर आपको गर्व होगा। यहाँ दो शिवलिंग स्थापित है। हनुमानजी के द्वारा कैलाश पर्वत से लाया शिव लिंग एवं सीता माता द्वारा बनायारेत का शिव लिंग। सबसे पहले हनुमानजी द्वारा लाये शिव लिंग का दर्शन करले। श्री राम ने हनुमाजी को वरदान दिया था। हनुमानजी द्वारा लाये शिव लिंग का दर्शन करने के बाद ही सीता माता द्वारा निर्मित शिव लिंग का दर्शन करने से ही रामेश्वरम की यात्रा पूर्ण होगी। जब आप गर्भ गृह की तरफ जायेंगे तो वहां लम्बी लाइन लगी होगी। लाइन में व्यर्थ की बातें ना करके मन ही मन ॐ नम: शिवाय का जाप करते रहे गर्भ गृह के पास जाने पर आपको दीयों की रौशनी में चमकता हुआ शिवलिंग दिखाई देगा। अपने मन को एकाग्र करके भगवान के शिवलिंग का दर्शन करें। मंदिर परिसर के अन्दर अनेक अन्य भी मंदिर है जो लंका नरेश विभीषण ने स्थापित किये थे। अम्बिका माता मंदिर, पार्वती माता मंदिर, हनुमान मंदिर, विसालाक्षी मंदिर के निकट नौ ज्योतिर्लिंग है।
रामनाथस्वामी शिवलिंग पर अपने हाथो से जल नही चढा सकते
श्री रामनाथस्वामी मंदिर के सामने घडो का घेरा लगा है। तीनो द्वारों के भीतर श्री रामनाथस्वामी का ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है ज्योतिर्लिंग के ऊपर शेषजी के फनो का छत्र है। श्री ज्योतिर्लिंग पर कोई भक्त अपने हाथो से जल नही चढ़ा सकता। ज्योतिर्लिंग पर हरिद्वार या गंगोत्री से लाया गंगा जल ही चढ़ता है और वह जल पुजारी को दे देने पर पुजारी जी भक्तो के सामने ही चढ़ा देते है। ज्योतिर्लिंग पर पुष्प और माला अर्पित करने का कोई शुल्क नही है, परंतु जल चढ़ाने का शुल्क लगता है।
रामेश्वरम मंदिर में पूजा की समय सरणी
S.no | पूजा | समय |
1) | Palliyarai दीपा Arathana | 05:00 AM |
2) | Spadigalinga दीपा Arathana | 05:10 AM |
3) | Thiruvananthal दीपा Arathana | 05:45 AM |
4) | विला पूजा | 07:00 AM |
5) | Kalasanthi पूजा | 10:00 AM |
6) | Uchikala पूजा | 12:00 दोपहर |
7) | Sayaratcha पूजा | 06:00 PM |
8) | Arthajama पूजा | 08:30 PM |
9) | Palliyarai पूजा | 08:45 PM |
रामेश्वरम मंदिर में निम्न कार्यो के लिए शुल्क देना पडता है।
ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाने के लिए
श्री रामेश्वर जी का दुग्धाभिषेक करने के लिए
नारियल चढ़ाने के लिए
त्रिशतार्चन के लिए
अष्टोत्तरार्चन के लिए
भगवन रामेश्वर जी के तथा माता पार्वती के बहुत से वाहन तथा रत्नाभरण सोने चाँदी के है। इनका उपयोग महोत्सव के समय किया जाता है। यदि आप इन्हें देखने की इच्छा रखते हो तो मंदिर के कार्यालय में निर्धारित शुल्क जमा करके रसीद ले लीजिये। मंदिर में अलग अलग कार्यो के लिए अलग अलग शुल्क है।
आभूषण दर्शन के लिए
श्री रामेश्वर जी तथा पार्वती जी की रथ यात्रा का महोत्सव कराने के लिए
पंचमूर्ति उत्सव कराने के लिए
रजतथोत्सव कराने के लिए
पंचमूर्ति उत्सव में भगवन शिव और माता पार्वतीजी की प्रतिमाये वाहनो पर सुसज्जित करके मंदिर के तीन मार्गो तथा मंदिर के बाहर के मार्ग में घुमाई जाती है और रजत रथोत्सव में वे यह यात्रा चांदी के रथ में करती है। रथयात्रा के समय भगवान के रथ में विधुत सज्जा का अभूतपूर्व प्रकाश रहता है। जिससे श्री रामेश्वर जी और माता पार्वतीजी की रथ यात्रा अत्यंत सुन्दर और आकर्षण से पूर्ण होती है।
रामेश्वरमधाम के अन्य के दर्शनीय मंदिर और स्थल
रामेश्वरमधाम के समीप बहुत सारे पौराणिक मंदिर ओर तीर्थ है। आपको दक्षिण द्वार से या अग्नि तीर्थ के पास से से बस,कार, ऑटो किराये पर मिल जाएगी।
साक्षी हनुमान मंदिर रामेश्वरम
रामेश्वरम मंदिर से 2 कि.मी. की दूर गन्धमादन पर्वत जाते समय रास्ते में साक्षी हनुमान मंदिर मिलता है। इस जगह पर हनुमान जी ने भगवान राम को सीता जी के बारे में बताया था कि सीता माता श्रीलंका में है और प्रमाण के तौर पर सीतामाता की दी हुई चूड़ामणि श्रीराम को दिखाई थी।
गन्धमादन पर्वतम (रामझरोखा) रामेश्वरम

