रतन टाटा और शांतनु नायडू का रिश्ता गुरु-शिष्य से बढ़कर व्यक्तिगत था। शांतनु नायडू, टाटा ट्रस्ट के युवा जनरल मैनेजर और उद्यमी, को रतन टाटा ने अपने बेटे जैसा माना। हालांकि, नायडू को टाटा समूह का वारिस नहीं माना गया है, लेकिन वे टाटा की सामाजिक विरासत को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
रतन टाटा, भारतीय उद्योग जगत के प्रतीक और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन, का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके साथ जुड़े लोगों और प्रशंसकों के लिए यह एक बड़ी क्षति है, खासकर उनके करीबी सहायक और मित्र शांतनु नायडू के लिए, जिन्हें रतन टाटा ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बेहद करीब रखा था।
शांतनु नायडू, रतन टाटा के विश्वासपात्र
शांतनु नायडू, जो अब टाटा ट्रस्ट के सबसे युवा जनरल मैनेजर हैं, ने 2022 में रतन टाटा के साथ काम करना शुरू किया। नायडू की पहचान तब बनी जब उन्होंने एक सामाजिक उद्यम शुरू किया, जिसमें सड़कों पर कुत्तों को सुरक्षित रखने के लिए रिफ्लेक्टिव कॉलर डिजाइन किए। यह पहल रतन टाटा, जो स्वयं एक पशु प्रेमी थे, का ध्यान आकर्षित करने में सफल रही। नायडू ने टाटा को एक पत्र लिखा, और उनकी इस परियोजना ने दोनों के बीच दोस्ती की शुरुआत की।
टाटा और नायडू के बीच यह रिश्ता सिर्फ व्यावसायिक नहीं था, बल्कि व्यक्तिगत भी था। रतन टाटा ने नायडू को अपने करीबी सर्कल में शामिल किया और कई मौकों पर उन्हें अपने बेटे जैसा माना। नायडू ने एक स्टार्टअप Goodfellows भी स्थापित किया, जो वरिष्ठ नागरिकों को साथी सेवा प्रदान करता है, और इसमें रतन टाटा ने निवेश किया था, यह दिखाते हुए कि टाटा नायडू की उद्यमशीलता और समाजसेवा में विश्वास करते थे।
क्या शांतनु नायडू होंगे टाटा समूह के वारिस?
हालांकि शांतनु नायडू और रतन टाटा का संबंध बेहद करीबी था, लेकिन नायडू का नाम टाटा समूह के उत्तराधिकारियों में आधिकारिक तौर पर सामने नहीं आया है। टाटा समूह की संचालन व्यवस्था पहले से ही एन. चंद्रशेखरन के नेतृत्व में है, और नोएल टाटा जैसे परिवार के अन्य सदस्य भी प्रमुख भूमिकाओं के लिए तैयार हैं।
शांतनु नायडू का भविष्य टाटा समूह के आधिकारिक नेतृत्व में भले ही न हो, लेकिन उनकी भूमिका टाटा की सामाजिक और मानवीय विरासत को आगे बढ़ाने में अहम हो सकती है। टाटा के लिए उनका आदर और स्नेह उन्हें टाटा परिवार के साथ लंबे समय तक जुड़े रहने का संकेत देता है।
रतन टाटा और शांतनु नायडू का संबंध केवल एक गुरु-शिष्य का नहीं, बल्कि एक दोस्ती और विश्वास पर आधारित था। नायडू ने अपनी कड़ी मेहनत और उद्यमशीलता से न केवल टाटा का दिल जीता, बल्कि उनकी विरासत का एक अहम हिस्सा भी बने। हालांकि नायडू टाटा समूह के सीधे वारिस नहीं होंगे, लेकिन उनके सामाजिक और उद्यमशील कार्यों में टाटा के मूल्य हमेशा जीवित रहेंगे।
यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में शांतनु नायडू किस तरह से टाटा की सामाजिक दृष्टि को आगे बढ़ाते हैं और कैसे वे रतन टाटा की विरासत को संजोकर रखते हैं।