Property Rights : संपत्ति के विवाद अक्सर सामने आते रहते हैं। कई बार पारिवारिक संपत्ति (property dispute) से जुड़े मामले इतने उलझ जाते हैं कि कोर्ट को भी सुलझाने में लंबा समय लग जाता है। हाई कोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है। अब यह फैसला (HC decision in property) चर्चाओं में बना हुआ है, जो हर किसी के लिए जानना जरूरी है। हाई कोर्ट का यह फैसला प्रोपर्टी पर अधिकारों को स्पष्ट कर रहा है।
कानून में संपत्ति के अधिकारों के लिए कई तरह के प्रावधान किए गए हैं। इन्हीं प्रावधानों के अनुसार मामले को देखते हुए निर्णय भी लिए जाते हैं। प्रोपर्टी के अधिकतर विवाद (property dispute case ) इस कारण से भी होते हैं कि कई लोग इस बात से अनजान होते हैं कि कानूनी रूप से किस तरह की प्रोपर्टी (property news) में किसका कितना अधिकार होता है। गुजरात हाई कोर्ट ने हाल ही में पारिवारिक संपत्ति के मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिसे हर किसी के लिए जानना जरूरी है।
यह था मामला-
गुजरात उच्च न्यायालय (Gujarat High Court) ने पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे से जुड़े मामले में अपना निर्णय सुनाया है। इस मामले में निचली अदालत की ओर से दिए गए आदेश को एक याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस बारे में अभी तक पता नहीं लग सका है कि उसकी बहन ने पारिवारिक संपत्ति में अधिकार (daughter’s property rights) छोड़ा है या नहीं।
हाई कोर्ट ने दी यह नसीहत-
गुजरात हाई कोर्ट ने पारिवारिक संपत्ति से जुड़े एक मामले में बेटियों के अधिकार (son daughter property rights) बताते हुए कहा कि इस मानसिकता का त्याग करना होगा कि बेटी या बहन की शादी हो जाए तो उसे कुछ नहीं देना चाहिए। इस तरह की मानसिकता को कोर्ट ने छोटी मानसिकता बताया।
याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलीलें रखीं तो मुख्य न्यायाधीश खफा हो गए और याचिकाकर्ता से भी कहा कि परिवार की संपत्ति (household property rights) पर जिसके हक की बात की जा रही है, वह तुम्हारी बहन है, तुम्हारे साथ पैदा हुई है। कानूनन उसका भी उस प्रोपर्टी पर उतना ही अधिकार है जितना की तुम्हारा। शादी होने पर भी बेटी की परिवार में पूरी हैसियत रहती है।
शादी का बेटी के प्रोपर्टी अधिकार पर प्रभाव-
गुजरात हाई कोर्ट के चीज जस्टिस ने कहा कि जिस तरह से विवाहित व अविवाहित बेटे का प्रोपर्टी पर अधिकार (son’s property rights) होता है, ठीक उसी तरह से विवाहित और अविवाहित स्थिति में बेटी का पारिवारिक प्रोपर्टी पर अधिकार बना रहेगा। जब कानून शादी से पहले व बाद में बेटे की स्थिति को नहीं बदलता, तो बेटी की स्थिति भी प्रोपर्टी अधिकारों (daughter’s property rights) को लेकर नहीं बदलेगी।
यह है कानून में प्रावधान –
काननू में संपत्ति को मुख्य रूप से दो तरह का माना है। एक पैतृक संपत्ति (ancestral property rights) और दूसरी स्वअर्जित संपत्ति। पैतृक संपत्ति पूर्वजों से मिली संपत्ति को कहा जाता है और स्वअर्जित संपत्ति (self acquired property rights) खुद की कमाई से खरीदी गई प्रोपर्टी को कहा जाता है। पैतृक संपत्ति चार पीढ़ियों तक के लिए मान्य होती है।
बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन किए जाने से पहले प्रोपर्टी में अधिकार के लिए परिवार के पुरुष सदस्यों को ही प्रतिपक्षी माना जाता था। 2005 में इस कानून में संशोधन करके बेटियों को भी पैतृक संपत्ति (ancestral property rights) में बेटे की तरह ही बराबर का उत्तराधिकारी माना गया। अब बेटी को आजीवन पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त है।