साक्षी हनुमान मंदिर से 1 किलोमीटर की आगे बढ़ने पर गन्धमादन पर्वत स्थित है। यह एक छोटा सा शिखर है, जो रामेश्वरम का सबसे ऊँचा स्थान माना जाता है। यहाँ मंदिर दो मंजिल में बना हुआ है। इस मंदिर में भगवान राम के अति सुन्दर चरण चिन्ह उभरे हुए है। हनुमानजी ने यही से समुद्र को पार करने का अनुमान लगाया था तथा भगवान श्री रघुनाथ जी ने यही पर ही सुग्रीव और अन्य मुख्य वानरों के साथ लंका से युद्ध के संबंध में मंत्रणा की थी। ऊपर के मंजिल की छत से रामेश्वरम का दृश्य बेहद खूबसूरत और मनभावन दिखता है।
पंचमुखी हनुमान मंदिर रामेश्वरम

पंचमुखी हनुमान मंदिर गन्धमादन पर्वत के समीप स्थित है। यहाँ हनुमानजी की काले रंग की भव्य प्रतिमा है। इस मंदिर का एक और बड़ा आकर्षण है। वानर सेना ने समुद्र पर सेतु बनाने के लिए जिन बड़े बड़े पत्थर का प्रयोग किया था वह तैरते पत्थर यहाँ रखे हुए है।
एकांत राम मंदिर रामेश्वरम
इस मंदिर में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता की बहुत ही सुंदर प्रतिमाएं है। धुर्नधारी श्री राम भगवान जी की एक प्रतिमा ऐसी बनाई गई है, मानो वह कोई गंभीर बात कर रहे हो। दूसरी प्रतिमा में श्रीराम माता सीताजी की ओर देखकर मंद मुस्कान के साथ कुछ कह रहे है। ये दोनों प्रतिमाएं बहुत सुन्दर है और जीवित प्रतीत होती है। यहां सागर में लहरें बिल्कुल नहीं आतीं, इसलिए एकदम शांत रहता है। शायद इसीलिए इस स्थान का नाम एकांत राम है। इस मंदिर में अब कुछ अवशेष ही बचे हैं। रामनवमी के उपलक्ष पर यहां दर्शन के लिये भीड़ रहती है, पर बाकी सामान्य दिनों में बिलकुल सुनसान रहता है।
लक्ष्मण तीर्थ रामेश्वरम

लक्ष्मण तीर्थ रामेश्वरम् मंदिर के पास स्थित है। यहां पर मंदिर से लगा हुआ एक तालाब बना हुआ है। इस मंदिर की मान्यता के अनुसार यह तालाब श्री लक्ष्मण जी स्नान के लिए उपयोग करते थे। इस मंदिर में दीवारों पर रामायण की कथा अति सुन्दर चित्रों के द्वारा समझाई गई है।
अब्दुल कलाम स्मारक रामेश्वरम
रामेश्वरम मंदिर से 5 किमी दूर पूर्व राष्ट्रपति ऐ. पी. जे. अब्दुल कलम जी का स्मारक स्थित है। जिस स्थान पर कलामजी को दफनाया गया था, उसी स्थान पर स्मारक बना है। यहाँ पर कलामजी की 7 फुट ऊंची कास्य की मूर्ति रखी है। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की वाद्य यंत्र वीणा को स्मारक के केंद्र में रखा गया है। डॉ कलाम की दो अन्य सिलिकॉन मूर्तियां हैं, जहाँ पर वे बैठे और खड़े हुए हैं। यहाँ कलामजी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य व्यक्तिगत सामान भी रखे गये है। स्मारक के बाहर अग्नि -2 मिसाइल भी रखी हुई है, जो 45 फिट ऊँची और चार टन वजन की है। यहाँ फोटो लेना सख़्त मना है।
तकनीक का कमाल पंबन ब्रिज रामेश्वरम

