रबी की फसलें लगाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं तो चलिए इस लेख में जानते हैं कि रबी की फसलें कौन-कौन सी है, इनकी खेती कब होती है, सही समय क्या है, कब काटा जाता है, रबी और खरीफ की फसल में अंतर क्या है।
रबी की फसलें (Rabi ki Fasal) कौन सी हैं
रबी शब्द अरबी शब्द के वसंत से लिया गया है। जिसमें वह फसले आती है जिनकी खेती सर्दियों में किसान करते हैं। रबी की फसलों की बात करें तो किसान गेहूं, जौ, मटर, सरसों, तिलहन, अलसी, चना और आलू आदि आती है। जिनकी खेती किसान इस सर्दी के मौसम में करते हैं। लेकिन इसका एक समय होता है अगर सही समय पर किसान खेती करेंगे तो उन्हें ज्यादा उपज मिलेगी और मंडी में कीमत भी अधिक मिलेगी।
रबी की फसलों की बात करें तो कई फसले आती हैं जिनमें से मुख्यतः गेहूं, जौ, चना, मटर, सरसों, तिलहन, आलू और अलसी के साथ जइ है। इन फसलों की खेती किसान रबी सीजन में करते हैं। रबी की फसले यानी कि सर्दियों की फसले। रबी सीजन शुरू होने से पहले मानसून खत्म होता है। जिसके वजह से मिट्टी में पानी की बढ़िया मात्रा होती है और खेती में किसानों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती। मौसम भी ठंडा होता है। जिससे अच्छी उपज किसानों को मिलती है। जिनमें से कुछ ऐसी भी फसले हैं जिन्हें किसान अक्टूबर से लेकर अप्रैल तक बो सकते हैं तो चलिए आपको बताते हैं कि रबी की फसल कब बोई जाती है।
रबी की फसल कब बोई जाती है
रबी की खेती का एक सही समय होता है। अगर रबी की फसलें समय पर नहीं बोयेंगे तो नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिसमें महीने की बात करे तो अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक किसान रबी फसलों की खेती करते हैं। यानी कि ठन्डे मौसम में रबी की फसलें लगाई जाती है। लेकिन जिन किसानों के पास सिंचाई की अच्छी सुविधा नहीं है, वह दीपावली तक रबी की फसले बोते हैं। जिसमें गेहूं रबी की मुख्य फसल है, तो चलिए आपको बताते हैं गेहूं की खेती कब की जाती है। इसके बाद रबी की अन्य फसलों की खेती का समय भी जानेगे।
गेहूं की खेती का समय
गेहूं की खेती के सही समय की बात करें तो अक्टूबर से किसान दिसंबर महीने तक गेहूं की खेती करते हैं। लेकिन तापमान इस समय गिरने लगता है जिससे बीजों का अंकुरण प्रभावित होता है। जमाव बढ़िया से नहीं होता है। क्योंकि गेहूं के दोनों को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान चाहिए होता है। अगर अंकुरण अच्छे से नहीं होगा तो उत्पादन घट सकता है। लेकिन कुछ चीजों का ध्यान रखकर किसान उत्पादन बढ़ा सकते हैं। अगर दिसंबर में भी खेती करते हैं तो जैसे कि जो किसान देरी से फसल की बुवाई कर रहे हैं, वह अधिक बीजों की बुवाई करें, उर्वरक की मात्रा में 25 प्रतिशत की कमी करेंगे।
दिसंबर और जनवरी महीने में अगर गेहूं की खेती कर रहे हैं तो बीज 25% अधिक ले। जिससे अगर जमाव की संख्या कम हो तो भी उन्हें नुकसान ना हो। इस समय खेती करने पर किसानों को लागत अधिक या कम नहीं लगेगी। क्योंकि रासायनिक खाद 25% कम लेंगे और 20-25% ज्यादा लेंगे। तो कुल मिलाकर लागत संतुलित हो जाएगी। गेहूं की खेती का उचित समय इस समय नवंबर से लेकर दिसंबर तक होता है। नवंबर के पहले सप्ताह से लेकर दिसंबर तक इसकी खेती किसान करते हैं। लेकिन जो जनवरी में खेती करना चाहते हैं उनके यहां तापमान बहुत गिर रहा है तो ऊपर बताइ बातों का ध्यान रखें।
चना की खेती का समय
चना की खेती किसानों के लिए मुनाफे वाली है। लेकिन चना की खेती के समय का भी ध्यान रखना चाहिए। जिसमें वह किसान जो असिंचित क्षेत्रों में चना की खेती करते हैं वह बुवाई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में कर सकते हैं। लेकिन जहां पर किसानों को सिंचाई की बढ़िया सुविधा है वह 30 अक्टूबर तक बुवाई कर ले। वही वह किसान जो बरानी हालातो में चने की बुवाई करते हैं उन्हें 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच खेती करनी चाहिए।
अगर किसान काबुली चना या देसी चना की भी खेती कर रहे हैं उनके पास पानी की सुविधा है तो 25 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच खेती कर सकते हैं। अगर किसान धान की खेती कर रहे हैं और लेट से उनका खेत खाली हो रहा है तो चना की बुवाई दिसंबर के मध्य तक भी कर सकते हैं। यानी कि अभी भी चना की कुछ वैरायटी किसान लगा सकते हैं।
