द्रौपदी को रानी बनाने का सपना लेकर दुर्योधन स्वयंवर में पहुंचा, लेकिन असफलता और अपमान ने उसे प्रतिशोध की आग में झोंक दिया। जानें, कैसे अर्जुन बने विजेता और क्यों द्रौपदी ने कर्ण और दुर्योधन को ठुकरा दिया। यह कहानी महाभारत की जंग का बीज साबित हुई।
द्रौपदी, महाभारत के केंद्रीय पात्रों में से एक, राजा द्रुपद की पुत्री थीं। उनका जन्म यज्ञ के माध्यम से अग्नि की ज्वालाओं से हुआ था, और वह इतनी सुंदर और आकर्षक थीं कि सभी राजा-महाराजा उनसे विवाह करने की इच्छा रखते थे। इसी वजह से दुर्योधन भी द्रौपदी को अपनी रानी बनाने का सपना देखता था। लेकिन, द्रौपदी का स्वयंवर उसके लिए एक ऐसा मोड़ साबित हुआ जिसने उसकी महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया और प्रतिशोध की आग में झोंक दिया।
स्वयंवर और द्रौपदी का वर चुनने का अधिकार
द्रुपद ने द्रौपदी के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। यह आयोजन सरल नहीं था, बल्कि इसमें एक चुनौती थी। एक पात्र में रखे पानी के प्रतिबिंब के माध्यम से घूमती मछली की आंख पर तीर से निशाना लगाना था। यह शर्त इतनी कठिन थी कि केवल अर्जुन जैसे धनुर्धर ही इसे पूरा कर सकते थे। स्वयंवर का आयोजन न केवल राजाओं और राजकुमारों के लिए शक्ति और कौशल का प्रदर्शन था, बल्कि द्रौपदी को वर चुनने का अधिकार भी देता था।
दुर्योधन की स्वयंवर में असफलता
दुर्योधन ने स्वयंवर में भाग लिया, लेकिन धनुर्विद्या में निपुण न होने के कारण वह मछली की आंख पर निशाना नहीं लगा सका। द्रौपदी की हंसी ने उसकी असफलता को और भी तीखा बना दिया। इस अपमान ने दुर्योधन के मन में द्रौपदी के प्रति बैरभाव को और गहरा कर दिया।
द्रौपदी ने कर्ण पर भी कटाक्ष किया, जिसे उन्होंने सूतपुत्र कहकर स्वयंवर से बाहर कर दिया। कर्ण का यह अपमान पांडवों के प्रति उसके द्वेष का मुख्य कारण बना।
दुर्योधन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा
दुर्योधन की द्रौपदी से विवाह की इच्छा केवल व्यक्तिगत नहीं थी। वह इसे अपने राजनीतिक गठबंधन को मजबूत करने और राजा द्रुपद के समर्थन से अपनी शक्ति बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देखता था। द्रौपदी से विवाह करके वह पांडवों के खिलाफ मजबूत स्थिति में आ सकता था।
लेकिन, अर्जुन ने ब्राह्मण वेश में आकर स्वयंवर की शर्त पूरी की और द्रौपदी का वरण किया। यह दुर्योधन के लिए सबसे बड़ा झटका था, क्योंकि उसका सपना चूर-चूर हो गया।
दुर्योधन का प्रतिशोध
स्वयंवर में असफल होने और द्रौपदी के तानों के कारण दुर्योधन ने प्रतिशोध की आग में जलते हुए द्युत क्रीड़ा का षड्यंत्र रचा। शकुनि के साथ मिलकर उसने पांडवों को द्युत क्रीड़ा में हराया और द्रौपदी को अपमानित किया। यह घटना महाभारत युद्ध की नींव बनी।
द्रौपदी का दुर्योधन को अस्वीकार करना
द्रौपदी को दुर्योधन कभी पसंद नहीं था। यहां तक कि द्रौपदी ने दुर्योधन को “अंधे का बेटा अंधा” कहकर उसका अपमान भी किया। यह घटना उस समय हुई जब दुर्योधन पांडवों के नए महल के शीशे के फर्श के भ्रम में गिर पड़ा था। यह अपमान दुर्योधन के प्रतिशोध की एक और वजह बना।
स्वयंवर के अन्य प्रतिभागी
दुर्योधन के अलावा कई अन्य राजाओं ने भी द्रौपदी को पाने की कोशिश की, लेकिन वे भी असफल रहे:
- कर्ण: कर्ण ने स्वयंवर में भाग लिया, लेकिन द्रौपदी ने उन्हें सूतपुत्र कहकर अस्वीकार कर दिया।
- जयद्रथ: सिंधु देश के राजा जयद्रथ भी द्रौपदी से विवाह करना चाहते थे, लेकिन वे भी असफल रहे।
- शिशुपाल: चेदि देश के राजा शिशुपाल ने भी अपनी दावेदारी पेश की, लेकिन वह भी स्वयंवर की शर्त पूरी नहीं कर सके।
द्रौपदी का वर बनना और महाभारत की नींव
अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त पूरी कर द्रौपदी को वरमाला पहनाई। इसके बाद पांचों पांडवों ने द्रौपदी को अपनी पत्नी बनाया। यह घटना महाभारत की कहानी का एक महत्वपूर्ण मोड़ बनी। द्रौपदी को अपमानित करने की दुर्योधन की साजिशों और प्रतिशोध की भावना ने कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया।