Cow Subsidy Scheme: हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2030 तक प्रदेश को जहर मुक्त खेती में तब्दील करने का लक्ष्य रखा है. प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए साल 2018 में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक की शुरुआत हुई. इस तकनीक के बेहतर परिणामों ने किसानों को रासायनिक खेती छोड़ने के लिए प्रेरित किया.
प्राकृतिक खेती में देशी गाय का महत्व
प्राकृतिक खेती में भारतीय नस्ल की गाय (importance of Indian breed cows in natural farming) का विशेष महत्व है. देशी गाय के गोबर में मौजूद तीन से पांच करोड़ जीवाणु मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करते हैं. एक देशी गाय के गोबर से 30 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकती है, जबकि जैविक पद्धति में इतनी ही खेती के लिए 30 गायों की जरूरत होती है.
सरकार की सब्सिडी योजनाएं
हिमाचल प्रदेश सरकार किसानों को देशी गाय खरीदने के लिए 25 हजार रुपये की सब्सिडी (subsidy for Indian breed cows Himachal Pradesh) दे रही है. इसके अलावा ट्रांसपोर्टेशन के लिए 5 हजार रुपये और गौशाला में पक्का फर्श बनाने के लिए 8 हजार रुपये की सहायता दी जा रही है. किसानों को साइकिल हल और ड्रम खरीदने पर भी सब्सिडी प्रदान की जा रही है.
प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग
प्राकृतिक खेती में जीवामृत और घन जीवामृत (natural fertilizers for farming) जैसे जैविक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है. इन उर्वरकों को गोबर, गोमूत्र, गुड़, दाल का बेसन और पेड़ों के नीचे की मिट्टी से तैयार किया जाता है. ये उर्वरक मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और सूक्ष्म जीवों को सक्रिय करने में मदद करते हैं.
कीटनाशकों का प्राकृतिक इलाज
रासायनिक कीटनाशकों की जगह, प्राकृतिक खेती में गोबर, गोमूत्र, तंबाकू, लहसुन और मिर्च के पत्तों से कीटनाशक (natural pesticides for farming) तैयार किए जाते हैं. इन दवाओं का छिड़काव फसलों को कीट और बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है.
35 हजार हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती
साल 2018 में प्राकृतिक खेती की तकनीक (natural farming area in Himachal Pradesh) हिमाचल प्रदेश में 628 हेक्टेयर क्षेत्र में शुरू हुई थी. अब यह क्षेत्र बढ़कर 35,004 हेक्टेयर हो गया है. किसान इस पद्धति को अपनाकर रासायनिक खेती से दूर जा रहे हैं.
किसानों को ट्रेनिंग और जागरूकता
अब तक प्रदेश के 2.73 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती (natural farming training for farmers) की ट्रेनिंग दी जा चुकी है. इनमें से 1.97 लाख किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. यह बदलाव सरकार और किसानों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है.
जहर मुक्त खेती के फायदे
प्राकृतिक खेती अपनाने से मिट्टी की उर्वरता (benefits of chemical-free farming) बढ़ती है, जल की खपत 70% तक कम होती है और उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होता है. इस पद्धति से किसान अपनी फसलों को अधिक सुरक्षित और पोषणयुक्त बना सकते हैं.
हिमाचल में देशी गायों का संरक्षण और प्रोत्साहन
सरकार ने देशी गायों के संरक्षण (promotion of Indian breed cows in Himachal) और उपयोगिता को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. साहिवाल, गीर, रेड सिंधी और हिमाचल की लोकल नस्लों को प्राथमिकता दी जा रही है. इससे न केवल प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि देशी नस्लों का संरक्षण भी होगा.
सरकार की योजनाओं से बदलाव की ओर
सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 3584 पंचायतों (Himachal natural farming initiatives) में जागरूकता अभियान चलाए हैं. इसके परिणामस्वरूप, 1160 पंचायतों से बढ़कर अब लगभग सभी पंचायतों में किसान प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं.