भारत सरकार ने कपड़ा निर्यातकों को राहत देने के लिए कपास के शुल्क-मुक्त आयात की समयसीमा तीन महीने बढ़ा दी है। अब कंपनियां 31 दिसंबर, 2025 तक बिना किसी आयात शुल्क चुकाए कपास का आयात कर सकेंगी। पहले इसकी समयसीमा 30 सितंबर तक थी। कपड़ा उद्योग की मुश्किलों को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने यह फैसला लिया है।
अमेरिका ने टैरिफ बढ़ा दिया
अमेरिका ने 27 अगस्त से भारत से आने वाले कई उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है, जिनमें कपड़े और परिधान भी शामिल हैं। भारत बड़े पैमाने पर अमेरिका को कपड़ा और परिधान निर्यात करता है, लेकिन इस शुल्क वृद्धि से इस उद्योग को बड़ा झटका लगा है।
थिंक टैंक जीटीआरआई के अनुसार, 2024-25 में अमेरिका को भारत का कपड़ा निर्यात लगभग 10.8 अरब डॉलर का था, जिसमें से लगभग आधा हिस्सा परिधानों का था। अब इन पर आयात शुल्क 13.9 प्रतिशत से बढ़कर 63.9 प्रतिशत हो गया है। इससे तिरुपुर, नोएडा, सूरत, गुरुग्राम, लुधियाना और जयपुर जैसे भारत के प्रमुख कपड़ा केंद्रों की फैक्ट्रियों को नुकसान हुआ है और कई जगहों पर उत्पादन ठप हो गया है।

कंपनियाँ दूसरे देशों की ओर रुख कर रही हैं
वहीं, बढ़ते अमेरिकी शुल्कों के कारण, कुछ भारतीय कंपनियां अब बांग्लादेश, इंडोनेशिया, वियतनाम और ग्वाटेमाला जैसे देशों से अमेरिका को आपूर्ति भेजने पर विचार कर रही हैं। कुछ कंपनियां इथियोपिया और केन्या में भी अवसर तलाश रही हैं, जहाँ आयात शुल्क केवल 10% है।
सस्ते कच्चे माल से मिलेगी राहत
जीटीआरआई के अनुसार, भारत ने 2024-25 में लगभग 12 करोड़ डॉलर मूल्य का कपास आयात किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुना है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्राज़ील और मिस्र भारत के प्रमुख कपास आपूर्तिकर्ता हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते के कारण, वहाँ से पहले से ही 51,000 टन कपास शुल्क-मुक्त आ रहा है। सरकार के ताज़ा फ़ैसले से अब अमेरिका जैसे देशों से सस्ता कपास आयात किया जा सकेगा, जिससे लागत कम होगी और कपड़ा उद्योग को वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।
इससे पहले 11 प्रतिशत शुल्क लगाया जाता था
अभी तक कपास पर कुल 11 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगता था, जिसमें 5 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क, 5 प्रतिशत कृषि उपकर और 10 प्रतिशत सामाजिक कल्याण अधिभार शामिल था। सरकार के नए फैसले से अब यह शुल्क नहीं लगेगा, जिससे यार्न, फैब्रिक और गारमेंट उद्योग को राहत मिलेगी।
त्योहारी सीजन से पहले कच्चा माल उपलब्ध हो जाएगा
आपको बता दें कि टैरिफ में बढ़ोतरी के बाद अब निर्यातकों को शुल्क-मुक्त आयात के लिए अग्रिम योजना या रिफंड प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा। इससे त्योहारों से पहले कच्चे माल की तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित होगी और उनकी कार्यशील पूंजी भी नहीं फंसेगी। इससे उन कंपनियों को भी मदद मिलेगी जो महंगे कपड़ों को बेहतर गुणवत्ता का बनाती हैं।

किसानों के लिए चिंता का विषय
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि कपास का शुल्क-मुक्त आयात भारतीय किसानों को नुकसान पहुँचा सकता है, क्योंकि कपास की फसल नवंबर से फरवरी के बीच बाज़ार में आती है। अगर उस समय आयात सस्ता होगा, तो किसानों को उनकी फसल का सही दाम नहीं मिलेगा।
विशेषज्ञ अजय श्रीवास्तव के अनुसार, 99% आयात लंबे रेशे वाले कपास का होता है, जिसका उत्पादन भारत में बहुत कम है। भारतीय किसान मुख्यतः छोटे और मध्यम रेशे वाले कपास उगाते हैं, इसलिए उनके नुकसान की संभावना कम है। यह कदम केवल अल्पकालिक राहत प्रदान करने के लिए उठाया गया है।
भारत का उत्पादन घटा और आयात बढ़ा
आपको बता दें कि एक समय भारत में कपास का उत्पादन 390 लाख गांठ प्रति वर्ष तक पहुँच गया था, लेकिन अब यह घटकर 290 लाख गांठ रह गया है। इस वजह से देश को आयात पर निर्भर रहना पड़ रहा है।