मार्च में इस पत्तेदार सब्जी की खेती से होगा किसानो का उद्धार, जाने कैसे करें खेती। बथुआ एक हरी पत्तेदार सब्जी है, जिसे भारत में सर्दियों के मौसम में उगाया जाता है। यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसमें आयरन, कैल्शियम, फाइबर और विटामिन ए, सी एवं बी-कॉम्प्लेक्स की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसकी खेती कम लागत में अच्छी पैदावार देने वाली होती है। आइए इसकी खेती के बारे में विस्तार से बताते है।
बथुआ की खेती के लिए जलवायु और भूमि
बथुआ ठंडे और समशीतोष्ण जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है। यह सर्दियों की फसल है और इसे ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। दोमट और बलुई दोमट मिट्टी जिसमें अच्छी जल निकासी हो, बथुआ की खेती के लिए उपयुक्त होती है। इसका pH मान लगभग 6.0 से 7.5 के बीच की मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है।
बथुआ की खेती कैसे करें
बथुआ की खेती के लिए खेत की जुताई 2-3 बार करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। अच्छी जल निकासी की व्यवस्था करें। खेत में 10-15 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाएं। खेत को समतल कर हल्की नमी बनाए रखें। बुवाई का सही समय अक्टूबर से दिसंबर के बीच में है। बीजों को छिड़ककर या कतारों में बोया जाता है।
कतारों के बीच की दूरी 20-25 सेमी और पौधों के बीच 10 सेमी रखी जाती है। बथुआ की खेती में बहुत अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें और फिर आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। अधिक उपज के लिए जैविक खाद एवं संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें।
बथुआ की कटाई बुवाई के 40-50 दिन बाद की जा सकती है। इसे हरा साग रूप में उपयोग के लिए पूरा पौधा काट सकते हैं या पत्तियों को तोड़कर इस्तेमाल किया जा सकता है। औसतन 100-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हरा पत्तेदार उत्पादन प्राप्त हो सकता है।
बथुआ से कमाई
बथुआ की मांग सर्दियों में बहुत अधिक होती है, विशेषकर शहरी बाजारों में। इसे साग के रूप में, पराठों में और अन्य व्यंजनों में उपयोग किया जाता है। जैविक विधि से उगाए गए बथुआ की कीमत अधिक मिल सकती है। बथुआ की खेती से आप तगड़ी कमाई कर सकते है।