cheque bounce court case : लोगों को चेक बाउंस से जुड़े मामलों में जेल तक जाना पड़ता है। अगर आप किसी को यूपीआई (UPI) से पैसे भेज रहे हैं और ट्रांजेक्शन कैंसिल हो जाती है तो वह कोई अपराध नहीं है, लेकिन चेक के मामले में ये अपराध की श्रेणी में आ जाता है। चेक बाउंस (cheque bounce) मामले में कितने साल की सजा होगी, कितना जुर्माना लगेगा, क्या कुछ नियम हैं, आइए जानते हैं।
कुछ समय पहले ही फिल्मकार रामगोपाल वर्मा पर चेक बाउंस के मामले में अदालत का फैसला आया। कोर्ट ने उनको तीन महीने की सजा सुना दी। उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट तक जारी किया गया। अब आम तौर पर चेक बाउंस (cheque bounce case) का मामला जमानती होता है, फिर इस केस में गैरजमानती क्यों।
ऐसे में हमें पता होना चाहिए कि चेक बाउंस के मामले में कितनी सावधानी जरूरी है। चेक (cheque bounce rules) बनाते समय किन बातों का हमें ध्यान रखना चाहिए। हम ऐसी मुसिबत में न फंसे इसके लिए हमें क्या करना चाहिए। आइए चेक के बारे में सबकुछ जानते हैं।
कब होता है cheque bounce
हमें पहले जानना चाहिए कि चेक बाउंस (cheque bounce cases) आखिर होता कैसे है। सीधे शब्दों में कहे तो जब खातें में दिए गए चेक से कम रकम हो तो चेक बाउंस (what is cheque bounce) हो जाता है। उदाहरण के लिए किसी को 50 हजार रुपये का चेक दिया और भुगतान के लिए जब उसने बैंक में लगाया तो खाते में 50 हजार से कम रुपये हैं तो चेक बाउंस हो जाएगा। चाहे एक पैसा ही कम क्यों ने हो, चेक बाउंस माना जाएगा।
cheque bounce को लेकर यह है कानून
चेक बाउंस का मामला निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (cheque bounce act) 1981 की धारा 138 के तहत आता है। इस प्रकार के केसेज में पहले तो चेक जारी करने वाले को नोटिस दिया जाता है। जिसमें उसको तय समय में सेटलमेंट का अवसर दिया जाता है। ऐसा न करने पर कोर्ट जुर्माना, जेल आदि सजा व गिरफ्तारी के आदेश दे सकता है। कोर्ट जमानती या गैरजमानती वारंट जारी कर सकता है।
चेक बाउंस मामले में नहीं करानी होती एफआईआर
भारतीय कानून के अनुसार चेक बाउंस आपराधिक प्रकृति में आता है, फिर भी चेक बाउंस (cheque bounce FIR rule) के मामले में पुलिस रिपोर्ट या एफआईआर दर्ज कराने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए मजिस्ट्रेट या अदालत में अर्जी दी जाती है। वहीं, पुलिस इसमें गिरफ्तार भी अपनी मर्जी से नहीं कर सकती है, कानूनी दायरे में कोर्ट के आदेश पर ही गिरफ्तारी हो सकती है। कोर्ट चाहे जुर्माना लगाए और मूल राशि के साथ लौटाने का आदेश दे या आरोपी को जेल भेजे, सब कोर्ट ही डिसाइड करता है।
2 साल की हो सकती है जेल
चेक बाउंस (cheque bounce act rules) के मामलों को कानून के अनुसार 6 महीने के भीतर निपटाया जाना जरूरी है। चेक बाउंस की शिकायत बैंक शाखा वाली जगह या जारी की जाने वाली जगह पर की जा सकती है। पहली बार चेक बाउंस होने पर केस के बिना निपटान का अवसर दिया जाता है। बार-बार चेक होने पर सजा का सामना करना पड़ सकता है। इसमें दो या ज्यादा बार चेक बाउंस पर 2 साल तक जेल की सजा व चेक से दोगुना तक फाइन देना पड़ सकता है।