सरसों की कटाई से पहले अपनाए यह सावधानियां नहीं तो फसल की उपज पर पड़ेगा प्रभाव। सरसों की खेती में कई प्रकार के रोग लग सकते हैं, जो फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करते हैं। यहां कुछ प्रमुख रोग और उनसे बचाव के उपाय दिए गए हैं। इसके साथ ही आपको क्या क्या सावधानियां अपनानी है आइए इसके बारे में जानते है।
सफेद रतुआ
लक्षण:- पत्तियों के नीचे सफेद फफूंदनुमा धब्बे बनते हैं, तने और फूलों पर गांठें पड़ सकती हैं।
उपाय:- बीज को बोने से पहले 2.5 ग्राम मैन्कोजेब या 2 ग्राम मेटालेक्सिल प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। रोग दिखने पर 0.25% मैन्कोजेब का छिड़काव करें। रोगग्रस्त पौधों को खेत से हटा दें।
आल्टरनेरिया झुलसा
लक्षण:- पत्तियों पर भूरे रंग के गोल धब्बे जो किनारे से काले होते हैं।
उपाय:- 0.2% मैन्कोजेब या क्लोरोथालोनिल का 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। फसल अवशेषों को नष्ट कर दें। फसल चक्र अपनाएं और समय पर बुवाई करें।
सफ़ेद फफूंदी
लक्षण:- पत्तियों और तनों पर सफेद पाउडर जैसा पदार्थ।
उपाय:- सल्फर आधारित दवा जैसे कि 0.2% वेटेबल सल्फर या 0.1% कैराथेन का छिड़काव करें। संतुलित खाद और पानी दें ताकि पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
जड़ गलन
लक्षण:- पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और पौधे सूख जाते हैं।
उपाय:- बीजोपचार ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम से करें। जल निकासी का उचित प्रबंध करें। फसल चक्र का पालन करें।
सामान्य सावधानियाँ
रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। खेत में जल जमाव न होने दें। खरपतवार नियंत्रण करें ताकि रोग वाहक न पनपें। खेत में संतुलित उर्वरक और जैविक खाद का प्रयोग करें।