यह भारत का ऐसे यह अद्भुत पुल है जो समुद्र के ऊपर बने हुआ है। ये पुल रेल और सड़क पर दोनों बने है। ये पंबन गांव के पास बने है। इस लिए पंबन पुल नाम से ही जाने जाते है। रेलवे पुल भारत के सबसे अनोखे रेलवे ट्रेक में से एक है। जब आप ट्रेन से इस पुल के ऊपर से गुजरते है तो जबर्दस्त रोमांचक की अनुभूति होती है यहाँ से प्रकृति का खूबसूरत नज़ारा दिखता है। रेलवे पुल 24/02/1914 को रेल यातायात के लिए खोला गया था। यह भारत का पहला समुद्र के ऊपर बना पुल था। मुंबई बांद्रा वरली लिंक बनने से पहले भारत का सबसे लंबा पुल था। यह पुल 2.3 किमी लम्बा है। इस पुल के नीचे से जब पानी के जहाज गुजरते है तब इस पुल को 6 कर्मचारी बीच में से ऊपर उठाते है पुल के नीचे से जहाज़ निकल जाने के बाद पुल को फिर से नीचे किया जाता है। 1988 से पहले रामेश्वरम जाने के लिए एक मात्र ज़रिया यह रेल पुल ही था।
विलूंदी तीर्थ (बाण गंगा) रामेश्वरम

विलूंदी तीर्थ, कलाम स्मारक से 2 किमी की दूरी पर थागाचिंदम गांव के समीप स्थित है। यह रामेश्वरम का एक पवित्र तीर्थ है। एक बार माता सीताजी को प्यास लगी तो भगवान राम ने माता सीताजी की प्यास बुझाने के लिए इस स्थान पर समुद्र में तीर मारा था। खरे पानी के समुद्र से मीठे पवित्र जल की धारा उत्पन्न हुई थी। फिर अपने धनुष से एक कुएँ का निर्माण किया था जिसका पानी पीकर देवी सीता ने अपनी प्यास बुझाई थी। आप कुँए के निकट मंदिर से मीठे जल को पीकर इस आश्चर्य का अनुभव कर सकते है।
जाड़ा (जटा) तीर्थ रामेश्वरम
यह जाड़ा नाम का एक पवित्र तालाब रामेश्वरम् से 3.5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जब भगवान राम लंका से रावण का वध करके लौट रहे थे, तब भगवान राम इसी स्थान पर ठहरे थे। उस समय भगवान श्रीराम और उनके भ्राता लक्ष्मण जी ने अपनी बालों को मतलब जटा को धोया था। इसलिए इसे जटा तीर्थ कहा जाता है। यहाँ पर श्रीरामचन्द्र जी ने एक शिव लिंग का निर्माण किया था एवम् उसकी पूजा अर्चना की थी। इस शिव लिंग को श्री रामलिंग भी कहा जाता है।
कोथान्दारामस्वामी मंदिर रामेश्वरम

कोथान्दारामस्वामी मंदिर को लगभग 500 साल पुराना माना जाता है। यह रामेश्वरम् मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है यहीं वही जगह है, जहां पर भगवान श्रीराम ने विभीषण का अभिषेक करके उन्हें लंका का राजा घोषित किया था। इस मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता के साथ विभीषण की भी मूर्ति स्थित है। इसके परिसर में भगवान राम के चरणों के चिन्ह भी हैं और मंदिर की दीवारों पर विभीषण के अभिषेक करने हुए भगवान राम की अनेक तस्वीरें भी बनी हुई हैं।
राम सेतु रामेश्वरम
कोथान्दारामस्वामी मंदिर के पास राम सेतु स्थित है इसी जगह से जहां से भगवान श्रीराम ने सेतु (पुल) बनाने की शुरुआत की गई थी। प्राक्रतिक विपदाओं के कारण आज वास्तविक पुल विलुप्त हो गया है, लेकिन इसी जगह को राम सेतु का मूल स्थान माना जाता है।
धनुषकोडि (घोस्ट सिटी) रामेश्वरम

धनुषकोड़ी रामेश्वरम से 26 किमी की दूर पर है। पहले पंबन गाँव से धनुषकोडि तक एक रेल चलती थी। यहाँ रेलवे स्टेशन, सरकारी कार्यालय, पोस्ट ऑफ़िस, दुकानें, मंदिर ,चर्च और कई भवन बने थे। श्रीलंका के लिए यहाँ से नाव से यात्रियों का आना जाना और सामान का व्यापार होता था। 22 दिसंबर 1964 में भयानक तूफान आया था। पूरा धनुषकोडि तबाह हो गया था। अनुमान है कि तूफान में लगभग 2,000 लोग मारे गए थे। सरकार ने इसे एक भूतिया शहर घोषित किया। अब कुछ अवशेष जैसे रेलवे स्टेशन, चर्च, पोस्ट ऑफ़िस और कुछ टूटी फूटी इमारतें बची हैं। पहले धनुष्कोदी तक पहुंचने के लिए रेत में बस या टैक्सी से ड्राइव करना पड़ता था। अब एक नई सड़क धनुष्कोदी के माध्यम से अरिचल मुनई (इरिसियन प्वाइंट) भारत भूमि के अंत तक जाती है, जहां हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी मिलती है
अरिचल मुनई – सागर संगम
भारत भूमि का अंतिम छोर धनुष्कोड़ी के पास अरिचल मुनई है। यहाँ दो समुद्र हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी का संगम होता हैं। यह स्थान भारत और श्रीलंका की सीमा है, यहां से श्रीलंका लगभग मात्र 18 समुद्री मील दूरी पर स्थित है।