मटर की खेती का समय
रबी की फसलों में मटर की भी खेती कई किसान करते हैं। जिसमें मटर की खेती के सही समय की बात करें तो किसान जो कि मैदानी इलाकों से आते हैं। वह मटर की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक कर सकते हैं। वहीं पहाड़ी इलाकों के किसान मटर की बुवाई मई महीने में करें। इसके अलावा समशीतोष्ण क्षेत्र के किसान मटर की बुवाई अक्टूबर से मार्च तक कर सकते हैं। मटर के बीजों को अंकुरित होने में 15 से 20 दिन का समय लगता है। वह किसान जो अगेती मटर की खेती करना चाहते हैं सितंबर माह के अंत से लेकर अक्टूबर की शुरुआत तक इसकी खेती करें। अगेती खेती में किसानों को कीमत अधिक मिलती है।
सरसों की बुवाई का समय
सरसों की खेती में भी किसानों को फायदा है। साल भर सरसों के तेल की डिमांड बनी रहती है और कीमत भी बढ़ती रहती है। जिसमें समय की बात कर तो वह किसान जिनके पास पानी की व्यवस्था है, सिंचित क्षेत्र के किसान है तो सरसों की बुवाई 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच कर सकते हैं। वही बारानी क्षेत्र के किसान 25 सितंबर से 15 अक्टूबर तक सरसों की बुवाई कर सकते हैं। सरसों की खेती के लिए तापमान की बात करें तो 15 से लेकर 25 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान बेहतर होता है।
आलू की खेती का समय
आलू की खेती में किसानों को कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। तभी उन्हें बढ़िया पैदावार मिलेगी और फिर मुनाफा होगा। जिसमें समय भी जरूरी होता है और आलू की वैरायटी का भी ध्यान रखना चाहिए। आलू के सही किस्म का चुनाव करेंगे तभी फायदा होगा। आलू की खेती के लिए समय की बात करें तो आलू की बुवाई का सही समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के मध्य तक किसान इसकी बुवाई कर सकते हैं। लेकिन अगर किसानों ने ऐसी वैरायटी का चयन किया है जो कि मध्यम अवधि की है तो इसकी बुवाई अक्टूबर से मध्य नवंबर तक कर सकते हैं।
अगर किसान आलू की पछेती किस्म की बुवाई कर रहे हैं तो पछेती आलू की किस्म की बुवाई का समय दिसंबर के पहले सप्ताह से लेकर जनवरी के पहले सप्ताह तक रहता है। यानी कि अभी भी किसान आलू की पछेती किस्म की खेती करना चाहे तो कर सकते हैं। लेकिन अगेती किस्म की खेती में अधिक फायदा होता है। मंडी में ज्यादा कीमत मिलती है तो इसकी बुवाई 15 सितंबर के आसपास करें और अगर किसान मुख्य फसल की खेती करना चाहते हैं तो आलू की मुख्य फसल की बुवाई का समय 15 से 25 अक्टूबर के बीच का होता है।
अलसी की बुवाई का समय
अलसी की बुवाई के सही समय के बात करें तो किसानों को मिट्टी की नमी का ध्यान रखकर करना चाहिए। अक्टूबर से नवंबर के बीच नमी अच्छी होती है तो इस समय अलसी की बुवाई कर सकते हैं। लेकिन असंचित क्षेत्र के किसान अगर अलसी की खेती करना चाहते हैं तो असंचित क्षेत्र के लिए अलसी की बुवाई का समय अक्टूबर का पहला पखवाड़ा होता है।
लेकिन अगर किसानों के पास पानी की सुविधा है और वह सिंचित क्षेत्र के किसान है तो सिंचित क्षेत्र में अलसी की बुवाई का समय नवंबर का पहला पखवाड़ा होता है। अगर किसान अलसी की खेती समय पर जल्दी कर लेते हैं तो उन्हें खेती में लागत कम आती है, पैदावार ज्यादा मिलती है। क्योंकि जल्दी अलसी की बुवाई करने पर पाउडर फ़फूंदी, जंग, और अलसी कली मक्खी लगते हैं। मसूर सर्दियों की रबी की फसल ही मानी जाती है और फसल को तैयार होने में 120 से 140 दिन के बीच का समय लगता है।
मसूर की खेती का समय
मसूर की खेती भी रबी सीजन में किसान भाई लोग करते हैं। सर्दियों में ही इसकी खेती किसान करते हैं। जिसमें बुवाई का सही समय देखे तो मसूर की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर के बीच कर सकते हैं। अभी दिसंबर का महीना चल रहा है। इस समय भी किसान मसूर की खेती कर सकते हैं। मसूर की बुवाई 15 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर के बीच में किस करते हैं। लेकिन वर्षा आधारित क्षेत्रों में किसान अक्टूबर के पहले पखवाड़े में ही मसूर की खेती कर लेते हैं।
