Kisan Sahayata Yojana 2025: राज्य सरकार ने कृषि को फिर से पारंपरिक और जैविक दिशा में मोड़ने के लिए एक बड़ी योजना की शुरुआत की है. इस योजना के अंतर्गत बैल से खेत जोतने वाले किसानों को सालाना 30,000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी. इसका उद्देश्य खेती को प्राकृतिक स्वरूप में लौटाना और किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना है.
रासायनिक खेती पर निर्भरता कम करने की दिशा में पहल
सरकार का मानना है कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से जमीन की उर्वरता कम हो रही है और पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है. वहीं बैल से जुताई करने पर मिट्टी की संरचना और पोषण तत्व सुरक्षित रहते हैं. जिससे फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है.
बैलों की घटती संख्या पर चिंता
हाल के वर्षों में ट्रैक्टर और आधुनिक कृषि यंत्रों के प्रयोग से बैलों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. इससे गांव की पारंपरिक कृषि संस्कृति भी प्रभावित हुई है. सरकार की यह योजना बैल संरक्षण और परंपरागत खेती को पुनर्जीवित करने का प्रयास है.
गांवों में लौटेगी खेती की पारंपरिक धुन
एक समय था जब खेतों में बैलों की जुताई और उनके गले में बंधी घंटियों की आवाजें गांव की पहचान होती थीं. लेकिन आधुनिक यंत्रों के आगमन से यह चित्र अब दुर्लभ हो गया है. सरकार की योजना इन ध्वनियों और परंपराओं को फिर से जीवित करने की कोशिश है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को टिकाऊ और सुरक्षित खाद्य उत्पादन मिल सके.
छोटे किसानों को मिलेगा सीधा फायदा
यह योजना विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए फायदेमंद है जो अभी भी पारंपरिक तरीकों से खेती करते हैं. अब ऐसे किसानों को हर वर्ष सीधे आर्थिक सहायता दी जाएगी. जिससे वे अपनी खेती की लागत को कम कर सकें और आत्मनिर्भर बन सकें. इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और पारंपरिक खेती की ओर झुकाव फिर से मजबूत होगा.
कैसे करें आवेदन?
इस योजना के तहत आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन है. किसान को ‘राज किसान साथी पोर्टल’ पर जाकर आवेदन करना होगा. आवेदन करते समय निम्नलिखित दस्तावेज़ जरूरी होंगे:
- जनाधार कार्ड
- पशु स्वास्थ्य प्रमाण पत्र
- ईयर टैगिंग रिपोर्ट
- पशु बीमा
- बैलों की जोड़ी के साथ अपनी हालिया फोटो
यह योजना ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर लागू की गई है. इसलिए इच्छुक और पात्र किसानों को जल्द से जल्द आवेदन करना चाहिए.
कम लागत, ज्यादा लाभ वाली खेती
बैल से खेत जोतना सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल नहीं, बल्कि किफायती भी है. इससे बिजली और डीजल की बचत होती है. पानी की खपत कम होती है, और मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है. इसके विपरीत आधुनिक मशीनें महंगी, ऊर्जा-गहन और पर्यावरण पर भारी पड़ती हैं.
किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मजबूत कदम
सरकार की यह योजना किसानों को न केवल आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगी. बल्कि उन्हें फिर से पारंपरिक ज्ञान और टिकाऊ कृषि तकनीकों की ओर मोड़ेगी. इससे स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और कृषि उत्पादन की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा.
