One Nation One Election : ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे भारतीय सरकार ने चुनावी प्रणाली में सुधार के लिए पेश किया है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है। इस विचार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने कार्यकाल के दौरान पहली बार उठाया था। हाल ही में, सरकार ने इस संबंध में विधेयक को लोकसभा में पेश किया है, जिससे राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।
One Nation One Election का महत्व
संविधान संशोधन: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव संविधान के 129वें संशोधन से जुड़ा है। इसके तहत, लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा पेश किया गया था और इसे जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा जाएगा.
चुनावी खर्च में कमी: सरकार का मानना है कि इससे चुनावी खर्च कम होगा और प्रशासनिक बोझ में भी कमी आएगी। बार-बार चुनाव होने से विकास कार्यों में रुकावट आती है, जबकि एक साथ चुनाव कराने से विकास की गति तेज होगी.
One Nation One Election विधेयक की प्रक्रिया
विधेयक को पेश करने के बाद जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) का गठन किया जाएगा, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल होंगे। जेपीसी सभी दलों की राय लेकर इस पर चर्चा करेगी और अपनी रिपोर्ट लोकसभा के स्पीकर को सौंपेगी। यदि जेपीसी इसे स्वीकार कर लेती है, तो यह विधेयक संसद में आगे बढ़ेगा और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन जाएगा.
विपक्ष की चिंताएँ
हालांकि, विपक्षी पार्टियाँ इस प्रस्ताव का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि यह संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है। कई राजनीतिक दलों ने इस पर चिंता जताई है कि इससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित होगी। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने भी कहा कि भारत में चुनाव कराने का खर्च इतना अधिक नहीं है कि इसे एक साथ कराने की आवश्यकता पड़े.
संभावित समय सीमा
इस विधेयक के लागू होने की प्रक्रिया 2034 तक हो सकती है, क्योंकि इसके लिए कई संवैधानिक बदलावों की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, सरकार इसे 2024 के चुनावों से पहले लागू करने की योजना बना रही है, लेकिन इसके लिए लंबी प्रक्रिया अपनानी होगी.
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव भारत की चुनावी प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाने का प्रयास है। हालांकि इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से राजनीतिक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। सरकार और विपक्ष दोनों ही इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय रख रहे हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विधेयक संसद में क्या रूप लेता है।