जिसमें किसान अगर मसूर की खेती से अधिक पैदावार लेना चाहते हैं तो 15 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर के बीच इसकी बुवाई करें। इसके अलावा मसूर की खेती से किसान अधिक मुनाफा लेना चाहते हैं तो मिट्टी की जांच करके इसकी खेती करें। लेकिन हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में मसूर की बुवाई सर्दी के मौसम में किसान नवंबर से लेकर दिसंबर के बीच तक कर सकते हैं।
जौ की बुवाई का समय
जौ की खेती में कई किसान कर रहे हैं। धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ रही है। जिसमें जो की बुवाई का समय, क्षेत्र और जलवायु के अनुसार निर्धारित होता है। जिसमें वह किसान जो पर्वतीय क्षेत्र के रहने वाले हैं जौ की वह बुवाई नवंबर मध्य से लेकर के दिसंबर के पहले सप्ताह तक करते हैं। यानी कि अभी भी इसकी खेती कर सकते है। लेकिन वह किसान जो सिंचित क्षेत्र के हैं और जौ की खेती करना चाहते हैं तो सिंचित क्षेत्र के लिए जौ की बुवाई का समय नवंबर का दूसरा सप्ताह और नवंबर का आखिरी सप्ताह रहता है और असिंचित क्षेत्र के किसान जौ की बुवाई 15 से लेकर के 30 अक्टूबर तक करते हैं।
अगर जौ की बुवाई किसान देरी करके करेंगे तो पैदावार में कमी देखने को मिलती है। जौ का इस्तेमाल पशु आहार, औद्योगिक उत्पादन आदि बनाने में किया जाता है।
जइ की बुवाई समय
जइ की बुवाई का भी एक समय होता है। सर्दियों में इसकी खेती किसान करते हैं सर्दियों की शुरुआत में ही जइ की बुवाई की जाती है। यानी कि अक्टूबर के दूसरे सप्ताह या आखिरी सप्ताह तक किसान जइ की खेती कर सकते हैं। लेकिन जइ की बुवाई का समय दिसंबर का पहला सप्ताह भी रहता है तो अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक इसकी खेती किसान कर सकते हैं। जइ की खेती में किसानों को पानी का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसे पर्याप्त सिंचाई देनी पड़ती है। तभी अच्छी उपज मिलती है। लेकिन जइ की खेती का उचित समय अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से लेकर आखिरी सप्ताह तक रहता है।
रबी की फसलें कब कटती है?
रबी की फसल की अगर किसान सही समय पर बुवाई कर देते हैं तो कटाई के समय की बात करें तो रबी की फसल की कटाई अप्रैल से जून के बीच में होती है। काटने के बाद इन्हें अच्छे से सुखाया जाता है। रबी के कुछ फसले अप्रैल से लेकर जून तक रहती है। यानी की जून महीने में भी कुछ फसलों की कटाई होती है तो अप्रैल से जून के बीच चलने वाली फसलों में गेहूं, चना, जौ, मटर और सरसों भी आते हैं।
रबी और खरीफ की फसल में अंतर
रबी और खरीफ की फसलों के बीच में मौसम बुवाई-कटाई जलवायु फसल उत्पत्ति कई चीजों को लेकर अंतर देखा जाता है तो चलिए नीचे लिखे बिंदुओं के अनुसार जानते हैं-
- रबी और खरीफ की फसल में मौसम को लेकर बड़ा अंतर होता है। रबी की फसल सर्दियों में उगाई जाती है और खरीफ की फसल मानसून के मौसम में उगने वाली है।
- रबी और खरीफ की फसल में एक अंतर बुवाई और कटाई के समय का है। रबी की फसल अक्टूबर से नवंबर के बीच में बोई जाती है और मार्च अप्रैल जून तक इसकी कटाई अलग-अलग फसलों के आधार पर होती है। खरीफ की फसलों की बुवाई जून से जुलाई के बीच होती है। जबकि कटाई अक्टूबर से नवंबर के बीच होती है।
- इसके बाद रबी और खरीफ की फसल में एक अंतर जलवायु का होता है। रबी की फसले ठंडी जलवायु की फसले होती है। वही खरीफ की फसले गर्म और नम जलवायु की फसले होती हैं। रबी की फसले ठंड और शुष्क दोनों जलवायु की फसले मानी जाती है।
- रबी और खरीफ दोनों फसलों के नाम की उत्पत्ति में भी अंतर होता है और जैसा कि हमने पहले बताया रबी शब्द की उत्पत्ति अरबी के वसंत से हुई है। वही खरीफ शब्द की उत्पत्ति अरबी के पतझड़ शब्द से हुई है तो इस हिसाब से भी एक नाम में ही दोनों के अंतर है।
- रबी की मुख्य फसले तो हमने ऊपर जाना है। लेकिन खरीफ की फसलों की बात करें तो धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, रागी, बाजरा, दलहन फसले आदि है।
जिन लोगों को रबी और खरीफ फसलों में भ्रम है वह लोग आसानी से इसे समझने के लिए या कहे की याद करने में दिक्कत होती है तो यह ध्यान रख ले की रबी सर्दियों की फसल है तो आसानी से दोनों फसलों में आपको अंतर समझ में आएगा।