Government Employees : कर्मचारियों के लिए पेंशन पर फिर से बड़ा अपडेट आया है। सरकार को 25 हजार करोड़ देने होंगे। दो दशक से कर्मचारियों की पेंशन का मामला अटका है, जिसमें अब फैसला होने पर लाखों का एरियर देना पड़ सकता है। सरकारी कर्मचारियों (Government Employees) के लिए एक बड़ा अपडेट सामने आया है।
केंद्र सरकार पेंशन को लेकर पशोपेश में पड़ गई है। मामला साल 2006 से पहले का है। इस साल के बाद रिटायर होने वाले कर्मचारियों से यह मामला जुड़ा हुआ है। इन कर्मचारियों की पेंशन विसंगति दूर करने पर 25 हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं।
हाल ही में किया गया पेंशन संशोधन
कर्मचारियों की पेंशन बदलने के लिए हाल ही में संशोधन किया गया है। केंद्रीय सेवा पेंशन नियमों में वित्त अधिनियम 2025 के तहत बदलाव किया गया है। वहीं अब कर्मचपारियों के लिए यूपीएस पेंशन स्कीम शुरू की है। इसके बावजूद इसके सैकड़ों कर्मचारियों के पेंशन में आई विसंगति करनी आसान नहीं होगी। कर्मचारियों को बढ़ी हुई पेंशन के साथ लाखों रुपये का एरियर भी देना पड़ेगा।
दो दशक पुराना है मामला
कर्मचारियों की पेंशन से जुड़ा यह मामला साल 2006 से पहले का व बाद में रिटायर होने वाले समान रैंक के अधिकारियों का है। अधिकारियों की पेंशन में काफि विसंगति हैं, जो दूर करने के लिए कर्मचारियों (Government Employees) ने 2008 में ही अदालत का रुख किया था। अब एक बार फिर इसकी सुनवाई 16 मई, 2025 को होगी।
कर्मचारियों को सता रही चिंता
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ऑल इंडिया S-30 पेंशनर्स एसोसिएशन और FORIPSO (फोरम ऑफ रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर्स) के मुताबिक 2006 से पहले सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों को इसके बाद रिटायर हुए कर्मचारियों के मुकाबले कम पेंशन मिल रही है। कर्मचारियों (Government Employees) का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों संगठनों ने 2008 में पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग (DPPW) की ओर से जारी एक कार्यालय ज्ञापन को मुद्दा बनाया।
6वें वेतन आयोग में शुरू हुआ विवाद
6वां वेतन आयोग लागू होने के बाद कार्मिक मंत्रालय ने 2008-09 ऑफिशियल मेमोरेंडम जारी किया। इससे 2006 से पहले और 2006 के बाद के पेंशनभोगियों को मिलने वाली पेंशन में अंतर आ गया था। इसमें कर्मचारियों की पेंशन कम ज्यादा हो गई और मामला भेदभाव होने का हो गया। 2006 से पहले के कई पेंशनभोगी अब 2006 के बाद के पेंशनभोगियों से कम पेंशन प्राप्त कर रहे थे।
कोर्ट तक पहुंचा मामला, फैसला भी आया
FORIPSO की ओर से 2012 में मामले को CAT में उठाया गया। यहां 15 जनवरी 2015 को इसके पक्ष में एक फैसला दिया गया। इसमें सरकार को पेंशन स्केल को बहाल और संशोधित करने का आदेश दिया। केंद्र की ओर से CAT के आदेश को लागू न करने पर FORIPSO ने 2015 को अवमानना मामला दायर कर दिया।
2024 को उच्च न्यायालय ने FORIPSO के पक्ष में फैसला दिया। इसमें संशोधित पेंशन और बकाया का भुगतान तीन महीने के भीतर और 01.01.2006 से प्रभावी करने का आदेश दिया गया।
अब फिर अदालत में मामला
उच्च न्यायालय के आदेश को लागू नहीं किया तो FORIPSO ने 2024 को अवमानना याचिका दायर की। केंद्र ने फिर 2024 को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथ की खंडपीठ द्वारा इसे खारिज कर दिया गया। अब केंद्र के पास बहुत कम कानूनी विकल्प हैं। अभी तक बकाया भुगतान नहीं देने पर केंद्र के खिलाफ दायर अवमानना याचिका अब 16 मई 2025 को सुनवाई होगी।
सरकार ने फिर खेला दांव
अब जबकि केंद्र के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उसने वित्त अधिनियम 2025 के तहत इससे बचाव का विकल्प निकालने की कोशिश की। वित्त अधिनियम 2025 (Finance Act 2025) ने ‘केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम और सिद्धांतों की वैधता’ को शामिल किया। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास अपने पेंशनभोगियों (Government employee) को बांटाने का अधिकार है। साथ ही पेंशनभोगियों के बीच अंतर बनाने या बनाए रखने के लिए भी उसके पास अधिकार हैं और पेंशन अधिकार के लिए सेवानिवृत्ति की तारीख को ही आधार माना जाएगा।
सरकार पर पड़ेगा इतना बोझ-
एक ओर जहां सालों से अटकी पेंशन पर चर्चाएं चल रही है वहीं दूसरी तरफ यह आंकलन लगाया जा रहा है कि यदि सरकार इस फैसले को मान लेते हैं तो सरकार पर कितना त्तीय बोझ आएगा। FORIPSO की रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक प्रभावित पेंशनभोगी को 14.5 लाख रुपये से 16.5 लाख रुपये के बीच बकाया राशि का भुगतान किया जाना चाहिए।
300 से अधिक सेवानिवृत्त अधिकारियों के प्रभावित होने के साथ मोटे अनुमान बताते हैं कि यदि दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश लागू किया जाता है, तो केंद्र को 25,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा का वित्तीय बोझ का सामाना करना पड़ेगा।