आचार्य चाणक्य एक लोकप्रिय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार थे. चाणक्य ने अपने जीवन से मिले कुछ अनुभवों को एक किताब ‘चाणक्य नीति’ में जगह दिया है. चाणक्य नीति में कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया गया है, जिस पर अमल करने से व्यक्ति अवश्य सफल होता है. साथ ही चाणक्य ने अपने 7वें अध्याय के पहले श्लोक में बताया है कि दुख के समय में व्यक्ति को कुछ बातें अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए. चाणक्य के अनुसार इन बातों को दूसरों को न बताने में ही भलाई है. चाणक्य ने जिस श्लोक में इस बात का जिक्र किया है, वह श्लोक कुछ इस प्रकार है..
श्लोक
अर्थनाश मनस्तापं गृहिण्याश्चरितानि च।
नीचं वाक्यं चापमानं मतिमान्न प्रकाशयेत॥
धन के नाश होने पर

चाणक्य ने कहा है कि यदि किसी भी तरह से आपको धन का नाश होता है तो आपको इस बात का दुख दूसरों के सामने जाहिर नहीं करना चाहिए. धन चोरी हो जाने पर या धन कहीं गिर जाने पर होने वाले नुकसान के बारे में किसी दूसरे को नहीं बताना चाहिए.
मन के दुखी होने पर

चाणक्य के मुताबिक यदि आपका मन किसी भी बात को लेकर दुखी है तो उसके बारे में दूसरों को न बताएं. उस बात को आप अपने तक ही रखें, नहीं तो लोग आपकी बात सुन तो लेते हैं, लेकिन पीठ पीछे आपके दुख का मजाक बनाते हैं.
घर के दोष के बारे में

यदि आपके घर में कोई दोष है, उदाहरण के तौर पर यदि आपके परिवार में कलेश है या आपकी पत्नी से आपकी नहीं बनती, तो इन सब बातों के बारे में किसी से जिक्र नहीं करना चाहिए. ऐसी बातों का जिक्र जितना आप लोगों से करेंगे, उतना ही अधिक आपका उपहास होगा.
किसी द्वारा ठगे जाने पर

यदि आपको किसी ने ठग लिया है यानी कि किसी ने आपसे धोखाधड़ी की है तो इस बात को भी व्यक्ति को अपने तक ही रखना चाहिए. चाणक्य ने कहा है कि ये बातें आपकी निजी विषय है और जितना आप लोगों को इस बारे में बताएंगे उतना पीठ पीछे उपहास का कारण बनेंगे.
अपमानित होने पर

यदि किसी बात को लेकर कोई आपका अपमान करता है तो इस बात को भी मन में ही रखना चाहिए. दूसरों के सामने ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, वर्ना अंत में आपका मजाक ही बनता है.

 
			 
                                 
                              
		 
		 
		 
		