गेहूं की बुआई का समय नजदीक आ रहा है, इसके साथ ही किसान गेहूं की नई उन्नत किस्मों के बीजों की व्यवस्था करने में लग गए हैं। इस वर्ष किसानों के बीच गेहूं की दो नई उन्नत किस्मों “करण वंदना DBW 187 और करण वैष्णवी DBW 303″ किस्मों की मांग बहुत अधिक है। ऐसे में किसान को कौन सी किस्म की खेती करना चाहिए यह जानना बहुत जरुरी है, क्योंकि दोनों ही किस्मों की उत्पादन क्षमता अन्य किस्मों की तुलना में बहुत अधिक है। किसान समाधान इन दोनों किस्मों से जुड़ी विशेष जानकारी आपके लिये लेकर आया है जिससे किसानों को दोनों किस्मों के चयन में मदद मिलेगी।
बता दें कि DBW 303 और DBW 187 दोनों ही किस्मों का विकास भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा किया गया है। दोनों ही किस्म को भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के लिए अनुशंसित किया गया है। जिसमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झाँसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले), हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तराखंड (तराई क्षेत्र) के कुछ हिस्से शामिल है। गेहूं की दोनों ही किस्मों की खेती सिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है।
करण वंदना DBW 187 की विशेषताएँ
- अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के परीक्षणों में DBW 187 की औसत उपज 75.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पायी गई है जो प्रचलित किस्मों HD 2967 एवं 3086 के मुकाबले क्रमशः 21.2 प्रतिशत व 3.85 प्रतिशत अधिक है। इस प्रजाति की अधिकतम उत्पादन क्षमता 96.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- सिंचित व समय से बुआई वाली दशा में इस किस्म की औसत पैदावार 61.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पायी गई है।
- dbw 187 की पूरे उत्तरी मैदानी क्षेत्र में पैदावार की अच्छी स्थिरता पायी गई है और अधिक उर्वरकों और वृद्धि नियंत्रकों के प्रयोग द्वारा और अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। साथ ही साथ देर से बुआई करने पर भी इस किस्म की उत्पादन क्षमता गर्मी सहनशीलता के कारण अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पायी गई है।
- यह किस्म पीला व भूरा रतुआ की सभी प्रमुख रोगजनक प्रकारों के लिए प्रतिरोधक क्षमता के साथ ही साथ गेहूं बलास्ट रोग के प्रति भी रोधी है।
- इस किस्म के दानों में उच्च प्रोटीन (12.0%) है तथा प्रोटीन की प्रकार ग्लू 10 के परिपूर्ण स्कोर का समावेश होने के कारण इसमें निर्मित उत्पाद गुणवत्ता पूर्ण बनते हैं। साथ ही यह किस्म गेहूं के कई उत्पादों के लिए उपयुक्त है।
- dbw 187 किस्म की अगेती बुआई में औसतन 103 दिनों में तथा समय से बुआई में औसतन 98 दिनों में बालियाँ निकलना शुरू हो जाता है, वहीं अगेती बुआई में औसतन 158 दिनों में और समय से बुआई में औसतन 146 दिनों में यह किस्म पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
- समय से बुआई करने पर इस किस्म के पौधों की ऊँचाई औसतन 103 सेमी होती है वहीं 1000 ग्राम दानों का वजन 45 ग्राम होता है। वहीं अगेती बुआई की दशा में पौधों की ऊँचाई औसतन 100 सेमी होती है वहीं 1000 ग्राम दानों का वजन 47 ग्राम होता है।
गेहूं किस्म करण वैष्णवी DBW 303 की विशेषताएँ
- अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के गेहूं परीक्षणों में इस किस्म की औसत उपज 81.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पायी गई है जो की HD-2967 एवं HD-3086 से क्रमशः 30.3 प्रतिशत एवं 11.7 प्रतिशत अधिक है।
- उत्पादन परीक्षणों के तहत इस किस्म द्वारा 97.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की रिकॉर्ड पैदावार क्षमता दर्ज की गई है।
- इस क़िस्म की पूरे जोन में पैदावार की अच्छी स्थिरता पायी गई है और अधिक उर्वरकों और वृद्धि नियंत्रकों के प्रयोग के लिये अच्छे परिणाम मिले हैं।
- यह किस्म पीला, भूरा और काला रतुआ की सभी प्रमुख रोगजनक प्रकारों के लिए प्रतिरोधक पायी गई है। इसके अलावा DBW 303 में करनाल बंट (4.2%) एवं गेहूं ब्लास्ट रोग के प्रति अत्यधिक रोगरोधिता पायी गई है।
- करण वैष्णवी DBW 303 के दानें में उच्च प्रोटीन मात्रा (12.1%), अच्छा चपाती स्कोर (7.9), अधिक गीला व सूखा ग्लूटन मात्रा (34.9% और 11.3 %) और बिस्कुट फैलाव 6.7 सेमी है।
- अच्छा ब्रेड गुणवत्ता स्कोर (6.4/10), उच्च अवसादन मूल्य (64.8) के कारण यह किस्म गेहूं के कई उत्पादों के लिए बहुत उपयुक्त है।
- DBW 303 किस्म में औसतन 101 दिनों में बालियाँ निकलना शुरू हो जाती है, वहीं यह किस्म 156 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
- इसके पौधों की ऊँचाई औसतन 101 सेमी तक होती है और इसके 1000 दानों का वजन लगभग 42 ग्राम होता है।
DBW 187 और DBW 303 में अंतर
- गेहूं किस्म करण वंदना DBW 187 की बुआई अगेती और समय पर दोनों स्थितियों में की जा सकती है, जबकि करण वैष्णवी DBW 303 की अगेती बुआई करने पर अच्छे परिणाम मिलते हैं। दोनों ही किस्मों की बुआई 25 अक्टूबर से 05 नवंबर के दौरान करने पर अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
- दोनों ही किस्मों को 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है, किसान पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद तथा शेष सिंचाई सिंचाई 25 से 35 दिनों के अंतराल पर कर सकते हैं।
- DBW 187 की औसत उपज क्षमता 75.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है जबकि DBW 303 की औसत उपज क्षमता 81.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- वहीं बात की जाए अधिकतम उपज क्षमता की तो DBW 303 की अधिकतम उपज क्षमता 97.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तो वहीं DBW 187 की अधिकतम उपज क्षमता 96.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।