अगर आप भी ग्रीष्मकालीन मूंग या उड़द की खेती (Summer Moong Farming) करते है तो, यह जानकारी आपके लिए है। आइए आर्टिकल में जानते है किसान किस तरह अधिक उपज प्राप्त कर सकते है।
ummer Moong Farming | पूरे देशभर में गेंहू सहित अन्य रबी फसलों की कटाई का कार्य शुरू हो चुका है। ऐसे में जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। वह ग्रीष्मकालीन / गर्मी में मुंग एवं उड़द की खेती करते है।
जिससे की वह अधिक आय प्राप्त कर सकें। मुंग एवं उड़द की खेती किसानों के लिए इस तरह भी लाभदायक रहती है की, वह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देती है। इससे उन्हें अगली बोई जानें वाली फसलों से अच्छी पैदावार भी निकलती है।
साथ ही अच्छी उपज से मोटा मुनाफा भी कमाया जा सकता है। ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की खेती (Summer Moong Farming) से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। जैसे की- बीजोपचार, बीज चयन, उर्वरक सिंचाई एवं खरपतवार सहित अन्य जानकारी।
आज हम चौपाल समाचार के इस आर्टिकल में बात करने वाले है की, ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। तो आइए आर्टिकल में जानते है पूरी जानकारी…
सबसे पहले अच्छा बीज का चयन करें | Summer Moong Farming
सबसे पहले किसान मुंग एवं उड़द की उन्नत किस्मों का बीज चयन करें। ग्रीष्मकालीन उड़द की उन्नत प्रजातियां जैसे- पीडीयू 1 (बसंत बहार), आईपीयू 94-1 (उत्तरा), पंत उड़द 19, पंत उड़द 30, पंत उड़द 31 पंत उड़द 35 किस्म।
एलयू 391, मैश 479 (केयूजी 479), मुकुंदरा उड़द-2, नरेंद्र उड़द-1, शेखर 1, शेखर 2, आजाद उड़द 1, कोटा उड़द 3, कोटा उड़द 4, इंदिरा उड़द प्रथम, यूएच-04-06, आदि उगाई जा सकती हैं और 65-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं।
वही ग्रीष्मकालीन मुंग की उन्नत किस्मों की बात करें तो, इसमें मूंग की पूसा वैसाखी, मोहिनी, पन्त मूंग 1, एमएल 1, सुनैना, जवाहर 45, कृष्ण 11, पन्त मूंग 3, अमृत, जवाहर मूंग-3 जैसी शामिल हैं। इनमें से कई किस्में पीला मोज़ेक वायरस जैसे रोगों के प्रतिरोधी हैं। : Summer Moong Farming
ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द के लिए बीजोपचार
Summer Moong Farming | मृदा एवं बीजजनित कई कवक एवं जीवाणुजनित रोग होते हैं, जो मृदा अंकुरण होते समय तथा अंकुरण होने के बाद बीजों को काफी क्षति पहुंचाते हैं। बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या हेतु बीजों को कवकनाशी से बीज उपचार करने की सलाह दी जाती है।
इसके लिये प्रति कि.ग्रा. बीज को 2 से 2.5 ग्राम थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचार करने के बाद राइजोबियम कल्चर / टीका से बीजोपचार करना चाहिए। बीज उपचार हेतु 500 मि.ली. स्वच्छ जल में 100 ग्राम गुड़ एवं 2 ग्राम गोंद को पानी में मिलाकर गर्म कर लेना चाहिए।
इसके बाद इसे ठंडा करके एक पैकेट राइजोबियम कल्चर/ टीका (10 कि.ग्रा. बीज) मिलाकर अच्छी तरह बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए व उपचारित बीजों को छाया में ही सुखाना चाहिए।
बुआई के समय बीज डालने से पहले सल्फर धूल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इसी प्रकार फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (पीएसबी) से बीज का शोधन करना भी लाभदायक होता है। : Summer Moong Farming
ग्रीष्मकालीन मुंग एवं उड़द की खेती में उर्वरक प्रबंधन
सामान्यतः उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। मूंग की फसल के लिये 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय कूंड़ों में देना चाहिए।
कुछ क्षेत्रों में जिंक की कमी की अवस्था में 15-20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही 5.0 टन/ हैक्टर की दर से गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। इस समय मूंग की फसल लगभग दो से ढाई महीने में तैयार हो जाती है। : Summer Moong Farming
ग्रीष्मकालीन मुंग एवं उड़द की खेती में सिंचाई | Summer Moong Farming
जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है की, मुंग एवं उड़द की फसल ढाई से 3 महीने में तैयार हो जाती है। इस कारण से सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है। सही मायने में ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द एक बोनस फसल की तरह काम करती है।
मूंग व उड़द की फसल में पानी की कम आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकालीन मूंग व उड़द की फसल की अच्छी वृद्धि व विकास के लिये 3 से 4 सिंचाई आवश्यक हैं। अनावश्यक रूप से सिंचाई करने पर पौधों की वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा हो जाती है, जिसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः सिंचाई आवश्यकतानुसार व हल्की करें।
खरपतवार प्रबंधन के लिए यह दवाई डालें…
बुआई के प्रारंभिक 4-5 सप्ताह तक खरपतवार की समस्या अधिक रहती है। पहली सिंचाई के बाद निराई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ मृदा में वायु का संचार भी होता है। यह मूल ग्रन्थियों में क्रियाशील जीवाणुओं द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन एकत्रित करने में सहायक होता है।
खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु 2.5-3.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2 से 3 दिनों के अन्दर अंकुरण के पूर्व छिड़काव करने से 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवार नहीं निकलते हैं।
चौड़ी पत्ती तथा घास वाले खरपतवार को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिये एलाक्लोर की 4 लीटर या फ्लूक्लोरालिन (45 ईसी) नामक रसायन की 2.22 लीटर मात्रा का 800 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरन्त बाद या अंकुरण से पहले छिड़काव कर देना चाहिए। अतः बुआई के 15-20 दिनों के अन्दर कसोले से निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए