एक नगर में एक सेठ रहा करता था। वो बहुत मेहनती था और अपने मेहनत से उसने अपार धन संपदा इक्ट्ठा की थी। उसे विरासत में अपने पिता से कुछ नहीं मिला था और सब उसकी खुद की मेहनत का था। हालांकि उसके पास हिसाब नहीं था कि कितनी संपत्ति उसके पास है। इसके मूल्यांकन के लए उसने एक लेखा अधिकारी को बुलाया औऱ उससे कहा कि वो समय लेकर बताए की कितनी संपत्ति है।
सेठ को आंठवीं पीढ़ी की सताने लगी चिंता
लेखा अधिकारी को सेठ की संपत्ति का मूल्यांकन करने में करीब 1 हफ्ते का टाइम लग गया। अधिकारी ने सेठ से कहा कि आपंके पास अथाह धन है। अगर मोटे तौर पर कहूं तो आपकी 7 पीढ़ी बिना कुछ किए सिर्फ बैठे बैठे ये धन खर्च कर सकती है और अपना जीवन आराम से बिता सकती है। लेखा अधिकारी की बातें सुन सेठ चिंता में पड़ गया। उसकी चिंता सातवीं पीढ़ी के बाद वाली थी। उसने सोचा क्या मेरी आठवीं पीढ़ी बिना धन संपदा के रहेगी? रात दिन उसे ये ही चिंता सताती।

इसी चिंता में सेठ संत के पास गया औऱ कहा- मेरे पास अपनी आने वाली सात पीढ़ियों के लिए तो पर्याप्त धन है, लेकिन आठवीं पीढ़ी भूख से ना मरें इसके लिए कुछ बताइये। संत सेठ की परेशानी समझ गए और उससे कहा कि इसका हल तो बहुत ही आसान है। यहां से थोड़ी दूरी पर पर एक बस्ती हैं वहां एक बूढ़ी औरत रहती है। उसके यहां कोई कमाने वाला नहीं है। कल उसके यहां जाना और बस आधा किलो आटा दान कर देना । तुम्हारी सारी मनोकामना पूरी हो जाएगी औऱ तुम्हें तुम्हारी सारी परेशानी का हल भी मिल जाएगा।
सेठ से कल का इंतजार नहीं हुआ औऱ वो कुछ ही समय में बूढ़ी औरत के पास पहुंच गया। संत ने कहा था कि आधा किलो आटा दे देना, लेकिन सेठ बोरा भरकर आटा लेकर पहुंच गया। सेठ ने बूढ़ा औरत से कहा- मैं आपके लिए आटा लाया हूं , इस भेंट को स्वीकार कीजिए। बूढ़ी औरत ने कहा –बेटा आटा तो मेरे पास है, मुझे नहीं चाहिए।
बूढ़ी औरत ने आटा लेने से कर दिया इनकार
सेठ ने कहा कि फिर भी रख लीजिए। बूढ़ी औऱत ने कहा- बेटा आटा है, मुझे नहीं चाहिए, क्या करुंगी रख कर मुझे जरुरत नहीं हैं इसकी। सेठ ने कहा- अच्छा बोरी भरकर मत रखिए तो कम से कम आधा किलो तो रख लीजिए। बूढ़ी औरत ने कहा कि बेटा आज तो मेरे खाने का इंतजाम हो चुका है। सेठ ने कहा- तो फिर इसे कल के लिए रख लीजिए।

बूढ़ी औरत ने कहा कि कल की चिंता मैं आज क्यों करुं। जैसे आज का प्रबंध हो गया वैसे कल का भी हो जाएगा। बूढ़ी औऱत की बातें सुनकर सेठ की आखें खुल गई। उसने सोचा की एक बूढ़ी औऱत को कल की चिंता नहीं औऱ मैं आंठवीं पीढ़ी के बारे में सोच सोचकर परेशान हो रहा हूं। मेरी चिंता का कारण अभाव नहीं तृष्णा है।
हमें भविष्य के बारे में हमेशा ख्याल रखना चाहिए और कुछ बचाकर रखना चाहिए, लेकिन इसकी भी अपनी एक सीमा होती है। पर्याप्त मात्रा धन संपदा होने के बाद भी कल के विषय में सोच कर चिंतित रहना भविष्य सुरक्षित करने की योजना नहीं बल्कि मूर्खता है। ये भी एक तरह का लालच है और गलत है।
